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हरि-पूजा हरि-भजन मैं

hari puja hari bhajan main

रसनिधि

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हरि-पूजा हरि-भजन मैं

रसनिधि

और अधिकरसनिधि

    हरि-पूजा हरि-भजन मैं, सो ही ततपर होत।

    हरि उर जाहि आइकै, हरबर करै उदोत॥

    जिनके हृदय में भगवान सहसा या प्रति समय प्रकाश करते रहते हैं, वे ही मनुष्य भगवान की पूजा एवं भगवान के भजन में तत्पर हो सकते हैं—लगे रह सकतें हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 276)
    • संपादक : टेकचंद शास्त्री
    • रचनाकार : रसनिधि
    • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
    • संस्करण : 1955

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