बन-बन उठत दवागि घन
ban ban uthat dawagi ghan
बन-बन उठत दवागि घन, छन-छन छहरि विशाल।
हरखि-हरखि तिय तहँ हँसो, कारण कवन जमाल॥
सामान्य अर्थ : चारों ओर वन में दावाग्नि को प्रचंड रूप से जलते देखकर वह स्त्री वहाँ हँस क्यों पड़ी?
गूढ़ार्थ : पलाश के फूलने से दावाग्नि-सी चारों ओर दिखाई पड़ती है। वह नायिका पलाश के वन में अपने संकेत स्थल को निरापद हुआ जान उमंगित होती है।
- पुस्तक : जमाल दोहावली (पृष्ठ 55)
- संपादक : महावीर सिंह गहलोत
- रचनाकार : जमाल
- प्रकाशन : पुस्तक भवन काशी
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