बालमु बारैं सौति कैं
balamu barain sauti kain
बालमु बारैं सौति कैं, सुनि परनारि-बिहार।
भो रसु अनरसु, रिस रली, रीझ-खीझ इक बार॥
इस दोहे में नायक की दो पत्नियाँ हैं। वह बारी-बारी से अपनी दोनों पत्नियों को समय देता है। एक बार ऐसा होता है कि वह सपत्नी के पास जाना चाहता है इसलिए पूर्व पत्नी अर्थात् प्रथम पत्नी निश्चित रहती है कि आज तो नायक को आना ही नहीं है क्योंकि सपत्नी के पास जाएगा। इसी बीच कोई दूती प्रथम पत्नी को यह सूचना देती है कि नायक तो आज सपत्नी के पास भी नहीं गया, बल्कि किसी अज्ञात स्त्री के पास रात्रि बिताने चला गया है। इस पर प्रथम पत्नी के मन में एक साथ कई प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं। स्पष्ट शब्दों में उसके मन में क्रमशः रस, अनरस, रिस, रली, रीझ तथा खीझ के भाव उत्पन्न होते हैं। उन्हीं भावों को यहाँ पर व्यक्त किया गया है। सपत्नी की बारी पर नायक अन्य स्त्री के पास गया, सपत्नी रात्रि भर प्रतीक्षा करती रही,वह कुढ़ती रही दु:खी होती रही, समझती रही होगी कि नायक उसकी बारी में मेरे पास आ गया है। सपत्नी की इस कुढ़न, दुःख तथा वेदना से नायिका को अत्यधिक सुख मिला। शत्रु के दुःख से बढ़कर मानव के सुख का दूसरा कारण नहीं है। फिर नायिका को दुःख (अनरस) हुआ। सोचा, नायक का यह आचरण सुख का कारण नहीं है, इसका अर्थ तो यह है कि नायक के प्रेम को बाँटने वाली अब तीन हो गई हैं, एक सपत्नी के स्थान पर दो (एक स्वकीया और दूसरी परकीया) हो गई, अब तो मेरी बारी तीसरे दिन आया करेगी, यह तो घाटे की बात रही। तब नायिका को नायक पर क्रोध आया। थोड़ी देर बाद नायिका ने सपत्नी का ही दोष देखा। उसे मजाक सूझा-कैसी गुणवती है हमारी सौत कि जब उनकी बारी होती है तो हमारे बालम कहीं और चले जाते हैं । सुन लिया उनका आकर्षण! और वह (तुलना करते हुए) अपने गुण पर रीझ गई-मेरी बारी पर कभी ऐसा नहीं हुआ। अपने-अपने गुण की बात है। अंत में इस विचार पर नायिका खीझ उठी कि आदत बुरी पड़ गई, हो सकता है किसी दिन मेरी बारी पर भी नायक किसी परकीया नायिका के पास चला जाए। इस प्रकार सुख-दुखात्मक भावों में उलझती हुई नायिका थककर खीझ गई, जितना सोचती थी उतना ही उलझती जाती थी।
- पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 279)
- संपादक : हरिचरण शर्मा
- रचनाकार : बिहारी
- प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
- संस्करण : 2007
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