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दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : पाँच

dusri golmez parishad mein gandhi ji ke saath ha paanch

घनश्यामदास बिड़ला

घनश्यामदास बिड़ला

दूसरी गोलमेज़-परिषद् में गांधी जी के साथ : पाँच

घनश्यामदास बिड़ला

और अधिकघनश्यामदास बिड़ला

    3 सितंबर, ‘31

    ‘राजपूताना जहाज़’

    अदन अभी छोड़ा है। अदन में महात्मा जी का ख़ूब स्वागत सत्कार हुआ। सम्मान पत्र दिया गया; उन्होंने जवाब दिया। स्पीच हिंदुस्तान के अख़बारों में छपी होगी। महात्मा जी को 325 गिनी भेंट की गई। सत्कार में अरब, यहूदी, हिंदुस्तानी सभी शामिल थे। हज़ारों आदमियों की कतार रास्ते में खड़ी हो गई, जो अपनी अरबी भाषा में सत्कार-सूचक नारे लगा रही थी। जिस गाड़ी में महात्मा जी थे उसमें सरोजिनी नायडू, सर प्रभाशंकर पट्टणी और मैं था। कोई-कोई अरबी तो पट्टणीजी को ही गांधी जी समझ बैठते थे, क्योंकि पट्टणीजी सफ़ेद दाढ़ी, सफ़ेद अंगरखा, सफ़ेद साफा सचमुच महात्मापन–सा ला देता है। मीटिंग में भी एक हज़ार मनुष्य थे। अधिकतर हिंदुस्तानी ही थे।

    पंडित जी के लिए यहाँ से आटा-सीधा और दो घड़े पानी के ले लिए गए हैं। हम लोगों ने मज़ाक़ किया कि पंडित जी के गंगाजल के घड़े अब अरब के पानी से भरे जाएँगे और अरब का पानी पीकर पंडित जी को शौक़त अली का साथ देना होगा। किंतु पंडित जी कहते हैं कि पानी का विष सुबह-शाम संध्या से धो डालूँगा।

    महात्मा जी लंदन पहुँचते ही क्या करेंगे, यह जानने की सबको उत्सुकता है। आर. टी. सी. में क़रीब 100 मेंबर होंगे। ऐरे-गेरे नत्थू खैरे, अभी इसमें शामिल है। यह हिंदुस्तान के प्रतिनिधियों का कांफ्रेंस तो है नहीं गांधी जी को छोड़कर प्रतिनिधि कहे जाने वाले सज्जन सारे-के-सारे मनोनीत है चुने हुए नहीं। कुछ अच्छे हैं तो बहुत से ज़िद्दी हैं। असल में तो यह सब-के-सब सरकार के प्रतिनिधि हैं ऐसी हालत में अकेले गांधी जी क्या कर सकेंगे? और बहस में भी सरकारी काम में हाँ-में-हाँ मिलाने वाले ख़ैरख़्वाहों की आर.टी.सी. में कहाँ कमी है? ऐसी अवस्था में वहाँ के लोग सहज ही कह सकते है—गांधी जी आप ठीक कहते हैं मगर आपके मुल्क के लोग सहमत नहीं हैं,— इसलिए आपकी बात कैसे मान ली जाए।

    ऐसी स्थिति अवश्य ही समय की बर्बादी करने वाली होगी। कुछ काम ही बनेगा। इसलिए निश्चय ही गांधी जी इस झमेले में पड़ेंगे। “गढ़ां राजा मढ़ां जोगी!” जब तक गांधी जी भी अपनी मढ़ी में बात करेंगे तब तक कोई सुनने वाला नहीं। इसलिए विचार इस तरह से है कि आर. टी. सी. तो हाथी के दांत की तरह शोभा बढ़ाती रहे और गांधी जी खाने के दांत की तरह मंत्रिमंडल एवं वहाँ के नेताओं से अलग मंत्रणा करें, उन्हें यहाँ की हालत समझावें, वहाँ की जनता को उकसाए और इस तरह किसी निर्णय पर पहुँचे। यदि वहाँ के मंत्रिमंडल अलग बात करने की इच्छा प्रकट करें, तो गांधी जी फेडरल कमेटी में अपना वक्तव्य सुना देंगे और कहेंगे, मुझसे बहस करनी हो तो करो। इतने पर भी यदि गांधी जी को सब धान बाईस पसेरी बनाने की चाल रही तो गांधी जी तुरंत ही वापस चले आएँगे।

    मेरा अपना मत है कि जाते ही गांधी जी वापस आने का निर्णय सुना देंगे। मंत्रिमंडल गांधी जी से अलग मंत्रणा करेगा और शेष में गांधी जी ही आर. टी. सी. बन जाएँगे।

    फेडरेशन के ओर से सर पुरुषोतमदास को और मुझको मनोनीत करना चाहती है , ऐसा गांधी जी से शिमले में कहा गया। मैंने सर पुरुषोतमदास से बंबई में ही कह दिया था कि या तो तीनों जाएँगे या बिल्कुल जाएँगे। गांधी जी ने बंबई पहुँचते ही वाइसराय को एक ज़ोरदार चिठ्ठी लिखी है। मेरा ख़याल है कि गांधी जी पैर जम गए तो तीनों बुला लिए जाएँगे। वर्ना एक भी नहीं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : डायरी के कुछ पन्ने (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : घनश्यामदास बिड़ला
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1958
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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