घुमक्कड़ की पहचान

घुमक्कड़ की पहचान

जिस तरह उर्दू के प्रसिद्ध कवि नासिर काज़मी शाइर होने के लिए शाइरी करने को ज़रूरी नहीं समझते, उसी तरह मेरे ख़याल से घुमक्कड़ होने के लिए घुमक्कड़ी करना ज़रूरी नहीं है। 

घुमक्कड़ की एक अपनी अलग पहचान होती है, जैसे :  

पहली पहचान यह है कि उसे किसी जगह से बहुत मोह नहीं होता। वह जगह छोड़ने के लिए तैयार रहता है।

दूसरी पहचान यह है कि वह सीमाओं पर विश्वास नहीं करता। 

तीसरी पहचान यह है कि वह कम से कम सामान लेकर अर्थात् कम से कम भार उठाकर चलने पर विश्वास करता है। 

चौथी पहचान यह है कि वह ज्ञान/जानकारियों/सूचनाओं का भूखा होता है, पर एक बार दी गई सूचना को कई तरह से पुष्ट (कन्फ़र्म) करता है। 

पाँचवीं पहचान यह है कि वह विनम्र होता है। 

छठवीं पहचान यह है कि वह आशावान होता है। 

सातवीं यह है कि वह सहयोग लेने और देने पर विश्वास करता है। 

आठवीं यह कि वह भाषा से इतर अभिव्यक्ति के माध्यम खोजना जानता है। 

नवीं पहचान यह है कि वह खाने-पीने, रहन-सहन और विचारों में बहुत अड़ियल नहीं होता। 

और दसवीं पहचान यह है कि वह बहुत धार्मिक नहीं होता, पर हर धर्म को सम्मान देता है।

अगर यह किसी की पहचान है या बनती है, तो वह घुमक्कड़ है।

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