बहुत धीरे चलती थी मेरी काठगोदाम

बहुत धीरे चलती थी मेरी काठगोदाम

काठगोदाम एक्सप्रेस। गोरखपुर से होते हुए हावड़ा जंक्शन से चल कर काठगोदाम को जाने वाली। जो कई वर्षों से प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आ रही है। धीरे-धीरे। हथिनी की तरह मथते हुए। हल्के पदचापों सहित। डेढ़-दो घंटे देरी से―कुछ चुभलाते हुए।

ज़्यादा रुकती नहीं थी। काठगोदाम पर धीरे बहुत चलती थी। मैं मन-ही-मन सोचता था―कितनी आलसी है काठगोदाम। कहने को तो बाघ एक्सप्रेस―हरकतें कछुए जैसी। 

पिता जी जिस बटालियन में पोस्टेड थे, वहाँ पहुँचने के लिए काठगोदाम आख़िरी रेलवे स्टेशन था। उसके बाद बस से यात्रा करनी पड़ती थी। वह काठगोदाम एक्सप्रेस से घर आते थे। उसी से जाते थे। ...और उसी से ही हम लोगों को भी साथ ले जाते थे। माँ जब-जब पिता के साथ काठगोदाम में चढ़ीं―काठगोदाम को दुलार किया। अंतर्देशीय में जब-जब पति के आने की तारीख़ पढ़ी―काठगोदाम का इंतज़ार किया। पिता जब-जब उन्हें छोड़कर अकेले गए, उन्होंने काठगोदाम को लानतें भेजीं। माँ के लिए काठगोदाम एक्सप्रेस रेलिया बैरन थी। मेरे लिए पहली प्रेमिका। ...और एक फ़ौजी के लिए मात्र रेलगाड़ी।

काठगोदाम स्टेशन―जिसके गोदाम में एक भी काठ नहीं। काठगोदाम एक्सप्रेस―जिसके पुर्ज़ों में काठ के नामोनिशान तक नहीं। स्वभाव से अपने सरकारी नाम ‛बाघ’ के एकदम उलट। फ़ौजियों की उद्दंडता को माफ़ करने वाली। कभी पटरी से न उतरने वाली। सभी को समेटकर सही-सलामत घर पहुँचाने वाली। 

वह प्रिय थी, है। इसलिए, क्योंकि उसको आता देख मेरे दिल में दुगदुगी शुरू हो जाती थी। इसलिए, क्योंकि वह मेरी स्मृति में दर्ज पहली ट्रेन यात्रा है। इसलिए, क्योंकि काठगोदाम एक्सप्रेस में गंतव्य का सुकून था। इसलिए भी क्योंकि, काठगोदाम ने मुझे सिखाया कि प्रेमिकाओं का इंतज़ार किया जाना चाहिए। 

काठगोदाम यानी बाघ एक्सप्रेस। उसी ने मुझे पहली रेल यात्रा का सुख दिया। उसी ने उत्तरांचल से मेरा परिचय कराया। सैर कराई। बरेली जंक्शन दिखाया। सुखद स्मृतियों से निहाल किया। उसी ने मेरी माँ को प्रेम के साथ-साथ माइग्रेन भी दिया। उसी के कारण मैं जान पाया कि मेरे पिता क़ुलियों से ज़्यादा वज़न उठा सकते हैं। उनमें अतुल बल है। वे वज़नी सामानों के साथ-साथ मुझे भी उठा सकते हैं। उसी के कारण मैं जान पाया कि वे मज़बूत हड्डियों वाले कमज़ोर दिल के फ़ौजी हैं।

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मेरी काठगोदाम! 

आज भी जब मुझे घर जाने के लिए किसी ट्रेन में जगह की जद्दोजहद झेलनी पड़ती है तो माँ यही कहती है―काठगोदाम से आ जाना। वह तुम पर बहुत भरोसा करती हैं। उन्हें आज तक सिर्फ़ एक ही ट्रेन का नाम याद हो पाया। वह तुम्हारा नाम है—काठगोदाम! 

...ओ मेरी बंगाली सूरत वाली छुक-छुक गाड़ी! मेरी माँ तुम्हें बहुत याद करती हैं। ...और मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। तुम कभी समय पर मत आना। आना तो बीस बरस पहले की तरह आना। पाँवों की हल्की थाप लिए।

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