रवींद्रनाथ टैगोर के पत्र
रूस के पत्र (दस)
डी ‘ब्रेमेन’ विज्ञान की शिक्षा में पुस्तक पढ़ने के साथ आँखों से देखने का योग रहना चाहिए, नहीं तो उस शिक्षा का तीन-चौथाई हिस्सा बेकार चला जाता है। सिर्फ़ विज्ञान ही क्यों, अधिकांश शिक्षाओं पर यही बात लागू होती है। रूस में विविध विषयों के म्यूज़ियमों द्वारा
रूस के पत्र (चौदह)
लैंडडाउन इस बीच में दो-एक बार मुझे दक्षिण द्वार से सटकर जाना पड़ा है, वह द्वार मलय समीर का दक्षिण-द्वार नहीं था, बल्कि जिस द्वार से प्राण-वायु अपने निकलने के लिए रास्ता ढूँढ़ती है, वह द्वार था। डॉक्टर ने कहा—नाड़ी के साथ हृदय की गति का जो क्षण भर का
रूस के पत्र (छः)
बर्लिन, जर्मनी रूस घूम आया, अब अमेरिका की ओर जा रहा हूँ, इतने में तुम्हारी चिट्ठी मिली। रूस गया था, उनकी शिक्षा पद्धति देखने के लिए। देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। आठ ही वर्ष के अंदर शिक्षा के ज़ोर से लोगों के मन का चेहरा बदल गया है। जो मूक थे उन्हें भाषा
रूस के पत्र (नौ)
ब्रेमेन जहाज़ हमारे देश में पॉलिटिक्स को जो लोग खालिस पहलवानी समझते हैं, उन लोगों ने सब तरह की ललित कलाओं को पौरुष का विरोधी मान रखा है। इस विषय में मैं पहले ही लिख चुका हूँ। रूस का जार किसी दिन दशानन के समान सम्राट था, उसके साम्राज्य ने पृथ्वी का अधिकांश
रूस के पत्र (आठ)
अटलांटिक महासागर रूस से लौट आया, अब जा रहा हूँ अमेरिका की ओर। रूस यात्रा का मेरा एकमात्र उद्देश्य था, वहाँ जनसाधारण में शिक्षा प्रचार का काम किस तरह चलाया जा रहा है और उसका फल क्या हो रहा है, थोड़े समय में यह देख लेना। मेरा मत यह है कि भारतवर्ष की छाती
रूस के पत्र (तेरह)
सोवियत रूस के साधारण जन-समाज को शिक्षा देने के लिए कितने विविध प्रकार के उपाय काम में लाए गए हैं, इसका कुछ-कुछ आभास पहले की चिट्ठियों से मिल गया होगा। आज तुम्हें उन्हीं में से एक उद्योग का संक्षिप्त विवरण लिख रहा हूँ। कुछ दिन हुए मॉस्को शहर में सर्वसाधारण
रूस के पत्र (ग्यारह)
पिछड़ी हुई जातियों की शिक्षा के लिए सोवियत रूस में कैसा उद्द्योग हो रहा है—यह बात तुम्हें पहले लिख चुका हूँ। आज दो-एक दृष्टांत देता हूँ। यूराल पर्वत के दक्षिण में बास्किरों का निवास है। जार के ज़माने में वहाँ की साधारण प्रजा की दशा हमारे ही देश के समान
रूस के पत्र (बारह)
ब्रेमेन जहाज़ तुर्कमेनियों के विषय में पहले ही लिख चुका हूँ कि वे मरुभूमि निवासी संख्या में दस लाख हैं। यह चिट्ठी उसी का परिशिष्ट है। सोवियत सरकार ने वहाँ कौन-से विद्या मंदिर स्थापित करने का संकल्प लिया है, उनकी एक सूची दे रहा हूँ— बिगनिंग विद अक्टूबर
रूस के पत्र (सात)
ब्रेमेन स्टीमर (अटलांटिक) रूस से लौटकर आज फिर जा रहा हूँ अमेरिका के घाट पर। किंतु रूस की स्मृति आज भी मेरे संपूर्ण मन पर अधिकार किए हुए है। इसका प्रधान कारण यह है कि और-और जिन देशों में घूमा हूँ, वहाँ के समाज ने समग्र रूप से मेरे मन को हिलाया नहीं। उनमें
रूस के पत्र (चार)
मॉस्को से सोवियत व्यवस्था के बारे में दो बड़ी-बड़ी चिट्ठियाँ लिखी थीं। वे कब मिलेंगी और मिलेंगी भी या नहीं, मालूम नहीं। बर्लिन आ कर एक साथ तुम्हारी दो चिट्ठियाँ मिलीं। घोर वर्षा की चिट्ठी है ये, शांति निकेतन के आकाश में शाल वन के ऊपर मेघ की छाया और
रूस के पत्र (पाँच)
बर्लिन, जर्मनी मॉस्को से तुम्हें मैं एक बड़ी चिट्ठी में रूस के बारे में अपनी धारणा लिख चुका हूँ। वह चिट्ठी अगर तुम्हें मिल गई होगी, तो रूस के बारे में कुछ बातें तुम्हें मालूम हो गई होंगी। यहाँ किसानों की सर्वांगीण उन्नति के लिए जितना काम किया जा रहा
रूस के पत्र (तीन)
मॉस्को बहुत दिन हुए तुम दोनों को पत्र लिखे। तुम दोनों की सम्मिलित चुप्पी से अनुमान होता है कि वे युगल पत्र मुक्ति को प्राप्त हो चुके हैं। ऐसी विनष्टि भारतीय डाकखानों में आजकल हुआ ही करती है, इसीलिए शंका होती है। इसी वजह से आजकल चिट्ठी लिखने को जी नहीं
रूस के पत्र (दो)
मॉस्को स्थान रूस! दृश्य, मॉस्को की उपनगरी का एक प्रासाद भवन। जंगल में से देख रहा हूँ—दिगंत तक फैली हुई अरण्यभूमि, सब्ज़ रंग की लहरें उठ रही हैं, कहीं स्याह-सब्ज़, कहीं फीका बैंगनी मिलमा सब्ज़, कहीं पीले-सब्ज़ की हिलोरें-सी नज़र आ रही हैं। वन की सीमा