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मार्कस ऑरेलियस

121 AD - 180 AD

मार्कस ऑरेलियस की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 1

जब कभी अपने हृदय को प्रफुल्लित करना चाहो, अपने निकटवर्तियों के शुभ गुणों को चित्त में लाओ—-जैसे कि एक की स्फूर्ति, दूसरे की विनम्रता, तीसरे की उदारता, चौथे की ऐसी ही कोई अच्छाई।

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