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आइज़क न्यूटन

1643 - 1727

आइज़क न्यूटन की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 1

मैं नहीं जानता कि संसार के समक्ष मैं क्या लग सकता हूँ किंतु स्वयं को मैं केवल एक ऐसा लड़का प्रतीत होता हूँ जो सागर तट पर खेल रहा है, और जो अधिक चिकनी गुटिका या अधिक सुन्दर सीपी को जब-तब पा लेने में स्वयं को लगा रहा है जबकि सत्य का विशालतर महासागर मेरे सम्मुख पूर्णतया अनदेखा पड़ा है।

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हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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