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एच.जी. वेल्स

1866 - 1946 | लंदन

एच.जी. वेल्स की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 3

धन—अन्य वस्तुओं के समान ही एक धोखा और निराशा है।

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अंतरराष्ट्रीयता राष्ट्रों का राष्ट्रवाद है।

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धन क्या है? निर्धनों का लूटा गया श्रम।

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