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श्री हठी

श्रीहित हरिवंश की शिष्य-परंपरा के कला-कुशल और साहित्य-मर्मज्ञ भक्त कवि।

श्रीहित हरिवंश की शिष्य-परंपरा के कला-कुशल और साहित्य-मर्मज्ञ भक्त कवि।

श्री हठी की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 5

अज सिव सिद्ध सुरेस मुख, जपत रहत निसिजाम।

बाधा जन की हरत है, राधा राधा नाम॥

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कीरति कीरति कुँवरि की, कहि-कहि थके गनेस।

दस सत मुख बरनन करत, पार पावत सेस॥

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राधा राधा कहत हैं, जे नर आठौ जाम।

ते भवसिंधु उलंघि कै, बसत सदा ब्रजधाम॥

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राधा राधा जे कहैं, ते परैं भव-फंद।

जासु कन्ध पर कमलकर, धरे रहत ब्रजचंद॥

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श्री बृषभानु-कुमारि के, पग बंदौ कर जोर।

जे निसिबासर उर धरै, ब्रज बसि नंद-किसोर॥

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सवैया 4

 

कवित्त 14

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