राजेंद्र यादव मार्फ़त मनमोहन ठाकौर
शायद 1955 के अंत या संभव है 1956 के आरंभ होने तक राजेंद्र यादव ने कृष्णाचार्य का साथ छोड़कर अपने रहने की व्यवस्था गड़ियाहट के चौराहे से सटे 'यशोदा भवन' में कर ली। यहीं रहते समय उसकी छोटी बहिन, सुमन छुट्टियाँ बिताने कलकत्ता आई। सुमन अक्सर दिन में मेरे