शेक्सपीयर के गाँव में

shekspiyar ke ganw mein

विट्ठलदास मोदी

विट्ठलदास मोदी

शेक्सपीयर के गाँव में

विट्ठलदास मोदी

और अधिकविट्ठलदास मोदी

    इंग्लैंड में लोगों की घुमने की प्रवृत्ति इतनी प्रबल है कि लगता है, जैसे ये घूमने के पीछे पागल है। हर शनिवार को अपना घर छोड़कर ये सौ-पचास मील दूर अकेले, दुकेले या परिवार के साथ कहीं-न-कहीं भाग ही जाते हैं। साल में एक दो बार दो-दो तीन-तीन सप्ताह की यात्रा भी करते हैं। जो जहाँ जाता है वहाँ से वहाँ के चित्रों के पोस्टकार्ड अपने मित्रों को भेजता है, जो मित्रों द्वारा बड़ी शान और अभिमान के साथ रखे जाते हैं और मित्रता के क़ीमती चिन्ह समझे जाते हैं।

    जो धनी हैं और जिनके पास मोटर है, वे मोटर के साथ दौड़ने वाला एक घर भी ख़रीदते हैं। वह दो पहियों पर चलने वाला बढ़िया कमरा होता है और सजा-सजाया ख़रीदा जाता है। सजावट में एक पलंग, दो कुर्सीयाँ, रसोईघर के सारे बर्तन, अलमारी, चित्र आदि होते हैं। मोटर के पीछे इसे जोड़ लेते हैं और सड़कें यहाँ बढ़िया होने के कारण मोटर इसे आराम से खींचती रहती है। कहीं चले गए, किसी खुली जगह में मोटर इसे आराम से खींचती रहती है। कहीं चले गए, किसी खुली जगह में मोटर खड़ी कर दी, पकाया-खाया, घूमे-तैरे, धूप में लेटे, रात को कमरे में सोए और छुट्टी समाप्त होते ही कामपर दौड़ पड़े। इंग्लैंड की किसी भी ख़ूबसूरत और खुली जगह में ऐसे बीस-तीस मोटर के साथ चलनेवाले कमरे खड़े देखे जा सकते हैं।

    जिनके पास अधिक पैसे हैं वे फ़्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, अमेरीका आदि की यात्रा करते हैं। जिनके पास नही है वे धीरे-धीरे पैसे इकट्ठा करते हैं और ऐसी यात्राएँ करते हैं। बड़ी यात्राएँ, बड़ी उम्र के लोग ही करते हैं, क्योंकि उस समय आमदनी अधिक हो जाती है। जवानी में या प्रारंभ करने पर तो लोग चार-पाँच पौंड ही प्रति सप्ताह पाते हैं, जिसमें केवल गुज़र-बसर का सामान इकट्ठा किया जा सकता है।

    यहाँ घूमने की जगहों में ‘स्टेट फोर्ड ऑन एवन’ भी अच्छा समझा जाता है, जहाँ शेक्सपीयर पैदा हुए थे। यह जगह देखने इस देश के लोग तो जाते ही हैं, विदेश के लोग भी बहुत जाते हैं। मैंने सोचा प्राकृतिक चिकित्सकों से तो मिल ही रहा हूँ, क्यों मैं शेक्सपीयर का स्थान भबी देख आऊँ।

    एडिनबरा से लौट रहा था। वहाँ से स्टेट फोर्ड का टिकट दो पौंड में ख़रीदा। गाड़ी सुबह साढ़े दस बजे चली और स्टेट फोर्ड साढ़े चार बजे पहुँच गई। स्टेट फोर्ड कोकी पच्चीस हज़ार की आबादी का गाँव है। गाँव इसे नही कहना चाहिए, क्योंकि गाँव कहते ही अपने यहाँ के झोपड़े, कच्ची सड़कें, लाई-गट्टे की हलवाई की दुकान सामने जाती है। इसे बंबई की छोटी नक़ल कहा जा सकता है। बल्कि सडकों की सफ़ाई, बाहर की सजावट के हिसाब से उससे भी बढ़िया।

    यात्री के लिए यहाँ एक और बड़ी सुविधा है-वह है रहने का स्थान। हिंदुस्तान में तो धर्मशाला होती है, यहाँ ऐसी कोई चीज़ नही है, पर रहने की जगह यहाँ आसानी से मिल जाती है। होटल तो जगह-जगह बहुत से होते ही हैं, उससे भीं ज़्यादा होते हैं बेड एंड प्रेरफांट स्टेसेज सोने का कमरा और सुबह नाश्ता देने वाली जगहे। वह एक अच्छा घर होता है, जिसे महिलाएँ ही चलाती है, जिन्हें गृहस्वामिनी रहते हैं। ये जगह ज़्यादा ज्ञात और होटलों से काफ़ी लंबी होती है। घर में दस-बारह कमरे रहते हैं। तीन-चार गृहस्वामीनीं अपने लिए रखती हैं, शेष भाड़े पर चलाती रहती हैं। स्टेशन से उतरते ही मैंने स्टेशन के एक कर्मचारी से पूछा “यहाँ नज़दीक कोई रहने की जगह बता सकेंगे”

    “यह देखिए चौराहा, वहाँ ऐसे कई घर हैं। तीन मिनट में आप वहाँ पैदल चलकर पहुँच जाएँगे।

    मुझे नज़दीक जगह इसलिए चाहिए थी कि सामान यहाँ ख़ुद ढोना पड़ता है। कुली नही मिलता और थोड़ी देर के लिए टैक्सी लेना फ़िज़ूल ख़र्ची लगती है। मेरा बैग आठ-दस सेर का था। और वह भी मुझे ढोते अखर रहा था। कभी बैग इस हाथ में लेता, कभी उसमे। मैंने दरवाज़े पर पहुँच कर घंटी बजाई। एक महिला उपस्थित हुई।” मुझे एक रात के लिए जगह चाहिए।’’

    “दुःख है कि आज मेरे पास कोई कमरा नही है।’’ दूसरे घर गया, तीसरे घर गया और चौथे घर जाने पर भी जब यही उत्तर मिला तो मुझे लगा कि ये गृहदेवियाँ मेरे काले रंग से भड़क रही है। तो क्या मुझे यहाँ रहने रहने की जगह नही मिलेगी? ज़रा अवसाद-सा आया तभी एक पुलिसमैन दिखाई दिया। पुलिसमैन यहाँ बड़ा सहायक होता है। उसे देखते ही मैं समझ गया कि अगर उसे अपनी कठिनाई बताऊ तो वह मेरी कठिनाई दूर होने पर ही मेरा साथ छोड़ेगा। उससे जगहों के पते माँगे। उसने कहा, “यह बगल में ही तो है। यहाँ पूछ देखिए, अन्यथा दूसरे मोड़पर पाँच-सात घर और है।” उस बगल की जगह में मुझे एक कमरा मिल गया।

    गृहदेवी वाली, “देखिए, कमरे के किराए और नाश्ते के 15 शिलिंग (अर्थात दस रुपए) होंगे। मैं इसीलिए बता रही हूँ कि सुबह आप बिल देते वक़्त झगड़ा करें। आपके देश का एक युवक इसी विषय पर मुझसे झगड़ पड़ा था।’’

    “आप दाम तो बहुत वाज़िब बता रही है, पर मैं नाश्ता आपसे नही लूँगा। मैं केवल फल-दूध लेता हूँ।’’

    “मैं आपको फल-फूल दूँगी, आपको ताज़े फल तो नही, मुरब्बा ज़रूर मिलेगा, पर आप नाश्ता ले या लें, ख़र्च यही होगा।’’

    “आप नाश्ते की चिंता करें, मैं आपको 15 शिलिंग ही दूँगा, मुझे आप कल सुबह एक पौंड दूध वाली चार बोतले दें और हो तो दो पौंड दूध अभी चाहिए।’’

    उस बुढ़ियाने मुझे दो पौंड दूध की एक बोतल तुरंत लाकर दे दी और कमरा दिखाने ले चली। मुझे एडिनबरा में साढ़े सात शिलिंग से केवल कमरा मिला था, लंदन में 12 शिलिंग में कमरा और नाश्ता, पर वह कमरा एक छोटी-सी रेशम की बड़ी ही कलापूर्ण हल्की रज़ाई थी, नहानघर और पख़ाना भी बहुत बढ़िया था। इस्तेमाल के लिए दो सुंदर स्वच्छ मोटे तौलिए, साबुन की नई बट्टी भी थी। मैंने कमरे में सामान रखा, हाथ-मुहँ धोया, कुछ फल खाए, एक पौंड दूध पीया, कंधे पर कैमरा लटकाया और नीचे इन देवीजी की सेवा में फिर हाज़िर हुआ, “शेक्सपीयर के जन्मगृह का पता बता सकें तो बड़ी कृपा होगी।’’

    “अगले चौराहे से बढिए, पहले मोड़ पर दाहिनी तरफ़ मुडिए, फिर जो चीरास्ता आए, उससे पूरब दिशा को जाइए। सौ गज पर शेक्सपीयर का जन्म गृह है।’’

    “कितने मिनट में मैं वहाँ चलकर पहुँच जाऊँगा?”

    “अगर रास्ता भूले नही तो चार-पाँच मिनट में।’’

    मैं चल पड़ा और पाँच मिनट में उस गृह के दरवाज़े पर था। दस बारह यात्री और थे, जो खिडकियों से घर में झाँक रहे थे। इस समय सात बजे थे और घर बंद हो गया था। घर दर्शनार्थ सुबह नौ बजे से शाम को सात बजे तक खुला रहता है। शाम के सात बजे थे, पर दिन था। मैंने घर का और घर की सड़क चित्र लिया। फ़ोटो यहाँ शाम को आठ बजे तक मज़े में लिया जा सकता है, सूर्य दस बजे डूबता है, अत रोशनी आठ बजे तक ठीक फ़ोटो के लायक होती है। कई यात्रियों से बात की और एक के साथ शेक्सपीयर मेमोरियल थियेटर की ओर बढ़ चला। जिस युवक से मैं बात कर रहा था, वह ऑस्ट्रेलिया का था और दो दिनों से यहाँ था। उसने बड़े मित्रभाव से बात की और थियेटर के नज़दीक मुझे पहुँचा कर वापस चला गया। उसे 8 बजे की ट्रेन से लंदन जाना था।

    थियेटर स्टेट फोर्ड ग्राम के मध्य में एक पार्क-बेनक्राफ्ट गार्डन्स में है। इस पार्क बीच से एवन नदी बहती है। पार्क से ही नदी को पार करने के लिए पक्का पुल है। नदी के किनारे यह अमरीकी डिज़ाइन का बढ़िया थियेटर अधिकतर अमरीका के दानियों के धन से 1632 में बना था। नदी के पार से देखने पर यह बड़ा ही भव्य लगता है। सारी कारीगरी ईंटो को सजाने की है। कहीं कोर-कटाव या महराव नही है।

    इसके अंदर दर्शकों और अभिनेताओं की सुख-सुविधा का बड़ा ध्यान रखा गया है। खेल यहाँ कभी-कभी होते हैं-बाहर से शौकीनों की टोली या व्यापारिक थिएट्रिकल कंपनियाँ यहाँ खेल दिखाकर अपने को धन्य मानती है।

    इस समय खेल हो रहा था और एक घंटा पहले शुरू हो चुका था, पर टिकट तो कल के लिए भी नही मिला, एक सप्ताह की सारी बुकिंग हो चुकी थी। किसी तरह कल का टिकट लिया जा सकता था, पर मैं तो कल शाम को चार बजे स्टेट फोर्ड छोड़ देने वाला था, थियेटर की तस्वीर तो खींची ही। नदी में बत्तख तैर रही थी उनकी तस्वीर ली नदी में तैरते और नाव खेते लोगों की ली और दो-तीन बाग़ के फलों के भी खींचे।

    इसी पार्क में जहाँ एक ओर थियेटर है, दूसरी ओर ऊँचे चबूतरे पर शेक्सपीयर की मूर्ति स्थापित की गई है। चबूतरे के चारों ओर शेक्सपीयर के नाटकों के चार विशेष पात्रों 1-बे फ़ास्ट 2-प्रिंस हॉल 3-हैमलेट 4-लेडी मेकबेथ की मूर्तियाँ हैं। लेडी मेकबर्थ की स्मृति देखते ही बनती है। वह हत्या कर चुकी है और शेक्सपीयर वहाँ तावे दार डर से खडी कराह रही है। मूर्तियों का क्या कहना मूर्तियाँ बड़ी जानदार बनाई हैं। ये चारों मूर्तियाँ चार शेक्सपीयर की मूर्ति बनाने में बारह वर्ष लगे थे। ये बनी थी पेरिस में और बनवाई थी गोवड ने। इन्होने ये मूर्तियाँ इस गाँव को 1888 में भेंट की थी और कुछ दिन बाद ही ये लोगों के दर्शनार्थ इस पार्क में स्थापित कर दी गई थी। जिस चबूतरे पर शेक्सपीयर की मूर्ति रखी हुई है उसके चारों पार्श्वों पर शेक्सपीयर की चार कविताएँ खुदी हुई हैं। निम्नलिखित कविता यहाँ मुझे बहुत जँची—

    Life’s but a walking shadow,

    That shuts and poets a poor prayer

    His hour up on the stage

    And then is heard no more

    जीवन एक चलती फिरती छाया है। यह ग़रीब की प्रार्थना के समान है। छाया का अस्तित्व कहाँ है? यह तो सूर्य से संबद्ध है और कुछ समय के लिए ही संसार रुपी रंग-मंच पर दौड़-धूप करती, अभिनय करती, देखी जा सकती है। अभिनय समाप्त हो जाता है, छाया मिट जाती है और साथ ही इसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है।

    इस अमर नाटककार के स्मृति-स्तंभ पर जीवन, संसार और अभिनय का यह विश्लेषण मुझे बहुत भाया। मै इसके चारों ओर देख कर घूमता रहा, मूर्तियों की मुखमुद्रा को परखता रहा, फिर थोडा स्टेट फोर्ड की सड़कों पर घूमा। सड़कें पाँच-चार ही हैं। थोड़ी ही देर में सारे गाँव ओर सड़कों का भूगोल समझ में गया और मैं अपने स्थान पर रात के नौ बजे लौट आया।

    सुबह दस बजे नहा-धोकर तथा नाश्ता कर मैं शेक्सपीयर का जन्म-गृह देखने पहुँचा। इस समय यह घर दर्शनार्थियों से भरा हुआ था। इस घर के चारो तरफ़ नए घर बन गए है, उनकी सजावट भी नई ही है, पर शेक्सपीयर के जन्म-गृह को उसके पुराने रूप में ही रखने की कोशिश की गई है। इस घर के ऊपर के एक कमरे शेक्सपीयर सन 1564 की 23 वी अप्रैल को पैदा हुए थे। नीचे के कमरे में इनके पिता दुकान करते थे और ऊपर ये लोग रहते थे। यह घर उनके पिता के बाद कई हाथों में गया पर सन 1847 में शेक्सपीयर मेमोरियल ट्रस्ट ने इसे ख़रीद लिया। जिस कमरे में शेक्सपीयर पैदा हुए थे उसमे एक चारपाई है, बिस्तर लगा है, बगल में जमीन पर एक काठ का खटोला रखा है, कुर्सी है, चिरागदान है, पर इसका यह अर्थ नहीं है कि इसी खटोले पर शेक्सपीयर खेले थे। उनका तो पुराना कुछ प्राप्त हुआ ही नहीं, पर ये चीज़ें हैं उनके ही समय की ओर इसलिए इकट्ठी की गई हैं कि दर्शनार्थियो को ज्ञात हो सके कि उस समय ऐसी ही चीज़ें व्यवहार में आती थी। इसी तरह चीज़ों से रसोईघर भी सजाया गया है, जिसमें बर्तनों के आलावा स्टूल, संदूक, सुराही, अलमारी वग़ैरह भी है। दुसरे कमरे में शेक्सपीयर के लिखे पत्र, उस समय का स्टेट फोर्ड गाँव का चित्र आदि हैं। एक अलमारी में तमग़े हैं, जो सन 1730 से 1916 तक लोगों ने बनवाकर अच्छे अभिनेताओं को दिए थे। सभी तमग़ों पर शेक्सपीयर की आकृति बनी हुई है।

    सभी चीज़ें और वह घर बड़े करीने से रखा गया है। हर कमरे में हर वस्तु के संबंध में बताने वाला नियुक्त है, जो दर्शक के हर प्रश्न का उत्तर देता है और हर चीज़ के समझने में सहायक होता है।

    घर के पीछे बाग है और वह भी ठीक उसी तरह रखा गया है, जिस तरह शेक्सपीयर के समय में रहा होगा।

    इस घर से थोड़ी दूर पर शेक्सपीयर की दोहित्री का घर है। इस घर में शेक्सपीयर अपने अंतिम दिनों में रहे थे और सन 1616 में मरे थे। इसकी बहुत सी चीज़ें उसी समय की है। उनकी दोहित्री और उसके पति का चित्र भी है। घर में शेक्सपीयर के समय के इंग्लैंड का दर्शन कराने वाली बहुत सी चीज़ें रखी हैं, जिन्हें देखकर शेक्सपीयर के विद्यार्थी को शेक्सपीयर को समझने में बड़ी सहायता मिलती है।

    सन 1630 में शेक्सपीयर वर्ष प्लेस ट्रस्ट ने यह घर भी ख़रीद लिया, जिसमें शेक्सपीयर की माँ रहती थी। वह एक बड़े किसान की लड़की थी। और उनके सात बहने थी। यह घर स्टेट फोर्ट से लगभग दस मील की दूरी पर है। इसे दिखाने के लिए बस सर्विस है। घर पुराने समय के किसान का है और इसमें बहुत से फेर बदल नहीं हुआ है। घर में घर का रसोईघर और रहने के कमरे उसी समय की चीज़ों से सजाये गए हैं और घर के पिछवाड़े एक बड़ा अहाता है। बीच में पानी का पुराना नल है। आहाते के चारो ओर पशु रखने, चारा और घास इकट्ठा करने की कोठरिया हैं। एक कमरा ऐसा भी है जिसमें सात सौ से अधिक कबूतरों के जोड़े पलते थे। पिछवाड़े का यह भाग उस समय की गाँव की चीज़ों का नुमाइशघर बना दिया गया है और उसमे आटा पीसने की चक्की किसानी के औज़ार खेल का सामान अपराधी को सजा देने के काम आने वाली चीज़ें, उस समय के रईसों की फिटन, कमरतोड़ साईकिल, दूध दुहने, दही ज़माने, मक्खन निकालने के बर्तन, तरह तरह के हल, हसियाँ, काटने निराने के खुरपे, लुहार की भाथी, उसके काम में आने वाले औज़ार आदि इकट्ठे किए गए हैं। इनमे बहुत सी चीज़ों का वर्णन शेक्सपीयर के नाटकों में आया है, अत: इन चीज़ों को देखना शेक्सपीयर के विद्यार्थी के लिए बहुत उपयोगी है।

    शेक्सपीयर की यादगार में प्रतिवर्ष यहाँ बर्मिघम विश्वविद्यालय की ओर से जुलाई और अगस्त के पाँच सप्ताहों में शेक्सपीयर पर बड़े बड़े विद्वानों के बीस पचीस भाषण कराए जाते हैं और 23 अप्रैल को प्रतिवर्ष कवि का जन्मदिन मानने के लिए संसार के देशों से प्रतिनिधि इकट्ठे होते हैं।

    मैंने लंदन आकर इलाहाबाद म्यूज़ियम क्यूरेटर अपने मित्र श्री सतीशचंद्र काला को ये बातें सुनाई तो वह दंग रह गए। कहने लगे बनारस का जिला इलाहाबाद म्यूज़ियम के मातहत है। मैं बनारस जिले में श्रीप्रेमचंद्र का जन्मग्रह देखने गया था। वह गिरने की अवस्था में है। मैंने सरकार को रिपोर्ट दी कि उस घर की रक्षा होनी चाहिए, पर कोई सुनवाई अबतक नहीं हुई। सरकार ने उस घर पर केवल एक तख़्ती लगवा दी है, जिस पर लिखा है—प्रेमचंद इस घर में पैदा हुए थे। और इस इमारत के ऊपर यही बात अँग्रेज़ी में लिख दी गई है। मैं श्री काला साहब से ये बातें सुनकर अपने को अपराधी अनुभव करने लगा। मैं हज़ारों मील की यात्रा कर शेक्सपीयर का स्थान तो देखने गया, पर उन प्रेमचंद के, जिनके उपन्यास पढकर मैंने हिंदी सीखी, जिनके उपन्यास भारत एक ग्रामवासियों का ह्रदय समझने में मेरे सहायक हुए, जिनके पात्र सूरदास को मैंने कई बार मन ही मन प्रणाम किया है जन्मग्रह की तीर्थयात्रा मैंने अभीतक नहीं की। सरकार तो जनता की ही प्रतिनिधि होती है। जैसी जनता होती है वैसी ही सरकार उसे मिलती है। जिस दिन जनता अपने साहित्यकों का सम्मान करना सीख जाएगी उस दिन कोई साहित्यकार भूखो मरेगा और सरकार ही उसकी उपेक्षा कर सकेगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विठ्ठलदास मोदी की यूरोप यात्रा (पृष्ठ 88)
    • रचनाकार : विठ्ठलदास मोदी
    • प्रकाशन : आरोग्य मंदिर गोरखपुर
    • संस्करण : 1961

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