सामूहिक खेत

samuhik khet

रामकृष्ण बजाज

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सामूहिक खेत

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और अधिकरामकृष्ण बजाज

    1 जुलाई का पूरा दिन हमने ल्यूबरत्से के एक सामूहिक खेत (कोलखोज़) में बिताया। ल्यूबरत्से कीव से लगभग 36 मील है। इस खेत का नाम था 'स्लाहेत दो कोम्यूनिज़्म', अर्थात् 'साम्यवाद की ओर'। सामूहिक खेत के अध्यक्ष ने हमारा स्वागत किया और फ़ार्म की सारी प्रवत्तियों की विस्तृत जानकारी दी। हमेशा की तरह उन्होंने कई आँकड़े पेश किये, जो काफ़ी प्रभावोत्पादक थे।

    इस फ़ार्म पर 1200 मकान है, जिनकी जनसंख्या लगभग 4000 है। संपूर्ण फ़ार्म लगभग 15000 एकड़ भूमि पर स्थित है, जिसमें से 10000 एकड़ ज़मीन पर खेती की जाती है। 500 आदमी और 1100 स्त्रियाँ खेत में काम करते है। फ़ार्म पर एक माध्यमिक स्कूल, एक छोटा-सा दवाख़ाना, एक बच्चों का बग़ीचा; नौ सहकारी दुकाने और एक उपभोक्ता-सहकारी समिति है। एक क्लब भी उस समय बन रहा था। साथ ही फ़ार्म के पास दस कंबाइन मशीनें, 23 ट्रैक्टर, जानवरों का चारा मिलाने वाली तीन मशीनें, 23 ट्रकें और मोटरें, चुकदर काटने की चार मशीनें आदि भी है। 371 हॉर्सपावर की 76 बिजली की मोटरें, घोड़े, बैल आदि है सो अलग।

    कुल काम का लगभग 65 प्रतिशत काम मशीनों द्वारा ही किया जाता है। अनाज की खेती के अलावा वे पशु-पालन, सब्ज़ी हरी घास भी पैदा करते है। कुल कृषियोग्य भूमि में से 100 एकड़ भूमि चुकदर की खेती के लिए सुरक्षित है। चुकदर से वे चीनी बनाते है। शेष में से 2000 एकड़ पर वे गेहूँ की खेती करते है और बाक़ी बची ज़मीन अन्य खाद्यान्नों तथा आलू आदि सब्ज़ियों के लिए है। उनका प्रति एकड़ उत्पादन इस प्रकार है—गेहूँ 50 सेर, मक्का 17 सेर, चुकदर 12500 सेर, और आलू 7000 सेर। पशुओ में उनके पास 2000 गायें थी, जिनमें से 600 उस समय दूध देती थी। 2000 सूअर, 1000 भेडें, 10000 बत्तख़ें और मुर्ग़ाबिया तथा 500 छत्ते शहद की मक्खियों के थे। प्रत्येक गाय औसतन 15-16 सेर दूध प्रतिदिन देती थी। साल भर में उसका औसत दूध 3700 सेर बैठता था। उनका विचार था कि वे यह औसत 4000 सेर तक बढ़ा लेंगे। पूरे फ़ार्म की डेयरी का कुल वार्षिक उत्पादन इस प्रकार था—20 लाख सेर दूध, 27 लाख सेर मांस और 136000 अंडे।

    फ़ार्म के संपूर्ण उत्पादन को तीन भागों में बाँट दिया जाता है। एक भाग तो सरकार को सौंप दिया जाता है, दूसरा भाग फ़ार्म के लिए रख लिया जाता है और तीसरा भाग फ़ार्म पर काम करने वाले परिवारों में बाँट दिया जाता है। ज्वार और बाजरा मुख्यतः पशुओं को खिला दिया जाता है। गायों को थोड़ा गेहूँ भी खिलाया जाता है। घटिया क़िस्म का चुकदर और तरबूज़ भी पशुओं के काम आता है। किसान अपने उत्पादन का कुछ भाग खुले बाज़ार में बेच सकते हैं। शेष उत्पादन सरकार की मंडी-समिति के द्वारा ही बेचा जाता है। स्वयं अपनी ज़मीन के उत्पादन पर किसान का ही स्वामित्व होता है। साथ ही सामूहिक खेत के उत्पादन में से भी उसे कुछ भाग मिलता है। सोवियत क़ानून के अनुसार सारी ज़मीन राष्ट्र की, अर्थात् जनता की होती है। ज़मीन का कुछ भाग लोगों को दे दिया जाता है, लेकिन केवल सामूहिक खेतों के उपयोग के लिए। सामूहिक खेत पर रहने वाले प्रत्येक परिवार को एक एकड़ ज़मीन दी जाती है, भले ही परिवार में कितने ही सदस्य हों। यदि किसान फ़ार्म छोड़कर शहर में अन्य धंधा करने जाना चाहता है, तो उसकी ज़मीन सामूहिक खेत में शामिल कर ली जाती है। लेकिन यदि उस किसान का परिवार फ़ार्म पर ही रहना चाहता है तो वह ज़मीन परिवार के पास ही रहती है। इस प्रकार मिली ज़मीन पर यदि किसान मकान बनवा लेता है, तो उस मकान पर किसान का ही स्वामित्व रहेगा। यदि किसान पास के शहर में अन्य धंधा करता है और उस मकान में रहना चाहता है तो वह रह सकता है।

    यदि किसान व्यक्तिगत खेत पर अधिक मेहनत करे तो उसकी आय बढ़ जाती है। आमतौर पर रूसी किसान हैं भी मेहनती। खेती में सामूहिक फ़ार्म से उन्हें घोड़ों, ट्रैक्टरों और अन्य मशीनों की सहायता मिल जाती है। किसान की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर उसके परिवार का अधिकार हो जाता है और उसकी पत्नी परिवार की मुखिया बनती है। जब कोई युवक किसान विवाह करता है तो उसे नई ज़मीन मिलती है और वह अपने नए परिवार के साथ नया घर बसाता है।

    सामूहिक खेत की कुल आय का 60 प्रतिशत सदस्यों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक परिवार ने कुल कितने घंटे और कितना काम किया, इस आधार पर यह वितरण किया जाता है। अलग-अलग प्रकार के कार्यों के लिए अलग-अलग दरें निश्चित हैं। सामूहिक फ़ार्म से प्रत्येक परिवार को औसतन 18000 से 20000 रूबल वार्षिक की आय हो जाती है। इसमें वस्तुओं की शक्ल में जो आय होती है, वह भी सम्मिलित है। इसके अलावा उसकी निजी आय होती है सो अलग। अधिक आय के लिए अतिरिक्त काम करने के लिए वे स्वतंत्र हैं। इसका एक ठोस उदाहरण हमारे देखने में आया। तीन जनों का एक परिवार था, जिसमें एक लड़की और उसके माता-पिता थे। वे तीनों जने काम करते थे और उनकी कुल आय 37000 रूबल थी। प्रत्येक व्यक्ति के लिए सप्ताह में छः दिन और प्रतिदिन आठ घंटे काम करना अनिवार्य है।

    खेत की कुल आय का 60 प्रतिशत सदस्यों के बीच बटने के बाद शेष 40 प्रतिशत में से 20 प्रतिशत टूट-फूट की मरम्मत नए निवेश (इनवेस्टमेंट) के लिए सुरक्षित रहता है। यह राशि मुख्यतः भवन निर्माण, मशीन, पशु, आदि पर ख़र्च की जाती है। 12 प्रतिशत एक विशेष कोष में चला जाता है। यह कोष सामूहिक खेत के वृद्ध सदस्यों की सहायता के लिए इकट्ठा किया जाता है और इसकी राशि वृद्ध सदस्यों को पेंशन के रूप में मिलती है। 6 प्रतिशत राशि रासायनिक पदार्थों, पेट्रोल, तेल आदि पर ख़र्च हो जाती है और शेष 2 प्रतिशत सांस्कृतिक कोष में जमा हो जाती है।

    सामूहिक फ़ार्म सरकार को 8 प्रतिशत आयकर देता है। यह कर 'जनता की ज़मीन' का उपयोग करने के मुआवज़े के रूप में दिया जाता है। अन्य कोई भूमि-कर उन्हें नहीं देना पड़ता। प्रत्येक किसान अपना निजी आयकर देता है। जिस वर्ष हम वहाँ थे, उस वर्ष और उसके एक वर्ष पहले का मिलाकर, सामूहिक फ़ार्म ने सब प्रकार के करों के 685000 रूबल शासन को दिए, जिसमें 700000 रूबल कृषि कर और 285000 रूबल स्वेच्छा से दिया गया सुरक्षा-कर बीमा राशि थी।

    फ़ार्म के सब सदस्यों को मिलाकर एक सामान्य समिति बनती है, जो संपूर्ण फ़ार्म की प्रधान होती है। अपनी बैठक में यह समिति अपना सभापति, व्यवस्थापक-मंडल, और नियंत्रण आयोग (कंट्रोल कमीशन) का सभापति चुनती है। आने वाले वर्ष का उत्पादन कार्यक्रम भी यही समिति प्रतिम रूप से स्वीकार करती है। वर्ष में तीन-चार बार इस समिति की बैठक होती है और वह चाहे तो फ़ार्म के विधान में परिवर्तन कर सकती है। नियंत्रण-आयोग इस समिति के सामने अपनी रिपोर्ट पेश करता है। व्यवस्थापक-मंडल और नियंत्रण-आयोग की बैठके महीने में कम-से-कम दो बार होती है। उत्पादन के सुनियंत्रण के उद्देश्य से नियंत्रण-आयोग कई छोटे-छोटे विभागों में बँटा होता है और प्रत्येक विभाग के अधीन पाँच ब्रिगेड होती है।

    इस आयोग के सभापति, उपसभापति तथा अन्य विशेषज्ञ फ़ार्म के वैतनिक कार्यकर्ता होते हैं। व्यवस्थापक-मंडल में इक्कीस सदस्य हैं, लेकिन वास्तव में इनमें से कुल छः सदस्य ही व्यवस्था आदि का काम करते है। इन छः सदस्यों को खेतों में काम नहीं करना पड़ता और इन्हें फ़ार्म से वेतन मिलता है। लेकिन नियंत्रण-आयोग के सदस्यों को स्वयं खेती का काम करना पड़ता है।

    तथ्यों और आकड़ों की जानकारी प्राप्त करके हम खेत को प्रत्यक्ष देखने के लिए निकले। इसका विस्तार वहुत विशाल था। हर जगह हमें मोटरों में बैठकर ही जाना पड़ा। फ़ार्म को चार या पाँच मुख्य केंद्रों में बाँट दिया गया है। प्रत्येक केंद्र पर कर्मचारियों के रहने के मकान, मशीनें और काम करने के शेड और पशुशालाएँ हैं। हर केंद्र अपने आस-पास के क्षेत्र का काम संभालता है।

    हम सामूहिक खेत के एक-दो सदस्यों के मकानों में भी गए। घर मामूली थे, जैसे हमारे यहाँ किसानों के खेतों पर होते है। आब-ओ-हवा और रहन-सह्न के कारण जो अंतर होता है, बस उतना ही अंतर था। साधारण कच्चे मकान थे, पड़ोस के कमरे में जानवरों के बाँधने की जगह थी और घर में आस-पास खेत के औज़ार वग़ैरह पड़े थे।

    दूसरी जगहों की भाँति यहाँ के किसान भी भले थे और उन्होंने हमारा हार्दिक स्वागत किया। भोजन के समय तक हम इतना घूमे कि काफ़ी थक गए थे। भोजन फ़ार्म के प्रध्यक्ष के साथ ही किया। फ़ार्म पर पुछः बूँदा-बादी हो रही थी, इसलिए अंदर बैठकर ही डटकर खाना खाया। अगर बाहर बैठ सके होते तो अधिक मज़ा आता। अध्यक्ष और अन्य किसान बड़े परिश्रमी, हट्ठे-कट्टे और ताक़तवर मालूम हुए। उनका खाना-पीना भी अच्छा था। हँसी-मज़ाक़ सब पसंद करते थे। बात-बात पर ठहाके लगाते थे। युक्रेन के निवासियों की ख़ुश-मिज़ाजी और विनोदप्रियता प्रसिद्ध है। वे सदा प्रसन्न रहते हैं।

    मैं तो कुछ आवश्यक कार्यों के कारण जल्दी भारत वापस गया था। हमारे प्रतिनिधि-मंडल के अन्य सदस्य वहीं रह गए थे। कुछ दिनों बाद जब वे वापस लौटे तो उन्होंने अपनी रिपोर्ट मुझे दी। उन्होंने बताया कि मेरे रवाना होने के बाद दोपहर को उन्हें उज़बेकिस्तान के उनीज़ाबाद का कार्ल मार्क्स सामूहिक फ़ार्म दिखाने ले जाया गया। यह फ़ार्म ताशक़न्द से कुछ ही मील की दूरी पर कालीनिन ज़िले में है। इस फ़ार्म पर ख़ासकर सब्ज़ी पैदा की जाती है। सन 1657 में यहाँ पर 17000 टन सब्ज़ी पैदा हुई थी। यह फ़ार्म कुल 3688 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। यहाँ पर 1000 व्यक्ति काम करते हैं—560 परिवारों के 600 पुरुष और 400 स्त्रियाँ। इनमें से 75 प्रतिशत परिवारों ने अपने निजी मकान बना लिए हैं। सन 1957 में इस फ़ार्म में एक करोड़ रूबल का लाभ हुआ। हर किसान को काम के प्रत्येक दिन की मज़दूरी 21 रूबल के हिसाब से मिली। इसके अलावा प्रतिदिन नौ किलोग्राम आलू और तीन किलोग्राम चावल मिलते थे। फ़ार्म की इस आय में से 60 प्रतिशत किसानों को बाँट दिया गया, 10 प्रतिशत सरकारी करों में चला गया, और 15-20 प्रतिशत के खेती के नए औज़ार ख़रीदे गए।

    इसके दो दिन बाद प्रतिनिधि-मंडल यानगिआल कालेनिन सामूहिक फ़ार्म देखने गया। यहाँ कपास पैदा होती है। छः खेतों को मिलाकर सन् 1928 में इसकी स्थापना की गई थी। इसका क्षेत्रफल लगभग 5000 हेक्टर है, जिसमें से 3000 हेक्टर पर केवल कपास की खेती होती है। सन् 1956 में यहाँ पर 7300 टन कपास पैदा हुई थी, जिससे 270 लाख रूबल की निवल आय हुई। इस फ़ार्म में 4000 लोग काम करते हैं। हर व्यक्ति को प्रत्येक दिन के काम के लिए तीन किलोग्राम चावल तथा 22 रूबल मज़दूरी दी जाती है।

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