एमेली के लिए एक गुलाब

emily ke liye ek gulaab

विलियम कटनबर्ट फाॅकनर

विलियम कटनबर्ट फाॅकनर

एमेली के लिए एक गुलाब

विलियम कटनबर्ट फाॅकनर

और अधिकविलियम कटनबर्ट फाॅकनर

    मिस एमेली का जब निधन हुआ तो समूचा शहर उसके जनाज़े में शामिल हुआ। एक ओर जहाँ पुरुषों में इसके पीछे एक ‘स्तंभ’ के ढह जाने पर सम्मान-भरे स्नेह की भावना थी, वहीं स्त्रियों में उसके घर को भीतर से देखने की जिज्ञासा थी। क्योंकि पिछले तक़रीबन दस बरसों से एक बूढ़े नौकर के सिवाय उसके घर के भीतर कोई आया-गया नहीं था। यह नौकर ही उसका माली और रसोईया भी था।

    विशाल चौकोर फ़्रेमवाला उसका मकान, अठारहवीं सदी की अतिशय ख़ूबसूरत शैली में ऊँचा गुंबदाकार तथा कुंडलीनुमा बाल्कनियों से सजा मकान था। यह किसी ज़माने में सफ़ेद रहा होगा, जो उस ज़माने के सबसे विशिष्ट इलाक़े में स्थित था, पर गराजों और रुई ओटने की मशीनों ने वहाँ अनधिकार प्रवेश कर इस इलाक़े और आसपास की भव्यता ख़ूबसूरती को नष्ट कर दिया था, बस मिस एमेली का मकान ही बचा था—माल डिब्बों और गैसोलिन पंपों के बीच इस हठीली और नख़रेबाज़ सड़ाँध के ऊपर—जो सबकी आँखों में काँटे की तरह चुभता था और अब मिस एमेली भी नहीं रही। वह भी अपने उन्हीं नामी-गिरामी प्रतिनिधियों में शामिल हो चुकी थी, जो जेफ़रसन के युद्ध में शहीद सैनिकों समाज के ख़ास और अज्ञात व्यक्तियों की क़ब्रों के बीच देवदार के वृक्षों से ढके इस समाधिस्थल में चिरनिद्रा में लीन हैं।

    जब तक मिस एमेली जीवित थी, वह पूरे नगर के लिए एक परंपरा, एक कर्तव्य एक ज़िम्मेदारी थी—यानी पूरे क़स्बे के ऊपर तक एक पुश्तैनी दायित्व! और यह दायित्व काफ़ी अरसे, यानी 1894 से चला रहा था, जब एक दिन क़स्बे के मेयर कर्नल सरटोरिस ने फ़रमान जारी कर उसको टैक्स अदा करने से छूट दे दी। यह छूट उसके पिता की मृत्यु के वक़्त से अब तक चली रही थी। ऐसा था कि मिस एमेली ख़ैरात लेना पसंद करती। पर कर्नल सरटोरिस ने एक क़िस्सा गढ़ रखा था कि मिस एमेली के पिता ने इस शहर को क़र्ज़ा दिया था, जिसे कारोबारी उसूलों के तहत यह शहर इस रूप में चुकाना बेहतर समझता है। कर्नल सरटोरिस की पीढ़ी और विचारधारा का ही कोई व्यक्ति इस तरह की बात गढ़ सकता था और महज़ स्त्रियाँ ही ऐसी बात पर यक़ीन कर सकती थीं।

    जब आधुनिक विचारधारा वाली नई पीढ़ी ने मेयर और नगरपालक का दायित्व सँभाला तो यह व्यवस्था देखकर उन्हें असंतुष्टि हुई। नए साल की पहली तारीख़ को उन्होंने उसे एक टैक्स नोटिस डाक से जारी किया। फ़रवरी तक कोई जवाब आया। फिर उसे एक औपचारिक पत्र लिखकर किसी सुविधाजनक दिन मेयर के दफ़्तर में आकर मिलने का अनुरोध किया गया। हफ़्ते भर बाद ख़ुद मेयर ने उसे पत्र लिखा और उससे आकर ख़ुद मिलने या कार भेजकर उसे बुलवाने की पेशकश की। जवाब में उन्हें पुराकालीन आकार के काग़ज़ के टुकड़े पर एक नोट मिला—जिस पर बारीक बेहद सुंदर लिखावट में धुँधली स्याही से लिखा था कि उसने एक अरसे से बाहर जाना छोड़ दिया है। नोटिस को भी बिना किसी टिप्पणी के लौटा दिया था।

    नगरपालकों के बोर्ड की एक विशेष बैठक बुलाई गई। एक प्रतिनिधि दल को उसके घर भेजा गया। उन्होंने दरवाज़े पर दस्तक दी, जहाँ से पिछले आठ-दस बरसों से कोई भी शख़्स भीतर नहीं गया था। यह तब की बात है, जब से उसने चाइना पेंटिंग की कक्षाएँ लेना बंद कर दिया था। एक बूढ़ा अश्वेत उन्हें रोशनी वाले हॉल में ले गया, जहाँ ऊपर की ओर एक ज़ीना जाता था, ऊपर और घना अँधेरा था। पूरे घर में धूल बदबू भरी थी—घुटन सीलन-भरी बदबू! अश्वेत उन्हें बैठक में ले गया, यह चमड़े के महँगे और भारी फ़र्नीचर से सज्जित था। जब अश्वेत ने खिड़की के पट खोले तो चमड़ा चरमरा उठा और उनके बैठते ही धूल का हलका-सा भभका हवा में तैरते हुए सूरज की किरणों के साथ घुलमिल गया।

    अँगीठी के पास बदरंग पड़ चुके सुनहरे चित्रफलक में मिस एमेली के पिता का खड़िया से बना एक रेखाचित्र रखा था। जब मिस एमेली भीतर आई तो सब खड़े हो गए। काले लिबास में वह छोटी नाटी स्त्री थी—पतली सोने की चेन उसकी कमर से बेल्ट के भीतर कहीं लुप्त हो गई थी। मलिन पड़ चुकी सोने के मुट्ठी वाली आबनूस की छड़ी पर वह टिककर खड़ी थी। उसकी देह दुबली और कमज़ोर थी; शायद इसलिए गोलमटोल दिखने की बजाय वह मोटी दिख रही थी। लंबे समय तक स्थिर जल में डूबी देह की मानिंद उसका शरीर फूला-फूला-सा था। उसकी आँखें चेहरे पर गीले आटे के किसी गोले में धंसे कोयले के दो टुकड़ों की तरह दिख रही थीं। जब हम अपनी शिकायत बयाँ कर रहे थे तो उसकी निगाहें तेज़ी से एक चेहरे से दूसरे चेहरे की ओर घूमतीं।

    उसने बैठने के लिए नहीं कहा। वह दरवाज़े पर बस ख़ामोश खड़ी तब तक सुनती रही, जब तक हमारा साथी अपनी बात पूरी कर चुप नहीं हो गया। अचानक सोने की चेन के सिरे पर लटकी अदृश्य घड़ी की टिकटिक सुनाई देने लगी।

    उसकी आवाज़ शुष्क और सर्द थी—”जेफ़रसन में मेरा कोई कर बक़ाया नहीं है। कर्नल सरटोरिस ने मुझे समझा दिया था। आप चाहें तो शहर के रिकॉर्ड की जाँच कर ख़ुद को आश्वस्त कर सकते हैं।”

    “पर हमने जाँच की है। हम शहर के प्राधिकारी हैं, मिस एमेली क्या आपको शेरिफ़ के हस्ताक्षर से नोटिस नहीं मिला।”

    “हाँ, एक काग़ज़ मिला था,” मिस एमेली बोली, “शायद वह ख़ुद को शेरिफ़ मानता हो, पर मेरा कोई कर बक़ाया नहीं है।”

    “पर बहियों में तो ऐसा ही दर्ज़ है। देखिए, हमें रिकॉर्ड से ही चलना पड़ेगा।”

    “देखिए कर्नल सरटोरिस, जेफ़रसन में मेरा कोई कर बक़ाया नहीं है।”

    “पर मिस एमेली!”

    “देखिए, कर्नल सरटोरिस (हालाँकि कर्नल सरटोरिस का निधन हुए दस बरस गुज़र चुके थे), मेरा कोई कर नहीं है,...टोबे!” उसने ऊँची आवाज़ में पुकारा, वह अश्वेत हाज़िर हो गया।

    “इन्हें बाहर का रास्ता दिखाओ।”

    इस तरह उसने उन्हें निकाल दिया, बिलकुल जैसे तीस बरस पहले उनके पूर्वजों को बदबू की बात को लेकर किया था।

    यह उसके पिता के गुज़रने के दो बरस बाद और प्रेमी के उसे छोड़कर चले जाने के कुछ अरसे बाद की बात है। हमें लगता था कि वह उससे ब्याह करेगा, पर वह चला गया। पिता के गुज़रने के बाद वह बहुत कम घर से बाहर निकलती। प्रेमी के जाने के बाद तो उसने घर से निकलना ही बंद कर दिया। कुछ स्त्रियों ने उससे संपर्क करने का दुःसाहस किया पर उन्हें बेइज़्ज़त होना पड़ा। उसके घर में वह अश्वेत ही जीवन का एकमात्र संकेत था। तब वह युवा था—अकसर थैला उठाए बाज़ार आते-जाते दिखाई दे जाता।

    “क्या कोई पुरुष रसोई को ढंग से चला सकता है!” स्त्रियाँ आपस में खुसर-पुसर करतीं। इसलिए जब उसके घर से बदबू आने लगी तो उन्हें रत्ती भर भी अचरज नहीं हुआ। इस विशाल भरे-पूरे संसार और श्रेष्ठ महान् ग्रियरसन परिवार के बीच यह एक और संपर्क सूत्र था।

    उसकी एक पड़ोसी महिला ने अस्सी वर्षीय मेयर जज स्टीवन से बदबू की शिकायत की।

    “क्यों, क्या आप उसे बदबू रोकने के लिए नहीं कह सकते,” क्या कोई क़ानून वग़ैरह नहीं है?”

    “मुझे यक़ीन है, उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी,” जज स्टीवन बोला, “संभवत: कोई साँप या चूहा होगा, जिसे उसके नौकर ने मारकर बाहर फेंक दिया होगा। मैं उससे बात करूँगा।”

    अगले दिन उन्हें दो और शिकायतें मिलीं, एक शिकायत पुरुष ने की जो उसके प्रति निंदा से भरा था, ‘‘हमें इसके बारे में कुछ तो करना होगा। जज, मेरा मिस एमेली को परेशान करने का कोई इरादा नहीं, पर हमें कुछ करना ही होगा।” उसी रात नगरपालकों के बोर्ड की बैठक हुई—तीन बूढ़े बुजुर्ग और एक युवक जो नई पीढ़ी का सदस्य था।

    “यह कौन-सी बड़ी बात है,” वह बोला, “बस उसे कह देते हैं कि अपना घर साफ़ करवाए। उसे कुछ वक़्त दिया जाए और फिर भी यदि वह ऐसा नहीं करती तो...”

    “छोड़ो भी,” जज स्टीवन बोला, “क्या आप किसी महिला को सीधे उसके मुँह पर बदबू आने की बात कह सकते हैं?”

    इसलिए अगले दिन आधी रात के बाद चार व्यक्ति मिस एमेली के लॉन में चोरों की तरह घुसे और लॉन का कोना-कोना सूँघते हुए बदबू का सुराग तलाशने लगे। उनमें से एक कंधे पर टँगे बैग में से छिड़काव करता गया। उन्होंने तहख़ाने का दरवाज़ा तोड़कर अंदर और आसपास की सभी जगहों पर चूने का छिड़काव किया। जब वे दोबारा लॉन से गुज़रने लगे तो पहले जिस खिड़की में अँधेरा था, अब बत्ती जल रही थी और मिस एमेली वहाँ बैठी थी। रोशनी में उसकी सीधी, निश्चल स्पंदनरहित काया किसी प्रतिमा की मानिंद दिख रही थी। वे लॉन में से रेंगते हुए धुँधली सड़क पर निकल आए। एकाध हफ़्ते बाद बदबू चली गई।

    इस वक़्त तक लोगों को उससे सहानुभूति हो चली थी। क़स्बे के लोग उन दिनों की याद करने लगे, जब उसकी नानी की बहन बुढ़ापे में अपना संतुलन खो बैठी थी। उन्हें लगता था कि ग्रियरसन परिवार दरअसल हैसियत से कुछ ज़्यादा ही ख़ुद को श्रेष्ठ समझता है। उन्हें कोई भी नवयुवक मिस एमेली के योग्य नहीं दिखता। हम अकसर उसके विवाह की कल्पना करते, जिसमें पृष्ठभूमि में मिस एमेली सफ़ेद लिबास में पिता के पीछे खड़ी दिखाई देती। इसलिए जब वह तीस के क़रीब आई, फिर भी अविवाहित थी तो हम दरअसल ख़ुश नहीं थे, हमें यक़ीन था कि परिवार वालों की सारी बेवक़ूफ़ियों के बावजूद मिस एमेली योग्य वर के प्रस्ताव पर अवश्य राज़ी हो जाती।

    जब उसके पिता का निधन हुआ, तब सबको पता चल गया कि अब उसके पास संपत्ति के नाम पर बस वह मकान ही था। लोग ख़ुश थे कि आख़िर उन्हें मिस एमेली पर दया दिखाने का मौक़ा मिल गया था। अब वह पूरी तरह अकेली रह गई थी—उस नौकर के सिवाय कोई था। अब उसे कुछ हद तक पैसे का महत्त्व समझ में जाएगा।

    रिवाज के मुताबिक़ पिता की मृत्यु के अगले दिन सभी औरतें इकट्ठी होकर शोक व्यक्त करने पहुँचीं। वे उसकी कुछ मदद भी करना चाहती थीं। हमेशा की तरह सजी सँवरी मिस एमेली उन्हें दरवाज़े पर मिली। उसके चेहरे पर दु:ख या शोक का नामोनिशान था। उसने कहा कि उसके पिता की मृत्यु नहीं हुई है। तीन दिनों तक वह लगातार यही कहती रही। उसके घर आने वाले सभी सरकारी अधिकारी और डॉक्टर उसे समझाते रहे कि उन्हें शव का क्रियाकर्म करने दें। आख़िर जब वे क़ानून ज़ोर-ज़बर्दस्ती पर उतर आए तब वह ज़ोर-ज़ोर से बिलखने लगी। उन्होंने झटपट उसके पिता को दफ़ना दिया।

    उस वक़्त किसी ने नहीं कहा कि वह पगला गई है। हमें लगा यह स्वाभाविक था। हमें उन तमाम नवयुवकों की याद आई, जिन्हें उसके पिता ने भगा दिया था। हम जानते थे कि अब जब उसके पास कुछ नहीं बचा था तो वह पिता को ही जकड़कर रख लेना चाहती थी, जिन्होंने उसका सब कुछ छीन लिया था।

    लंबे अरसे तक वह बीमार रही। जब हमने दुबारा उसे देखा तो उसने अपने बाल छोटे कर लिए थे, जिससे वह एक किशोरी-सी दिखती—गिरजाघर की रंग-बिरंगी खिड़कियों में बने देवतुल्य फ़रिश्तों की तरह—शोकमग्न और शांत!

    नगर में पटरी बनाने का ठेका किसी कांट्रेक्टर को दिया गया था और उसके पिता के गुज़रने के कुछ अरसे बाद गर्मियों में पटरी बनाने का काम शुरू हो गया। निर्माण कंपनी द्वारा इस काम के लिए कई हब्शी, ख़च्चर मशीनें लाई गईं। होमर-बेरॉन नाम का एक अमेरिकी फॉरमेन भी आया था—लंबा-चौड़ा, साँवला, निपुण, फुर्तीला, भारी आवाज़ और चेहरे की तुलना में उसकी आँखों का रंग हल्का था। नन्हें-मुन्ने लड़के झुंड बनाकर उसके पीछे जाते। उन्हें हब्शियों को ईंट-गारे उठाते-गिराते हुए लय में काम करते देखना अच्छा लगता था। जल्द ही वह क़स्बे के हर व्यक्ति को जानने लगा था। जब कभी किसी नुक्कड़ या चौराहे से ठहाकों की आवाज़ गूंजती तो समझ लो होमर बेरॉन यक़ीनन उस झुंड में मौजूद होगा। आजकल मिस एमेली और वह इतवार की दुपहर अकसर पीले पहियों वाली बग्घी में जाते दिखाई देते।

    शुरू में हम ख़ुश थे कि मिस एमेली उसमें दिलचस्पी दिखा रही है। सभी स्त्रियाँ कहतीं, ‘‘ग्रियरसन परिवार किसी उत्तर देशवासी के दिहाड़ी मज़दूर के बारे में गंभीरतापूर्वक सोच ही नहीं सकता? पर कई बड़े बुजुर्गों का मानना था कि दुःख की इस घड़ी में संभवत: वह अपने अभिजात्य या कुलीन वंश को भुला देगी। उनके मुँह से निकल पड़ता, “बेचारी एमेली! उसके नाते-रिश्तेदारों को आना चाहिए।” अलबामा में उसके कुछ रिश्तेदार थे भी, पर बरसों पहले उसके पिता ने उनसे नाता तोड़ लिया था। दरअसल बुढ़ापे में मानसिक संतुलन खो बैठी नानी की बहन न्यार की संपत्ति को लेकर उनसे झगड़ा हो गया था। तब से दोनों परिवारों के बीच कोई संपर्क नहीं रहा। वे उनकी शव-यात्रा में भी शामिल नहीं हुए थे।

    बूढ़े बुजुर्गों द्वारा सहानुभूति दिखाने पर पूरे क़स्बे में खुसर-पुसर शुरू हो गई। “क्या वाक़ई यह सच है?” वे एक-दूसरे से कहने लगे, “हाँ, बिलकुल और भला क्या बात हो सकती है?” ज्यों ही इतवार की दुपहर बग्घी क़स्बे से गुज़रती, फुसफुसाहट शुरू हो जाती, ‘बेचारी एमेली’, वह अब भी उसी गर्व से भरी रहती चाहे हमें लगता कि वह गिर चुकी है, ऐसा लगता मानो ग्रियरसन परिवार की अंतिम सदस्य के नाते वह सबसे अधिक मान सम्मान की दरकार रख रही थी। जैसे एक मर्तबा वह चूहे मारने की दवा-संखिया ख़रीद लाई। यह उसके एक बरस बाद की बात है, जब लोग उस पर तरस खाकर ‘बेचारी एमेली’ कहने लगे थे। इस वक़्त तक उसकी चचेरी बहनें भी कभी-कभार उसके पास आने लगी थीं।

    “मुझे ज़हर चाहिए,” वह दुकानदार से बोली, तब वह तीस को पार कर चुकी थी, हालाँकि वह अब भी जवाँ दिखती थी। पहले से दुबली हो गई थी। चेहरे पर सर्द, मोटी काली आँखें, जिसकी त्वचा आँखों के गोले से कनपटी तक विकृत-सी हो गई थी। “मुझे ज़हर चाहिए,” वह फिर बोली।

    “हाँ, मिस एमेली, किस प्रकार का ज़हर? क्या चूहे वग़ैरह मारने के लिए? तो मैं सिफ़ारिश करूँगा कि...”

    “जो सबसे बढ़िया हो, मुझे वही चाहिए, किस प्रकार का, इसकी मुझे परवाह नहीं।”

    दवाई विक्रेता ने कई नाम गिनाए। इनसे किसी को भी, यहाँ तक कि हाथी तक को मारा जा सकता है, पर आपको—

    “संखिया ही चाहिए,” मिस एमेली बोली, “क्या वह ठीक रहेगा?”

    “हाँ, मैडम, पर आपको किसलिए चाहिए?”

    “मुझे संखिया चाहिए।”

    दुकानदार ने झुककर उसे देखा। एमेली ने भी पलटकर उसे देखा, उसका चेहरा बिलकुल सपाट मुरझाया-सा था। दुकानदार बोला, “ठीक है, यदि आपको यही चाहिए तो दिए देता हूँ, पर क़ानूनन आपको बताना होगा कि किस काम के लिए आप इसका इस्तेमाल करेंगी?”

    मिस एमेली उसे घूरने लगी। सिर टेढ़ा कर वह एकटक घूरती रही, जब तक दुकानदार नज़रें हटा संखिया लेने चला गया। पैकेट दुकान में काम करने वाला एक अश्वेत छोकरा ले आया। दुकानदार दुबारा बाहर नहीं आया। घर आकर जब उसने पैकेट खोला तो उस पर हड्डी और खोपड़ी के चित्र के नीचे लिखा था, “चूहों के लिए”

    अगले दिन हम सब कहने लगे कि ‘वह ख़ुदकुशी कर लेगी’ और शायद यह मुनासिब भी होगा। जब पहले-पहल हमने उसे होमर बेरॉन के साथ घूमते देखा था तो हमें लगा कि वह उससे ब्याह करेगी। फिर सब कहने लगे कि ‘वह उस पर ज़ोर ज़बर्दस्ती करेगी’ क्योंकि ख़ुद होमर ने ही हमें बताया था कि उसे पुरुष पसंद हैं। सभी जानते थे कि वह क़स्बे के क्लब में नवयुवकों के साथ बैठ पीना पसंद करता है, वह विवाह करने वाले पुरुषों में से नहीं है। बाद में जब भी चमकदार बग्घी में गर्व से सिर ताने बैठी एमेली और तिरछी टोपी लगाए, दाँतों में सिगार दबाए, पीले दस्ताने वाले हाथों में लगाम चाबुक थामे होमर बेरॉन इतवार की दुपहर सामने से गुज़रते तो हम सब ईर्ष्या से कहते ‘बेचारी एमेली!’

    बाद में कुछ स्त्रियों ने कहना शुरू कर दिया कि यह इस क़स्बे के लिए बड़े शर्म और बदनामी की बात है और इसका हमारे युवा बच्चों पर ग़लत असर पड़ सकता है। पुरुष इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते थे पर आख़िरकार स्त्रियों ने दीक्षा देने वाले पादरी को मजबूर कर दिया कि वह मिस एमेली को सीख दे। पादरी ने किसी को नहीं बताया कि एमेली के साथ बातचीत के दौरान क्या घटा? पर उन्होंने दुबारा जाने से इनकार कर दिया। अगले इतवार वे फिर सड़कों पर घूमते दिखाई दिए और दूसरे ही दिन पादरी की बीवी ने अलाबामा में मिस एमेली के रिश्तेदारों को चिट्ठी लिखी।

    इस तरह एक बार फिर क़रीबी रिश्तेदार उसके घर आकर रहने लगे। हम सब इसी इंतजार में थे कि देखें अब क्या होता है? शुरू में कुछ भी नहीं घटा। हमें यक़ीन था कि वे दोनों ब्याह करने वाले हैं। हमें पता चला कि मिस एमेली सुनार के पास भी गई थी। जहाँ उसने पुरुषों के लिए चाँदी के एक सिंगारदान का ऑर्डर दिया और उसके हर कोने में एच०बी० अक्षर ख़ुदवाए। दो दिन बाद हमें पता चला कि वह नाइट सूट समेत पुरुषों द्वारा पहनी जाने वाली हर चीज़ ख़रीदकर लाई है। सब कहने लगे कि ‘वे विवाहित हैं।’ हम वाक़ई ख़ुश थे।

    हमें रत्ती भर भी अचरज नहीं हुआ, जब सड़क का काम पूरा होने पर होमर बेरॉन शहर छोड़कर चला गया। हमें हल्की-सी निराशा ज़रूर हुई कि इस बात का कोई हो-हल्ला नहीं हुआ। हमें यक़ीन था कि वह मिस एमेली को अपने घर ले जाने की तैयारी करने गया है या फिर उसे अपनी चचेरी बहनों से छुटकारा पाने का मौक़ा देना चाहता है। हमारा अंदाज़ा सही निकला, क्योंकि एक हफ़्ते बाद ही वे चली गईं और जैसा हमें पूरा भरोसा था, तीन दिन बाद होमर बेरॉन शहर में मौजूद था। एक पड़ोसी ने शाम के पहर झुटपुटे में रसोई के दरवाज़े से अश्वेत द्वारा उसे भीतर छोड़ते हुए देखा।

    उसके बाद किसी ने होमर बेरॉन को फिर कभी नहीं देखा। मिस एमेली भी बहुत कम दिखाई देती। अलबत्ता अश्वेत यदा-कदा पोटली उठाए बाज़ार आते-जाते दिख जाता, पर मुख्य द्वार हमेशा बंद ही रहता। एमेली कभी-कभार पल-भर के लिए खिड़की में खड़ी दिखाई दे जाती। जैसे उस रात उन लोगों ने उसे देखा, जो चूना छिड़क रहे थे। पर तक़रीबन छह महीनों से वह कभी बाहर नहीं निकली थी। हम जानते थे कि यह तो होना ही था, क्योंकि उसके पिता ने अपनी आदतों की वजह से उसके जीवन को नष्ट कर ज़हर घोल दिया था।

    अगली मर्तबा जब हमने एमेली को देखा तो वह मोटी हो गई थी। उसके बाल पकने लगे थे। अगले कुछ बरसों में ही उसके बाल पूरी तरह भूरे हो गए। चौहत्तर बरस की आयु में उसकी मृत्यु तक किसी सक्रिय आदमी की तरह गहरे भूरे ही थे।

    इन तमाम बरसों में उसका मुख्य द्वार हमेशा बंद ही रहा। बस केवल उन छह-सात बरसों को छोड़कर, जब वह क़रीबन चालीस बरस की थी और चाइना पेंटिंग की कक्षाएँ चलाती थी। नीचे के कमरों में से एक कमरे में उसने स्टूडियो बना रखा था, जहाँ कर्नल सरटोरिस के समकालीनों की बेटियाँ पोतियाँ नियमित रूप से उससे पेंटिंग सीखने आतीं, बिलकुल उसी नियम श्रद्धा से, जैसे वह हर इतवार को गिरजाघर जाया करती थी। इसी बीच उसके कर को माफ़ कर दिया गया।

    फिर नई पीढ़ी ने नगर का ज़िम्मा सँभाला और पेंटिंग सीखने वाले बच्चे भी बड़े हो गए और यहाँ-वहाँ बिखर गए। उन्होंने अपने बच्चों को रंगों की डिब्बियों, तूलिकाओं और महिलाओं की पत्रिकाओं में से कटी तस्वीरों के साथ पेंटिंग सीखने नहीं भेजा। आख़िरी बच्चे के कक्षा छोड़ने के बाद मुख्य दरवाज़ा सदा के लिए बंद हो गया। जब नगर में मुफ़्त डाक प्रणाली शुरू हुई, तब भी मिस एमेली ने अपने घर के ऊपर लोहे का नंबर और डाकपेटी लगवाने से इनकार कर दिया। वह किसी तरह इसके लिए राज़ी हुई।

    दिन दिन, माह दर माह और साल दर साल हम उस अश्वेत को बूढ़े होते और उसकी कमर को लगातार झुकते देखते रहे—जो झोला उठाए बाज़ार आता-जाता रहता। हर साल दिसंबर माह में हम उसे टैक्स नोटिस भिजवाते, जो सप्ताह भर में लौट आता। कभी-कभार हम उसे नीचे की किसी खिड़की में देखते—आले में रखी, तराशी प्रतिमा की मानिंद! उसने जानबूझकर घर की ऊपरी मंज़िल बंद कर रखी थी। इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी वह मौजूद रही। उसकी मौजूदगी को नकारना नामुमकिन था—प्रिय, अनिवार्य, अभेद्य, प्रशांत, अड़ियल।

    और वह मर गई। धूल और अंधकार से भरे घर में वह बीमार पड़ी रही। पास था तो केवल वह लड़खड़ाता बूढ़ा अश्वेत। वह बीमार है, इसकी किसी को भनक तक नहीं मिली। अरसा पहले हमने अश्वेत से उसकी खोज-ख़बर लेना छोड़ दिया था। वह किसी से बात नहीं करता था, एमेली से भी नहीं। दरअसल इस्तेमाल करने की वजह से उसके गले को मानो जंग लग गया था। उसकी आवाज़ कर्कश और फट गई थी।

    निचले हिस्से के एक कमरे में ही उसकी मृत्यु हो गई। परदे से ढके भारी भरकम बिस्तरे पर पके भूरे बालोंवाला सिर तकिए में धँसा हुआ था—जो बेहद पुराना होने और धूप मिलने के कारण मैला और पीला पड़ चुका था।

    अश्वेत ने स्त्रियों के लिए दरवाज़ा खोला और उन्हें अंदर जाने दिया। ताक-झाँक और खुसुर-पुसुर करती स्त्रियाँ जैसे ही भीतर आईं, वह अश्वेत ग़ायब हो गया। वह घर के भीतर से होते हुए सीधे बाहर निकल गया और फिर कभी दिखाई नहीं दिया।

    दोनों चचेरी बहनें भी तत्काल वहाँ पहुँच गईं। अगले दिन ही उन्होंने अंतिम संस्कार रखा, जिसमें पूरा का पूरा क़स्बा मिस एमेली को अंतिम विदाई देने आया। उसकी अरथी ख़रीदे गए फूलों के अंबार के नीचे थी, पास ही चिंतन में लीन पिता का रेखाचित्र रखा था। स्त्रियों की सिसकारियाँ गूँज रही थीं। बूढ़े-बुजुर्ग, जिनमें से कई चमकदार संघीय वर्दियों में थे, मैदान और दालान में खड़े मिस एमेली के बारे में ऐसे बतिया रहे थे, मानो वह उनकी समकालीन रही हो। कुछ तो यहाँ तक कहने से नहीं चूके कि उन्होंने उसके साथ नृत्य भी किया है और इश्क़ तक लड़ाया है। वे शायद गुज़रे वक्त के गणितीय हिसाब को भूल रहे थे, जैसे अकसर इस उम्र में बूढ़े करते हैं, जिनके लिए गुज़रा वक़्त ख़त्म होती सड़क होकर मानो घास का मैदान है, जिसे कोई मौसम छू नहीं सकता।

    अब तक हम जान चुके थे कि सीढ़ियों से ऊपर एक कमरा है, जिसे चालीस बरसों से किसी ने नहीं देखा था और जिसे तोड़कर खोलना पड़ेगा। खोलने से पहले उन्होंने मिस एमेली को पूरी मर्यादा के साथ दफ़नाने का इंतज़ार किया।

    जिस आक्रामकता के साथ दरवाज़े को तोड़ा गया, उससे पूरा कमरा धूल से भर उठा। कमरे में ताबूत पर बिछाने जैसा एक झीना आवरण फैला रखा था, मानो कोई क़ब्र हो। कमरा दुल्हन की तरह सजा था। गुलाबी रंग के मखमली परदे, गुलाबी शृंगार मेज़ पर क्रिस्टल की तमाम नाज़ुक वस्तुओं के साथ चाँदी से बने पुरुषों के प्रसाधन सामान भी रखे थे। वे इतने मैले हो चुके थे कि उन पर ख़ुदे अक्षर धुँधले पड़ चुके थे। सामान के बीच एक कॉलर और टाई भी रखी थी, बिल्कुल जैसे अभी निकालकर रखी हो, कुर्सी पर सलीक़े से तह किया एक सूट टँगा था; और वहीं एक जोड़ी जूते जुराबों के साथ रखे थे।

    आदमी ख़ुद भी बिस्तर पर पड़ा था।

    काफ़ी देर हम यूँ ही खड़े रहे, उस गंभीर और साँसरहित मुस्कराहट को देखते हुए। साफ़ दिख रहा था कि देह पहले आलिंगन की मुद्रा में रही होगी, पर अब गहरी चिरनिद्रा में थी, जो प्रेम से कहीं परे की चीज़ है, जो प्रेम के डरावने विकृत रूप पर भी जीत हासिल कर लेती है, पर उसने उसे व्यभिचारी स्त्री की ग़ुलामी की अवस्था में ला छोड़ा था। कुछ भी नहीं बचा था, शरीर का निचला हिस्सा इतनी बुरी तरह सड़ चुका था कि पहने गए नाइटसूट समेत उसके धड़ को बिस्तर से अलग करना नामुमकिन-सा था। उसके ऊपर और तकिए के आसपास धूल की मोटी तह जम चुकी थी।

    फिर हमने देखा कि दूसरे तकिए पर सिर के आकार का गड्ढा-सा बन गया था। हममें से एक ने झुककर जब उसे उठाया तो धुँधली, शुष्क और अदृश्य धूल हमारी नासिकाओं में भर गई। वहाँ पके भूरे बालों की एक लट सबने देखी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 160-169)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : विलियम कटनबर्ट फाॅकनर
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008

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