उन्होंने हमें एक बड़े सफ़ेद कमरे में धकेल दिया था। मेरी आँखें चौंधियाने लगी थीं, क्योंकि वहाँ का प्रकाश आँखों को चुभ रहा था। तभी मेरी नज़र एक मेज़ पर पड़ी। उसके पीछे चार आदमी बैठे काग़ज़ों को देख रहे थे, वे सैनिक नहीं दिख रहे थे। क़ैदियों का एक जत्था पीछे की तरफ़ खड़ा था और हमें उनमें शामिल होने के लिए पूरे कमरे को पार करना था। उनमें से कइयों को मैं जानता था और कुछ अजनबी विदेशी थे। जो मेरे सामने थे, उनके बाल भूरे थे और सिर गोल। वे एक जैसे लगते थे। उनमें से छोटे क़द वाला बार-बार अपनी पैंट को ऊपर खींचता। वह काफ़ी नर्वस लग रहा था।

तीन घंटे बीत गए। मुझे चक्कर रहे थे और सिर बिलकुल ख़ाली-सा हो गया था। कमरा ख़ूब गर्म था और सुखद लग रहा था, क्योंकि पिछले चौबीस घंटों से हम लोग ठंड से काँप रहे थे। गार्ड एक-एक करके क़ैदियों को मेज़ तक लाए, चारों आदमियों ने सबसे उनके नाम और व्यवसाय पूछे। अधिकतर समय उन्होंने ख़ास कुछ नहीं किया, बस एक-आध सवाल इधर-उधर पूछते रहे, “बारूदख़ाने पर हुए हमले से तुम्हारा क्या संबंध है? या नौ तारीख़ की सुबह को तुम कहाँ थे और क्या कर रहे थे? वे जवाब बिलकुल नहीं सुन रहे थे, कम से कम लग तो यही रहा था। वे एक क्षण के लिए चुपचाप सीधे देखते और फिर कुछ लिखने लगते। उन्होंने टॉम से पूछा कि क्या वह इंटरनेशनल ब्रिगेड में था। टॉम कुछ छिपा नहीं सका, क्योंकि उसके कोट की ज़ेब में से काग़ज़ बरामद हो गए थे। उन्होंने जुआन से कुछ नहीं पूछा, पर उसके नाम बताने के बाद काफ़ी देर तक वे लिखते रहे थे।

मेरा भाई जोसे अराजकतावादी था। जुआन कह रहा था, आप जानते हैं कि अब वह जीवित नहीं है। आप जानते हैं कि मेरा संबंध किसी दल से नहीं है, राजनीति से तो मुझे कभी मतलब ही नहीं रहा।

उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। जुआन कहता रहा, मैंने कुछ नहीं किया, मैं किसी दूसरे के किए की सज़ा नहीं भुगतना चाहता।

उसके होंठ काँप रहे थे। एक गार्ड ने उसे चुप कराया और वहाँ से हटा दिया। अब मेरी बारी थी।

“तुम्हारा नाम पाब्लो इब्बीता है?

हाँ

उस आदमी ने काग़ज़ों पर एक नज़र डाली और फिर पूछा, एमों ग्रिस कहाँ है?

मैं नहीं जानता।

तुमने छह से उन्नीस तारीख़ तक उसे अपने घर में छिपाए रखा था?

नहीं!

वे एक मिनट तक कुछ लिखते रहे, फिर गार्ड मुझे बाहर ले आया। गलियारे में टॉम और जुआन दो गार्डों के बीच में खड़े मेरा इंतज़ार कर रहे थे। हम साथ-साथ चलने लगे। टॉम ने एक गार्ड से पूछा, अब?

'अब क्या? गार्ड ने गुर्राकर पूछा।

यह गवाही थी या फ़ैसला?

“फ़ैसला। गार्ड ने कहा।

“अब वे हमारा क्या करेंगे?

रूखे स्वर में गार्ड ने जवाब दिया, “तुम्हारी कोठरियों में शांति छा जाएगी।

दरअसल हमारी कोठरी अस्पताल के तहख़ाने में थी। लगातार हवा के झोंके आने के कारण यह भयानक रूप से ठंडी थी। हम रात-भर काँपते रहे थे और दिन में भी हालत कुछ अच्छी नहीं थी। पिछले पाँच दिन मैंने एक प्राचीन चर्च की एक कोठरी में बिताए थे। चूँकि क़ैदी बहुत अधिक थे और जगह कम, इसलिए जहाँ भी जगह मिली, हमे बंद कर दिया। उस कोठरी को छोड़ने पर मैं ख़ुश इसलिए नहीं था कि वहाँ ठंड बहुत थी, बल्कि इसलिए कि वहाँ मैं अकेला था। इस तहख़ाने में मैं अकेला नहीं था। जुआन बिलकुल चुप था। एक तो वह डरा हुआ था और दूसरे अभी उसकी बोलने की उम्र भी नहीं थी। पर टॉम अच्छी बात करने वाला था और अच्छी स्पेनी जानता था।

इस तहख़ाने में एक बेंच और चार चटाइयाँ पड़ी थीं। हमें यहाँ छोड़ने के बाद जब वे लौट गए तो हम बैठ गए और उनके जाने की आहट लेने लगे। एक लंबे क्षण के बाद टॉम ने कहा, उन्होंने हमें अपने शिकंजे में कस लिया है।

मेरा भी यही ख़्याल है,” मैंने कहा, पर मैं नहीं समझता कि इस लड़के के साथ वे कुछ करेंगे।

इसके ख़िलाफ़ उनके पास कुछ है भी नहीं, टॉम ने कहा, सिवाय इसके कि वह एक नागरिक सेना के व्यक्ति का भाई है।

मैंने जुआन की तरफ़ देखा, लगा, जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं था। टॉम कह रहा था, तुम्हें पता है, वे सरगोसा में क्या करते हैं? वे लोगों को सड़क पर लिटा देते हैं और उनके ऊपर ट्रक चलवा देते हैं। एक मोस्कोवासी ने हमें यह बताया था। ऐसा वे बारूद बचाने के लिए करते हैं।

लेकिन इसमें पेट्रोल तो ख़र्च होता है। मैंने कहा।

मुझे टॉम पर ग़ुस्सा रहा था, उसे यह सब नहीं कहना चाहिए था!

“इसके बाद कुछ अफ़सर उस सड़क पर आते हैं, वह कह रहा था, “और इस सबका मुआयना करते हैं। उनके हाथ अपनी ज़ेबों में ठूँसे होते हैं और मुँह में सिगरेट दबी होती है। क्या तुम समझते हो कि वे तड़पते लोगों को मार देते होंगे? नहीं, वे उन्हें चीख़ने-चिल्लाने देते हैं। घंटों-घंटों। वह मोस्कोवासी तो बता रहा था कि इस सबसे तो उसे उबकाई आने लगी थी।

लेकिन मैं नहीं समझता कि वे यहाँ भी वही सब करेंगे, मैंने कहा, जब तक कि उनके पास कारतूसों की सचमुच ही कमी हो जाए।

इस कोठरी में प्रकाश चार रोशनदानों तथा छत पर बाईं ओर से एक वृत्ताकार छेद से आता था। इस छेद में से ऊपर आकाश भी देखा जा सकता था। इस छेद के जरिए तहख़ाने में कोयला उतारा जाता है, यों अब इस पर ऊपर से दरवाज़ा लगा दिया गया तथा कोयला वहीं पड़ा रहा। कई बार जब ऊपर का दरवाज़ा बंद करना भूल जाते तो यह कोयला हवा-पानी से ख़राब हो जाता।

टॉम काँपने लगा था, ‘‘हे भगवान्, मैं ठंडा हो रहा हूँ, वह बड़बड़ाया, मैं मरा जा रहा हूँ।

वह उठकर व्यायाम करने लगा। उसके शरीर की मरोड़ के साथ ही उसके गोरे बालों से भरे सीने पर से क़मीज़ खुल जाती। वह पीठ के बल ज़मीन पर लेट गया था तथा टाँगें उठाकर साइकिल-सी चलाने लगा था। उसके विशालकाय पुट्ठे थरथरा रहे थे। टॉम काफ़ी भारी और थुलथुला था। मैंने सोचा कि रायफ़ल की गोली उसके मांस में इतनी आसानी से घुस जाएगी, जैसे मक्खन के लौंदे में संगीन! अगर वह दुबला होता तो यह बात मेरे दिमाग़ में ही आती।

मुझे बहुत ज़्यादा ठंड तो नहीं लग रही थी, हाँ, इतना ज़रूर था कि मेरे हाथ और कंधे सुन्न हो गए थे। कई बार अचानक किसी चीज़ की कमी खटकती और मैं कोट के लिए नज़रें इधर-उधर घुमाता, पर तभी याद आता कि कोट तो उन्होंने मुझे दिया ही नहीं था। मुझे काफ़ी परेशानी हो रही थी। उन्होंने हमारे कपड़े उतरवाकर अपने सैनिकों को दे दिए थे और हमारे पास सिर्फ़ क़मीज़ें तथा किरमिच की वे पैंटें छोड़ दी थीं, जिन्हें अस्पताल के मरीज़ गर्मियों में पहना करते थे। कुछ देर बाद भारी-भारी साँसें लेता हुआ टॉम मेरे बग़ल में बैठा।

“गर्मी आई?

नहीं, पर सर्दी कुछ कम हुई है।”

शाम के क़रीब आठ बजे एक मेजर दो फालेंगिस्तसों के साथ आया। उसके हाथ में एक काग़ज़ था। उसने गार्ड से पूछा, “इन तीनों के नाम क्या हैं?

स्टेनबोक, इब्बीता और पिखल। गार्ड ने बताया।

मेजर ने चश्मा आँखों पर चढ़ाया और सूची पर नज़र दौड़ाई, स्टेनबोक...स्टेनबोक...हाँ तुम्हें मौत की सज़ा दी गई है। कल सुबह तुम्हें गोली से उड़ा दिया जाएगा, उसकी नज़र काग़ज़ पर थी, और बाक़ी दोनों को भी।

यह नहीं हो सकता, जुआन चीख़ा, मुझे नहीं!

मेजर ने चकित होकर उसकी ओर देखा, तुम्हारा नाम क्या है?

जुआन मिखल। उसने बताया।

ठीक है, तुम्हारा नाम इसमें है, मेजर ने कहा, “तुम्हें यही सज़ा दी गई है।

मैंने तो कुछ नहीं किया। जुआन के स्वर में हताशा थी।

मेजर ने कंधे झटके और फिर टॉम और मेरी तरफ़ घूम गया।

तुम बास्क हो?

हममें से कोई भी बास्क नहीं है।

वह चिढ़-सा गया था, वे तो बता रहे थे कि तीनों बास्क हैं। ख़ैर, मैं इसके पीछे अपना समय ख़राब नहीं करूँगा। तो तुम लोगों को किसी पंडित की ज़रूरत नहीं है?

हमने जवाब देने की ज़रूरत नहीं समझी।

वही बोला, कुछ ही देर बाद एक बेल्जियम डॉक्टर रहा है। वह पूरी रात तुम्हारे साथ रहेगा। उसने एक सैनिक सलाम किया और वापस मुड़ गया।”

“मैंने क्या कहा था? टॉम बोला, वही बात हुई।

हाँ, मैंने कहा, लेकिन इस बच्चे के साथ यह बहुत बुरा हुआ।“

यह बात मैंने शालीनतावश कही थी, पर मुझे वह लड़का बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था। उसका चेहरा बहुत पतला तथा आतंकित था, कष्टों ने उसकी शक्ल बिगाड़ दी थी। तीन दिन पहले वह एक स्मार्ट क़िस्म का लड़का था, पर अब एक बूढ़े भूत की तरह दिख रहा था और लगता था कि अगर उन्होंने उसे छोड़ दिया, तब भी उसकी जवानी लौटेगी नहीं। उसके प्रति दया उपजना सहज ही था, पर दया से मुझे घृणा थी। उसने कुछ कहा नहीं, पर वह पीला पड़ गया था। उसका चेहरा और उसके हाथ सभी पीले पड़ गए थे। वह फिर नीचे बैठ गया और अपनी गोल-गोल आँखों से ज़मीन को देखने लगा। टॉम सहृदय था, उसने उसके हाथ पकड़ने चाहे, पर उस लड़के ने उसे बड़ी बेदर्दी से झटक दिया और चेहरा लटका दिया।

उसे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो, मैंने धीमी आवाज़ में कहा, तुम देखना, वह रोने लगेगा।

टॉम ने मेरी बात मान ली, पर वह इससे ख़ुश नहीं था। वह उस लड़के को सांत्वना देना चाहता था। इससे यह भी था कि उसका अपना समय भी ठीक से कट जाता और उसे अपने बारे में सोचने की सुध ही रहती। मैं कुछ खिन्न हो गया था। मैंने मौत के बारे में कभी नहीं सोचा, क्योंकि इसका कोई कारण ही नहीं था, पर चूँकि अब कारण था और मौत के अलावा सोचने के लिए कुछ और था भी नहीं।

टॉम फिर बात करने लगा था। “अच्छा, क्या तुम किसी को श्मशान पहुँचाने गए हो? उसने मुझसे पूछा। मैंने कोई जवाब नहीं दिया। फिर वह मुझे बताने लगा कि अगस्त के शुरू से अब तक वह छह लोगों को श्मशान पहुँचा चुका है। उसे अभी तक हालात का अहसास नहीं हुआ था। बल्कि मैं तो कहूँगा कि वह अहसास करना ही नहीं चाहता था। मुझे भी अभी इसका ठीक तरह से अहसास नहीं हुआ था। जब मैं गोलियों की बात सोचने लगा, उनकी बौछार को अपने शरीर के अंदर धँसने की बात सोचने लगा तो मुझे काफ़ी कष्ट हुआ। ये सब असली सवाल से बाहर की बातें हैं, पर मैं शांत था, ठीक तरह से समझने के लिए हमारे पास पूरी रात थी। कुछ ही देर बाद टॉम चुप हो गया था। मैंने कनखियों से उसकी ओर देखा, उसका चेहरा पीला पड़ गया था। मैंने ख़ुद से कहा, अब शुरू हुआ है।

लगभग अँघेरा हो गया था। रोशनदानों से कोयले के ढेर पर उजास झर रहा था। छत पर बने छेद में से मैं एक तारे को देख रहा था। रात ज़रूर निर्मल और बर्फ़ीली होगी।

दरवाज़ा खुला, दो गार्ड और उनके पीछे भूरी वर्दी पहने एक सुनहरे बालों वाला व्यक्ति भीतर आया। उसने हमें सलाम किया और बताया, “मैं डॉक्टर हूँ, इन दुखद घड़ियों में आपकी सहायता करने का अधिकार मुझे दिया गया है।

उसकी आवाज़ रुचिकर और शालीन थी। मैंने उससे पूछा, तुम यहाँ क्या चाहते हो?

यह तुम्हारी इच्छा पर है। तुम्हारे अंतिम क्षणों को कम कष्टकारी बनाने के लिए मैं जो कुछ कर सकूँगा, करूँगा।

“लेकिन यहाँ तुम किसलिए आए हो? तुम्हारी ज़रूरत कुछ और लोगों को है, जिनसे अस्पताल भरे पड़े हैं।

मुझे यहाँ भेजा गया है, बिना किसी एक की ओर देखे उसने जवाब दिया, “क्या आप लोग सिगरेट पीना पसंद करेंगे? मेरे पास सिगरेट है और सिगार भी।

उसने अंग्रेज़ी सिगरेट हमारी ओर बढ़ाई, पर हमने लेने से इनकार कर दिया। मैंने उसकी आँखों में झाँका, वह झल्लाया हुआ-सा लग रहा था। मैंने उससे कहा, तुम यहाँ आकर हम पर कोई कृपा नहीं कर रहे हो। और फिर मैं तुम्हें जानता हूँ। बैरेकों के अहाते में मैंने तुम्हें फासिस्टों के साथ देखा था, उसी दिन जिस दिन मुझे क़ैद किया गया था।

मैं अभी और भी कुछ कहना चाहता था पर अचानक मुझे कुछ हो गया। उस डॉक्टर के वहाँ होने में ही मेरी दिलचस्पी ख़त्म हो गई। आम तौर पर मैं जिसकी खिंचाई करने पर उतर आता हूँ, उसे बख़्शता नहीं। पर उस समय मेरी बात करने की इच्छा ही मर गई थी। मैंने कंधे उचकाए और अपनी आँखें दूसरी ओर घुमा लीं। कुछ ही देर बाद मैंने अपनी गर्दन उठाई, वह उत्सुकता से मेरी ओर देख रहा था। गार्ड चटाई पर बैठे थे। दोनों गार्डों में से एक लंबा-पतला पैड्रो मक्खियाँ मार रहा था और दूसरा ऊँघ रहा था। उसका सिर कभी एक ओर झुकता तो कभी दूसरी ओर।

“अँधेरा हो गया है, क्या लैंप ला दूँ? अचानक पैड्रो ने डॉक्टर से पूछ लिया।

दूसरे ने गर्दन हिलाई, हाँ। पहले तो मैं उसे भोंदू समझ रहा था, पर वह था नहीं। उसकी नीली आँखों के भीतर झाँकने पर मुझे लगा कि अगर उसका कोई कसूर है, तो वह है उसके भीतर कल्पनाशीलता का अभाव। पैड्रो बाहर गया और फिर एक तेल का लैंप उठा लाया, जिसे उसने बेंच के कोने पर रख दिया। इससे उजाला तो नहीं हुआ, पर अँधेरे से तो अच्छा ही था। पिछली रात तो उन्होंने हमें अँधेरे में ही रखा था। कुछ देर तक तो मैं लैंप से छत पर बने हुए प्रकाश के घेरे को ही देखता रहा। मैं मंत्रमुग्ध था। अचानक मैं जागा, प्रकाश का घेरा ख़त्म हो गया था और मुझे लग रहा था, जैसे मैं किसी भारी बोझ के नीचे दब गया हूँ।

यह मृत्यु का विचार या भय नहीं था, इसका कोई नाम नहीं था। मेरे जबड़े जल रहे थे और सिर दर्द कर रहा था।

मैंने अपने आपको झकझोरा और अपने दोनों साथियों की ओर देखा। टॉम ने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा रखा था। मुझे तो उसकी गर्दन पर गोरी, भारी गुद्दी-भर दिखाई दे रही थी। जुआन की हालात तो बहुत ख़राब थी। उसका मुँह खुला था और नथुने काँप रहे थे। डॉक्टर उसके पास गया और उनके कंधों पर हाथ रखा, जैसे उसे दिलासा दे रहा हो। पर उसकी आँखें ठंडी थीं। फिर मैंने देखा कि डॉक्टर का हाथ चुपचाप उसकी बाँह पर से सरकता हुआ उसकी कलाई तक गया। जुआन ने उसकी ओर ज़रा भी ध्यान दिया। फिर उसने उसकी कलाइयों को अपनी तीन उँगलियों में पकड़ा और थोड़ा अपनी ओर खींच लिया, साथ ही ख़ुद भी थोड़ा घूमकर मेरी ओर पीठ कर ली। मैंने थोड़ा पीछे झुककर देख लिया था कि उसने उसकी कलाई को पकड़े-पकड़े दूसरे हाथ से अपनी ज़ेब से घड़ी निकाली और कुछ देर के लिए उसे देखता रहा। एक मिनट बाद उसने उसका हाथ छोड़ दिया और ख़ुद पीठ दीवार पर टिका दी। और फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया हो, उसने झटके से अपनी ज़ेब से एक नोट बुक निकाली और उस पर कुछ लाइनें लिखी। “हरामी, ग़ुस्से में यही शब्द मेरे दिमाग़ में आया, ज़रा आकर वह मेरी नब्ज़ तो देखे, उसके सड़े थोबड़े को ठीक करने के लिए मेरा एक घूँसा ही काफ़ी होगा।

वह मेरे पास आया तो नहीं, पर मुझे लगा, वह मेरी ओर देख रहा था। मैंने अपनी गर्दन उठाई और उसकी ओर जवाबी दृष्टि डाली। फिर यूँ ही दिखावे के तौर पर उसने मुझसे पूछा, तुम्हें यहाँ ठंड तो नहीं लग रही है? वह ठंडा और विवर्ण दिख रहा था।

नहीं। मैंने जवाब दिया।

उसकी कठोर नज़रें मुझ पर जमी रहीं। अचानक मेरा हाथ अपने चेहरे की ओर गया, वह पसीने में भीगा हुआ था। इस तहख़ाने में इन सर्दियों के बीच में हवा के झोंकों के बावजूद मुझे पसीना रहा था। मैंने अपने बालों पर हाथ फेरा, जो पसीने से चिपचिपे हो गए थे। मैंने देखा, मेरी क़मीज़ भीग गई थी और मेरी त्वचा से चिपक गई थी। मुझे एक घंटे से पसीना रहा था, पर महसूस नहीं हो रहा था। वह सूअर भी मौक़ा नहीं चूका, उसने मेरे गालों पर फिसलती हुई पसीने की बूँदें देख ली होंगी और सोचा होगा कि यह भय के शरीर में पूरी तरह समा जाने का लक्षण है। इससे उसने गर्व का अनुभव किया होगा। मेरी इच्छा हुई कि खड़ा हो जाऊँ और उसके थोबड़े को रौंद डालूँ, पर इससे पहले कि मैं उठने की कोशिश करता, मेरा ग़ुस्सा और शर्म जाते रहे थे और मैं फिर बेंच पर गिर गया था, उदासीन!

गर्दन को रुमाल से पोंछते हुए मैंने राहत महसूस की, क्योंकि मैं सिर से बहते हुए पसीने को अपनी गर्दन पर फिसलते हुए महसूस कर रहा था, जो मुझे काफ़ी बुरा लग रहा था, पर रुमाल भी मैं कब तक फेरता रहता। थोड़ी ही देर में वह बिलकुल भीग गया, जबकि पसीना अपनी रफ़्तार से ही रहा था। मेरे चूतड़ों पर भी पसीना रहा था और उसकी नमी से मेरी पैंट बेंच से चिपक गई थी।

अचानक जुआन ने कहा, तो तुम डॉक्टर हो?

हाँ! बेल्जियन ने जवाब दिया।

क्या चोट लगती है देर...तक कष्ट होता है?

हुँह! कब...ओह नहीं, बेल्जियन ने पितृवत् कहा, बिलकुल नहीं, जल्दी ही ख़त्म हो जाता है। उसने इस तरह कहा, जैसे किसी ग्राहक को संतुष्ट कर रहा हो।

पर मैं...लोग कहते थे कि...कई बार दो बार गोली चलानी पड़ जाती है।

कभी-कभी, बेल्जियन ने गर्दन हिलाते हुए कहा, लेकिन ऐसा तभी करना पड़ता है, जब पहली गोली किसी घातक जगह पर नहीं लगती।

फिर तो उन्हें राइफ़ल दुबारा भरकर फिर से निशाना साधना पड़ता होगा... वह कुछ देर कुछ सोचता हुआ रुका, फिर बड़े निरीह स्वर में बोला, “इसमें तो काफ़ी देर लग जाती होगी?

उसके चेहरे पर आने वाले कष्ट का भयानक डर छा गया था, वह सिर्फ़ मौत के बारे में सोच रहा था। यह उसकी उम्र का कसूर था। मैंने कभी इस बारे में नहीं सोचा, पसीना आने का कारण इस कष्ट का डर बिलकुल नहीं था।

मैं खड़ा हुआ और धीरे-धीरे चलता हुआ कोयले के चूरे के ढेर तक गया। टॉम उछलकर खड़ा हो गया और मेरी ओर घृणा से देखने लगा। मेरे जूतों की चरमराहट के कारण वह खीज उठा था। कहीं मेरा चेहरा भी तो उसके चेहरे की तरह जड़ नहीं हो गया था! वह भी तो पसीने-पसीने हो रहा था। आकाश निर्मल था, पर इस अँधेरे कोने में ज़रा भी प्रकाश नहीं पा रहा था। ऊपर के उजले कमरे को देखने के लिए गर्दन उचकाना ही एकमात्र तरीक़ा था। पर इस समय वह वैसा नहीं था, जैसे रातों में दिखता था। अपने आश्रम के कमरे में से तो आकाश का एक बड़ा-सा टुकड़ा दिखता था और दिन के हर घंटे यह अलग-अलग दिखता था। सुबह जब आकाश सख़्त होता, हल्के नीले रंग का, तब मुझे अटलांटिक के सागर तटों की याद आती थी। दुपहर में मुझे सेविले के मदिरालय की याद आने लगती थी, जहाँ मैंने मंजानिका पी थी और साथ में गोमांस के धीमी आँच में पके कतले और भुनी हुई एंकोबी मछली खाई थी। दुपहर बाद मेरे बैठने की जगह पर छाया जाती थी तो मुझे बैलों की लड़ाई का अखाड़ा याद जाता, जिसमें आधे में धूप और आधे में छाया गई हो। आकाश में इस तरह से पूरी दुनिया को प्रतिबिंबित देखना वाक़ई बहुत कष्टकर है। पर अब मैं आकाश को उतना ही देखता हूँ, जितना मैं चाहता हूँ, और यह मेरे भीतर किसी भी प्रकार की उत्तेजना पैदा नहीं करता। यह मुझे ज़्यादा अच्छा लगता है। मैं वापस आकर टॉम के पास बैठ गया। इस प्रकार एक लंबा समय बीत गया।

टॉम हलकी आवाज़ में कहने लगा। उसे सिर्फ़ कहना था, बिना इस ख़्याल के कि वह ख़ुद अपने को भी नहीं पहचान पा रहा था। मैं समझा कि वह मुझसे बात कर रहा था, पर वह मेरी ओर ज़रा भी नहीं देख रहा था। बेशक वह मुझे इस रूप में देखने से डर रहा था। पीला पड़ा हुआ पसीने-पसीने। हम दोनों की हालत एक-सी थी, हम जैसे दर्पण में एक-दूसरे के प्रतिबिंब से भी बदतर हो गए थे।

उसने उस बेल्जियन की ओर देखा, जो जीवित था।

“तुम क्या समझ रहे हो? उसने कहा, “मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं रहा है।

मैं भी धीमी आवाज़ में कहने लगा था। मैंने बेल्जियन की ओर देखा, क्यों? क्या बात है?

“मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि हमें क्या होता जा रहा है?

टॉम में से एक विचित्र-सी गंध आने लगी थी। मुझे लगा कि मैं गंध के प्रति पहले से अधिक संवेदनशील होता जा रहा हूँ। मैं मुस्कराया, थोड़ी देर में सब कुछ समझ जाओगे।

“कुछ भी स्पष्ट नहीं है, उसने ढिठाई से कहा, मैं हिम्मत नहीं हारना चाहता, पर कम से कम मुझे यह तो बता दो...सुनो, वे हमें बरामदे में ले जाएँगे। ठीक है। वह हमारे सामने खड़े हो जाएँगे। कितने?

“मुझे नहीं मालूम। पाँच या आठ। ज़्यादा तो नहीं होंगे।

ठीक है। आठ लोग होंगे। एक आदमी चीख़ेगा, निशाना लगाओ और मैं देखूँगा कि आठ राइफ़लें मुझे ताक रही हैं। मैं सोचने लगूँगा कि मैं इस दीवार के भीतर कैसे घुस जाऊँ। मैं पीठ से दीवार पर ज़ोर लगाऊँगा...अपनी पूरी ताक़त के साथ, पर दीवार एक दुःस्वप्न की तरह अचल रहेगी। मैं इन सबकी कल्पना कर सकता हूँ। क्या तुम समझ सकते हो कि कितनी अच्छी तरह से मैं इन सबकी कल्पना कर पा रहा हूँ!

ठीक है, ठीक है! मैंने कहा, मैं भी इन सबकी कल्पना कर सकता हूँ।

चोट तो बहुत लगेगी। जानते हो, वे आँखों और मुँह पर निशाना साधेंगे, जिससे तुम्हारा चेहरा बिगड़ जाए अपनी आवाज़ में हिक़ारत भरते हुए वह कह रहा था, मैं उन घावों को अभी से महसूस कर सकता हूँ। मेरे सिर और गर्दन पर पिछले एक घंटे से दर्द हो रहा है। बहुत तेज़। कल सुबह भी मुझे ऐसा ही महसूस होगा। और फिर?

मैं अच्छी तरह समझ रहा था कि उसका मतलब क्या है, पर मैं ऐसी कोई हरकत नहीं करना चाहता था, जिससे लगे कि मैं समझ रहा हूँ। दर्द मुझे भी महसूस हो रहा था। पूरा शरीर दर्द कर रहा था, जैसे पूरे शरीर पर छोटी-छोटी अनगिन खरोंचें लगी हों। मुझे यह असामान्य लग रहा था, पर उसकी तरह मैं भी इसे कोई महत्त्व नहीं दे रहा था।

वह ख़ुद से ही बातें करने लगा था। वह लगातार बेल्जियन की ओर देखे जा रहा था, बेल्जियन उसकी बात को सुनता लग नहीं रहा था। मुझे पता था कि वह क्या करने के लिए आया था। उसकी रुचि इस बात में बिलकुल नहीं थी कि हम सोच क्या रहे हैं। वह हमारे शरीरों को देखने के लिए आया था, वे शरीर जो जीवित होते हुए भी त्रास से मरे जा रहे हैं।

बिलकुल ख़्वाब जैसा, टॉम कह रहा था, तुम जो भी सोचना चाहते हो, उसका प्रभाव हमेशा ही ऐसा होता है कि जो भी तुम सोच रहे हो, सब ठीक होगा, पर फिर तुम्हारी पकड़ से छूट जाता है और धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है। मैं ख़ुद से कहता हूँ कि बाद में कुछ नहीं होगा। पर मैं ख़ुद ही नहीं समझ पाता कि इसका मतलब क्या है? कभी तो लगभग...और फिर यह धुँधला जाता है और मैं दर्द, गोलियों और विस्फोटों के बारे में सोचने लगता हूँ। क़सम से, मैं भौतिकवादी हूँ, मैं परवाना नहीं हूँ, कोई बात है ज़रूर। मैं अपनी लाश को देखता हूँ, यह कष्टकर तो नहीं है, पर मैं वह व्यक्ति हूँ जो ख़ुद अपनी आँखों से यह देखता है। मुझे सोचना है...सोचना है कि इसके बाद मैं कुछ भी नहीं देख पाऊँगा, जबकि बाक़ी दुनिया सब कुछ देखती रहेगी। हम यह सोचने के लिए तो नहीं हैं पाब्लो। यक़ीन करो, मैं पूरी रात किसी के इंतज़ार में रुका रहा हूँ, पर यहाँ वह बात नहीं हैं, यह हमारे पीछे भी फैलती रहेगी पाब्लो और हम इसके लिए तैयार नहीं रह पाएँगे।

“चुप हो जाओ, मैंने कहा, क्या तुम चाहते हो कि मैं किसी पादरी को बुलाऊँ?

उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैं जान गया था कि वह किसी पैग़ंबर की तरह लगना चाहता था। मुझे पाब्लो कहकर पुकारते समय उसका स्वर उतार-चढ़ाव से रहित होता था। मुझे यह पसंद नहीं था। पर लगता है, सभी पुरुष इसी तरह के होते हैं। मुझे हल्का-सा आभास हुआ, जैसे उस पर से पेशाब की गंध रही थी। शुरू से ही मुझे टॉम के प्रति कोई विशेष सहानुभूति नहीं रही और यह एक साथ मरने की वजह से ही हो, इसका भी कोई कारण मेरी समझ में नहीं रहा था। दूसरों के साथ और बात हो सकती है, मसलन रेमों ग्रिस के साथ। पर टॉम और जुआन के बीच मैं ख़ुद को अकेला महसूस कर रहा था, फिर भी मुझे ज़्यादा बुरा नहीं लग रहा था। रेमों साथ होता तो ज़्यादा बुरा लगता। पर उस समय मेरी स्थिति कम कष्टकर नहीं थी, पर मैं ख़ुद भी तो सुख की स्थिति नहीं चाहता था।

वह अपने शब्दों को अन्यमनस्कता से चबाता रहा। निश्चित रूप से वह इसीलिए बोल रहा था, ताकि हम सोच सकें। उसमें से प्रॉस्टेट ग्रंथि के किसी पुराने मरीज़ की तरह पेशाब की गंध रही थी। मैं उसकी बात से सहमत हूँ, मैं भी वही सब कह सकता था जो वह कह रहा था। मरना कोई स्वाभाविक क्रिया नहीं है। और चूँकि मैं भी मरने जा रहा था, इसलिए मुझे कुछ भी स्वाभाविक नहीं लग रहा था। यह कोयले के चूरे का ढेर, बेंच, पेड़ों का घिनौना चेहरा। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि टॉम की तरह यह सब सोचना मुझे पसंद नहीं था और मैं जानता था कि पूरी रात के हर क्षण इस तरह की चीज़ें सोचते रहेंगे। मैंने कनखियों से उसकी ओर देखा और पहली बार वह मुझे एक अजनबी-सा लगा। उसने अपने चेहरे पर मौत ओढ़ रखी थी। पिछले चौबीस घंटों से मैं टॉम के साथ ही रहा था। मैंने उसे सुना था, उससे बात की थी, उसे जाना था और मैंने जाना कि हमारे बीच कुछ भी सामान्य नहीं था। और अब हम बिलकुल एक जैसे लग रहे थे, जैसे वे हों, सिर्फ़ इसलिए कि हम साथ-साथ मरने जा रहे थे। टॉम ने बिना मेरी ओर देखे मेरा हाथ थाम लिया।

पाब्लो, कितने आश्चर्य की..कितने आश्चर्य की बात है कि सब कुछ सचमुच ख़त्म होने जा रहा है।

मैंने उससे अपना हाथ छुड़ा लिया, सूअर कहीं के, अपने पैरों के बीच में देखो।

उसके पाँवों के बीच में कीचड़-सा हो गया था और उसकी पैंट के पायँचों में से बूँदें रिस रही थीं।

यह क्या है? उसने घबराते हुए पूछा।

तुम अपनी पैंट के अंदर पेशाब कर रहे हो। मैंने उसे बताया।

“यह ग़लत है, वह भिन्नाया था, मैं पेशाब कर रहा हूँ? मुझे ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हो रहा है।

बेल्जियन हमारे पास चला आया। कृत्रिम चिंता जताते हुए उसने पूछा, “तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?

टॉम ने कोई जवाब नहीं दिया। बेल्जियन ने उस कीचड़नुमा चीज़ को देखा और कुछ बोला नहीं।

'मुझे नहीं मालूम यह क्या है, टॉम ने करुण स्वर में कहा, मैं डर नहीं रहा हूँ। क़सम से, मैं डर नहीं रहा हूँ।

बेल्जियन फिर चुप रहा। टॉम उठा और पेशाब करने के लिए कोने में चला गया। आगे के बटन बंद करता हुआ वह वापस आया और बिना कुछ कहे बैठ गया। बेल्जियन कुछ नोट कर रहा था।

हम तीनों ने उसकी तरफ़ देखा, क्योंकि वह जीवित था, वह जीवित आदमी की तरह हरकतें कर रहा था, वह जीवित लोगों की तरह ज़िम्मेदारी महसूस कर रहा था। वह इस तहख़ाने की सर्दी में उसी तरह काँप रहा था, जैसे कोई भी जीवित आदमी काँप सकता है। उसके पास एक फ़रमाँ-बरदार, खाया-पिया शरीर था। शेष हम तीनों लोग उस जैसा ज़रा भी महसूस नहीं कर रहे थे। मैंने पाँवों के बीच में अपनी पैंट को महसूस करना चाहा, पर हिम्मत पड़ी। मैंने बेल्जियन की ओर देखा, वह अपनी दोनों टाँगों पर वज़न रखे खड़ा था, अपनी मांसपेशियों को मनचाहा हुक्म दे सकता था, कल के बारे में सोच सकता था। एक ओर हम थे—तीन रक्तहीन छायाएँ। हम उसकी ओर देखते और प्रेत की तरह प्राण सोख लेते।

अंत में वह नन्हें जुआन की तरफ़ गया। वह उसकी गर्दन को छू रहा था। उसके पीछे उसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य था या वह दयावश कर रहा था, पता नहीं। अगर वह दयावश कर रहा था तो यही उपयुक्त समय था।

उसने जुआन के सिर और गर्दन पर हाथ फेरा, लड़का चुपचाप उसे देखता रहा, फिर अचानक उसने उसका हाथ पकड़ लिया और आश्चर्य से देखने लगा। उसने अपने दोनों हाथों से बेल्जियन के हाथ को पकड़ा था और यह कोई अच्छा दृश्य नहीं था कि दो पतली भूरी चिमटियों ने उस मोटे लाल हाथ को थामा हुआ था। मैंने अनुमान लगा लिया था कि क्या होने जा रहा था। टॉम ने भी ज़रूर अनुमान लगा लिया होगा, पर बेल्जियन ने इस ओर ज़रा भी ध्यान दिया। वह पितृवत् मुस्कराया। एक क्षण बाद वह लड़का उस मोटे लाल हाथ को अपने मुँह तक लाया और उसे काटने की कोशिश की। बेल्जियन ने झटके से अपना हाथ खींचा और लड़खड़ाता हुआ दीवार से जा टकराया। एक क्षण के लिए वह घबरा गया, पर अचानक वह समझ गया कि हम उसकी तरह के आदमी नहीं हैं। वह ठहाके लगाने लगा। इस पर एक गार्ड उछल गया। दूसरा सो रहा था, उसकी खुली हुई आँखें सपाट थीं।

मैं आराम और उत्तेजना, दोनों एक साथ महसूस कर रहा था। जो कुछ सुबह होगा, या मौत के बारे में मैं अब कुछ नहीं सोचना चाहता था। इसका कोई अर्थ नहीं था। इसमें शब्द थे और था ख़ालीपन। पर जैसे ही मैं कुछ और सोचने की कोशिश करता, मुझे अपने सामने निशाना साधे राइफ़ल की नालें दिखाई देने लगतीं। अपने इस मृत्युदंड को मैंने बीस बार भोगा। एक बार तो मुझे लगा, यह ठीक ही है। मुझे कुछ देर के लिए नींद भी गई। वे मुझे दीवार की ओर घसीटते हुए ले जा रहे थे और मैं भरसक विरोध कर रहा था। मैं दया की भीख माँग रहा था। मैं झटके के साथ जाग गया और मैंने बेल्जियन की ओर देखा। मैं बहुत डरा हुआ था। मैं नींद में ज़रूर चीख़ा होऊँगा। पर वह अपनी मूँछें उमेठ रहा था। उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया। मैं समझता हूँ कि अगर मैं चाहता तो कुछ देर सो सकता था। मैं पिछले 48 घंटों से जाग रहा हूँ। यह मेरा अंतिम समय था।

पर मैं अपने जीवन के अंतिम दो घंटे खोना नहीं चाहता था। वे सुबह को आकर मुझे जगाएँगे और मैं उनके पीछे चल पड़ूँगा, उनींदा-सा। और फिर ओफ्... करता हुआ टर्राकर ख़त्म हो जाऊँगा। मैं ऐसा नहीं चाहता। मैं किसी जानवर की तरह नहीं मरना चाहता। मैं समझना चाहता हूँ। फिर मुझे ख़्वाब देखने से भी डर लगने लगा। मैं उठ खड़ा हुआ और इधर-उधर टहलने लगा। अपने विचारों को बदलने के लिए मैं अपने पिछले जीवन के बारे में सोचने लगा। यादों का एक झुंड गड्डमड्ड-सा मेरे ऊपर झपटा। अच्छी यादें भी थीं और बुरी भी। कम से कम अब तक तो मैं उन्हें उसी रूप में समझता था। कुछ चेहरे थे, कुछ घटनाएँ थीं। अपने चाचा का चेहरा, रेमों ग्रिस का चेहरा, मुझे अपना पूरा जीवन याद आया—किस तरह 1926 में तीन महीने मैं बिलकुल बेकार रहा। कैसी भुखमरी मैंने झेली है! मुझे याद आया कि एक रात मैंने ग्रेनेडा के एक बेंच पर बिताई थी। तीन दिन से मैंने कुछ नहीं खाया था। मुझे ग़ुस्सा रहा था, मैं मरना नहीं चाहता था। मुझे हँसी गई। किस तरह पागल होकर मैं ख़ुशियों के पीछे, औरतों के पीछे, आज़ादी के पीछे दौड़ रहा था। क्यों? मैं स्पेन को स्वतंत्र देखना चाहता था। मैं अराजकतावादी आंदोलन में शामिल हो गया। मैंने जनसभाओं में भाषण दिए। मैं हर चीज़ को ऐसे गंभीरता से लेता रहा, जैसे मैं अमर हूँ।

उस क्षण मुझे लगा, जैसे पूरा जीवन मेरे सामने है और मैंने सोचा, यह अब सब एक घृणित झूठ है।'' इसका कुछ भी मूल्य नहीं है, क्योंकि यह ख़त्म हो गया। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि किस तरह मैं चल सकता था, लड़कियों के साथ हँस सकता था। अगर मैं सोचता कि मैं इस तरह मर जाऊँगा तो मैं अपनी छोटी उँगली को ज़रा भी हिला पाता। मेरा जीवन मेरे सामने एक थैले की तरह बंद हो गया था, जिसके भीतर की हर चीज़ असमाप्त थी। मैं ख़ुद से कहना चाहता था कि यह एक ख़ूबसूरत जीवन है, पर अपना यह निर्णय मैं ख़ुद तक नहीं पहुँचा पाया। यह तो मात्र एक ख़ाका था, मेरा पूरा जीवन तो नकली अमरता को गढ़ने में ही बीता। मैं कुछ भी तो समझ नहीं पाया था। मैंने कुछ सोचा नहीं, बहुत कुछ था, जो मैं खो सकता था। मांजालिन का स्वाद, कादिन के निकट छोटी-सी खाड़ी में गर्मियों का स्नान, पर मृत्यु सारे मायाजाल से उबार लाई थी।

बेल्जियन को अचानक एक अच्छा विचार सूझ आया। हमसे कहने लगा, दोस्तो, अगर सैनिक प्रशासन ने अनुमति दी तो मैं तुम्हारे लिए एक काम कर सकता हूँ। मैं तुम्हारा अंतिम संदेश, स्मारिका के रूप में तुम्हारे प्रिय व्यक्तियों तक पहुँचा दूँगा।

टॉम बड़बड़ाया, मेरा कोई नहीं है।

मैंने कुछ नहीं कहा। टॉम एक क्षण चुप रहा, फिर उत्सुकता से मेरी ओर देखने लगा। ‘‘कोंका तक पहुँचाने के लिए भी तुम्हारे पास कोई बात नहीं है?

नहीं।

ऐसी कोमल सहानुभूति से मुझे नफ़रत थी। ग़लती मेरी ही थी, मैंने ही पिछली रात कोंका के बारे में बताया। मुझे अपने पर नियंत्रण रखना चाहिए था। क़रीब एक साल मैं उसके साथ रहा था। कल रात मैंने अपनी कुहनी मोड़कर उसमें अपना चेहरा छिपा लिया था, ताकि उसे कम से कम पाँच मिनट तो देख सकूँ। इसीलिए मैंने उसके बारे में बात भी की थी। पर अब मेरे मन में उससे मिलने की कोई इच्छा शेष नहीं रह गई थी। मेरे पास उससे कहने के लिए भी कुछ नहीं रह गया था। अब तो उसे बाँहों में लेने की भी इच्छा मुझमें शेष रह गई थी। मेरे शरीर ने मुझमें आतंक भर दिया था, क्योंकि यह पीला पड़ गया था और पसीने-पसीने हो गया था और मैं यह भी निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता था कि उसके शरीर ने मुझमें यह आतंक नहीं भरा था। कोंका को जैसे ही पता चलेगा कि मैं मर गया हूँ, वह बिलख उठेगी। उसके बाद के महीनों में जीवन उसके लिए बेस्वाद हो जाएगा। पर मैं तो मरने ही जा रहा हूँ। मैंने उसकी नर्म, सुंदर आँखों को याद किया। जब वह मेरी ओर देखती तो उसकी आँखों में से निकलकर कुछ मेरी आँखों में समाता, पर मैं जानता था कि अब यह कुछ नहीं है। अगर अब वह मेरी ओर देखे तो वह नज़र उसी की आँखों में ठहरी रहेगी, मुझ तक नहीं पहुँचेगी। मैं अकेला था।

टॉम भी अकेला था, पर इस तरह नहीं। टाँगों को एक-दूसरे में फँसाए वह हल्की मुस्कान लिए बेंच की ओर टकटकी लगाए था। वह मुग्ध-सा नज़र रहा था। उसने हाथ बढ़ाकर सावधानी से लकड़ी को छू लिया, जैसे उसे डर हो कि कोई चीज़ टूट जाएगी, फिर झटके से अपना हाथ वापस खींच लिया और थरथरा उठा। अगर मैं टॉम की जगह होता तो ऐसे मुग्ध होकर बेंच को कभी छूता, यह अतिशय मूर्खता थी। मैंने देखा कि चीज़ें बड़ी मजाहिया होने लगी थीं। मेरे लिए बेंच, लैंप, कोयले के चूरे के ढेर को देखना ही काफ़ी था। यह अनुभव करने के लिए कि मैं मरने जा रहा हूँ। स्वाभाविक है कि मैं मौत के बारे में स्पष्टत: नहीं सोच पा रहा था, पर सर्वत्र यह ज़रूर दीख रहा था कि चीज़ें पीछे हटकर मुझसे एक दूरी बना रही हैं। उन्हीं लोगों की तरह, जो मरते हुए आदमी के बिस्तर के पास बैठे चुपचाप बात करते हैं। टॉम ने उस बेंच पर अपनी मौत को ही तो छुआ था।

मेरी हालत यह थी कि अगर कोई मेरे पास आकर कहता कि मैं घर जा सकता हूँ, उन्होंने पूरा जीवन जीने के लिए मुझे दे दिया है, तब भी मैं भावशून्य ही रहता। अपने अमर होने का भ्रम जब एक बार टूट जाता है तो फिर कुछ घंटों के या कुछ सालों के इंतज़ार में फ़र्क़ ही क्या रह जाता है! मेरी सारी निष्ठाएँ ख़त्म हो गई थीं और मैं शांत था, पर यह एक भयानक शांति थी—जिसका कारण था मेरा शरीर; मेरा शरीर क्योंकि इसी की आँखों से तो मैंने देखा था, इसी के कानों से सुना था। पर अब यह मैं नहीं था। यह ख़ुद ही पसीने-पसीने हो रहा था। काँप रहा था और मेरी इसके साथ कोई पहचान शेष नहीं रह गई थी। यह जानने के लिए कि क्या हो रहा है, मुझे इसे छूना, इसकी ओर देखना पड़ता था, जैसे यह किसी और का शरीर हो। कई बार अब भी मुझे ऐसा लगता, जैसे मैं डूबा जा रहा हूँ, गिर रहा हूँ। ठीक वैसे ही जैसे आप सतह पर खड़े होकर सिर के बल डुबकी मार रहे हों। मैं अपने दिल की धड़कनों को साफ़ महसूस कर रहा था, पर ये बातें मुझे आश्वस्त नहीं कर पा रही थीं। मेरे शरीर से जो कुछ रहा था, वह विरूप था। अधिकतर समय मैं चुप रहा और अपने वज़न का कम होना, अपने साथ एक घिनौनी उपस्थिति को ही महसूस करता रहा। मुझे लग रहा था, जैसे किसी विशाल कीड़े के साथ मुझे बाँध दिया गया है। एक बार मैंने अपनी पैंट को महसूस किया और फिर लगा कि वह भीगी हुई है। मालूम नहीं, यह पसीना था या पेशाब, पर एहतियातन मैं कोयले के ढेर के पास पेशाब करने के लिए चला गया।

बेल्जियन ने ज़ेब से घड़ी निकालकर देखी, फिर कहा, साढ़े तीन बज गए हैं।

हरामी! इसके पीछे ज़रूर उसकी कोई मंशा थी। टॉम उछल पड़ा। यह तो हमने ध्यान ही नहीं दिया था समय तेज़ी से भागा जा रहा है। रात ने हमको एक आकारहीन, धुँधले शिकार की तरह घेर लिया था, मुझे पता भी नहीं चल पाया कि यह प्रक्रिया शुरू कब हुई।

नन्हा जुआन रोने लगा था। वह अपने हाथों को फैलाते हुए दया की भीख माँग रहा था, मैं मरना नहीं चाहता, मैं मरना नहीं चाहता!

हवा में अपने हाथों को फैलाता हुआ वह तहख़ाने के एक कोने से दूसरे कोने तक गया और फिर चटाई पर गिरकर सिसकने लगा। टॉम शोकाकुल नज़रों से उसे देखता रहा। उसे सांत्वना देने का कोई उपक्रम वह नहीं कर रहा था। वह इस लायक़ था भी नहीं, पर लड़का कुछ ज़्यादा ही शोर कर रहा था जबकि उस पर इसका इतना गहरा प्रभाव नहीं पड़ा था। वह उस बीमार आदमी की तरह था, जो बुख़ार की पीड़ा में अपने को बचाने की कोशिश कर रहा हो। यह बात तब और गंभीर हो जाती है जब बुख़ार हो ही नहीं।

वह रोने लगा था। मैं साफ़ देख रहा था कि वह अपने प्रति कारुणिक हो रहा था, मौत के बारे में वह ज़रा भी नहीं सोच रहा था। एक क्षण के लिए मुझे ख़ुद पर रोने की इच्छा हुई। अपने पर दया आने लगी। लेकिन हुआ उसका उलटा। मैंने उस लड़के की ओर देखा, उसके सिसकते चेहरे ने मुझे और भी अमानवीय बना दिया था। अब मुझे तो किसी और पर दया रही थी, ख़ुद पर। मैंने ख़ुद से ही कहा, “मैं सफ़ाई से मरना चाहता हूँ।

टॉम उठकर खड़ा हो गया था और चलता हुआ ऊपर रोशनदान के ठीक नीचे खड़ा होकर ऊपर की रोशनी को देखने लगा था। मैं सफ़ाई से मरने का दृढ़ निश्चय कर चुका था और उसी के बारे में सोच रहा था। पर जब से डॉक्टर ने समय बताया था, तभी से मुझे लग रहा था कि जैसे समय उड़ता जा रहा है, एक-एक बूँद निचुड़ता हुआ।

अभी अँधेरा ही था कि मुझे टॉम की आवाज़ सुनाई दी, क्या तुम्हें उनकी आवाज़ सुनाई दे रही है?

हाँ।

बरामदे में वे लोग मार्च कर रहे थे।

“वे कर क्या रहे हैं? वे हमें अँधेरे में तो नहीं मार सकते?

कुछ देर के लिए चुप्पी छा गई। मैंने टॉम से कहा, अब तो दिन है।

पैड्रो जंभाई लेता हुआ उठ खड़ा हुआ था और लैंप जलाने लगा था। उसने अपने साथी से कहा, कितनी भयंकर सर्दी है!

भूरा उजाला तहख़ाने में फैल गया था। काफ़ी दूर से हमें गोलियाँ चलने की आवाज़ें सुनाई दीं।

यह शुरुआत है, टॉम ने कहा, यह काम वे पीछे के आँगन में कर रहे होंगे।

टॉम ने डॉक्टर से एक सिगरेट माँगी। मुझे उसकी ज़रूरत नहीं थी। मुझे शराब या सिगरेट की ज़रा भी ज़रूरत नहीं थी। उस क्षण के बाद से गोलियाँ चलने की आवाज़ लगातार सुनाई देती रही थी।

“जानते हो, क्या हो रहा है? टॉम ने पूछा।

वह कुछ और कहना चाहता था, पर दरवाज़े की ओर देखता हुआ चुप ही रहा। दरवाज़ा खुला और एक लैफ्टीनेंट चार सिपाहियों को लेकर अंदर गया। टॉम के हाथ से सिगरेट छूट गई।

स्टीनबोक?

टॉम चुप रहा, पैड्रो ने उसकी ओर संकेत किया।

जुआन मिखल!

चटाई पर है।

खड़े हो जाओ। लैफ्टीनेंट ने कहा।

जुआन ज़रा भी हिला। दो सिपाहियों ने बग़ल में हाथ देकर उसे खड़ा कर दिया। पर जैसे ही उन्होंने छोड़ा, वह फिर गिर गया।

यह कोई पहला आदमी तो है नहीं, जो घबरा गया हो, लैफ्टीनेंट ने कहा, “तुम दो लोग उसे उठाकर ले चलो। वहाँ सब ठीक हो जाएगा।

वह टॉम की ओर मुड़ा, “आओ चलें।

टॉम दो सिपाहियों के बीच में चलने लगा। उनके पीछे दो लोग लड़के को उठाए चल रहे थे। एक ने बग़ल से पकड़कर उठा रखा था और दूसरे ने टाँगें, वह बेहोश नहीं था। उसकी आँखें खुली थीं और आँसू गालों पर से होते बह रहे थे। जब मैं भी बाहर निकलने लगा तो लैफ्टीनेंट ने मुझे रोक दिया।

तुम इब्बीता हो?”

हाँ

तुम यहीं रुको, तुम्हें लेने के लिए हम बाद में आएँगे।

वे चले गए। बेल्जियन और दोनों गार्ड भी चले गए। मैं अकेला रह गया। मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि मेरा वे क्या करेंगे! अगर वे मुझे भी अभी ले जाते तो अच्छा होता। बराबर अंतराल के साथ गोलियाँ चलने की आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी और हर आवाज़ से मुझे धक्का लग रहा था। मैं चीख़ना चाहता था। अपने बालों को नोच लेना चाहता था। पर मैंने सिर्फ़ अपने दाँत किचकिचाए और ज़ेबों में हाथ डाल दिए।

एक घंटे बाद वे लोग आए और मुझे पहली मंजिल पर एक छोटे-से कमरे में ले गए। वहाँ सिगार की गंध फैली हुई थी और दमघोंटू गर्मी थी। आरामकुर्सियों पर बैठे दो ऑफ़िसर धुआँ छोड़ रहे थे। काग़ज़ उनके घुटनों पर रखे थे।

तुम इब्बीता हो?”

हाँ

रामों ग्रिस कहाँ है?

मुझे नहीं मालूम।

मुझसे सवाल पूछने वाला व्यक्ति नाटा और मोटा था। चश्मे के पीछे उसकी आँखें काफ़ी कठोर लग रही थीं। उसने मुझसे कहा, इधर आओ।

मैं उसके पास चला गया। वह उठ खड़ा हुआ। मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे ऐसी नज़र से घूरने लगा, जैसे मुझे ज़मीन में गाड़ देगा। उसी क्षण उसने अपनी पूरी ताक़त से मेरे पेट पर एक घूँसा जड़ दिया। यह मुझे चोट पहुँचाने के लिए नहीं था, यह तो एक खेल था। वह मुझ पर क़ाबू पा लेना चाहता था। फिर वह खड़ा-खड़ा अपनी दुर्गंधयुक्त साँस मेरे चेहरे पर छोड़ता रहा। एक क्षण तक हम उसी तरह खड़े रहे, मेरी इच्छा हँसने की होने लगी थी। जो आदमी मरने वाला है, उसे डराना काफ़ी मुश्किल काम है। ये लटके वहाँ काम नहीं देते। उसने मुझे एक ज़ोर का धक्का दिया और फिर बैठ गया, कहने लगा, “उसके बदले तुम्हारी जान दाँव पर है। अगर तुम बता दो कि वह कहाँ है तो तुम्हारी जान बच सकती है।

घुड़सवार तो अपने चाबुक फटकारते घूम रहे थे और जूते साफ़ करने वाले मरे जा रहे थे। वे अपने मुचड़े हुए काग़ज़ों में नाम ढूँढ़ रहे थे, वे या तो उन्हें जेल में डाल रहे थे या उनका दमन कर रहे थे। वे स्पेन के भविष्य तथा अन्य विषयों पर बात कर रहे थे। उनकी गतिविधियाँ मुझे उलझी हुई और विद्रूप लग रही थीं। मैं अपने को उनकी जगह रख ही नहीं पा रहा था। मेरे विचार से वे विक्षिप्त थे।

वह नाटा अभी तक अपने जूतों को रगड़ता और चाबुक फटकारता मुझे ही घूर रहा था। उसकी सारी मुद्राएँ उसे एक क्रूर जानवर का रूप दे रही थीं।

तो? कुछ आया समझ में?

“मुझे नहीं मालूम कि ग्रिस कहाँ है, मैंने जवाब दिया, मैं तो समझता था कि वह मेड्रिड में ही होगा।

दूसरे ऑफ़िसर ने अपना पीला हाथ अलसाए ढंग से ऊपर उठाया। यह अलसायापन भी सुविचारित था। मुझे उनकी सारी संकीर्ण योजनाओं का पता चल गया था और यह देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया था कि ये लोग इस तरह से मज़ा लेते हैं।

हम तुम्हें सोचने के लिए पंद्रह मिनट देते हैं, उसने धीरे से कहा, इसे धोबीघर ले जाओ और पंद्रह मिनट बाद वापस ले आना। अगर यह फिर भी मना करेगा तो तत्क्षण गोली मार दी जाएगी।

उन्हें पता था कि वे क्या कर रहे हैं। मैं रात-भर इंतज़ार ही तो कर रहा था। फिर उन्होंने एक घंटा और मुझे तहख़ाने में इंतज़ार करवाया, जबकि टॉम और जुआन को गोली मारी जा चुकी थी। और अब ये मुझे धोबीख़ाने में बंद कर रहे हैं। ज़रूर उन्होंने अपना यह खेल रात से पहले ही तैयार कर लिया होगा। वे जानते थे कि ऐसे में स्नायु जवाब दे देते हैं और उन्हें उम्मीद थी कि वे मुझे धर लेंगे।

पर वे बिलकुल ग़लत सोच रहे थे। धोबीघर में मैं स्टूल पर बैठ गया, क्योंकि मैं बहुत कमज़ोरी महसूस कर रहा था। अब मैं सोचने लगा था। अपनी हालत के बारे में नहीं। मुझे पता था कि ग्रिस कहाँ है। वह शहर से चार किलोमीटर दूर अपने चचेरे भाई के घर पर छिपा हुआ था। मैं यह भी जानता था कि अब वे मुझे टॉर्चर नहीं करेंगे (पर मुझे याद नहीं रहा था, वे ऐसा करेंगे)। सब कुछ सुव्यवस्थित था, सुनिश्चित था पर मैंने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं ली। मैं सिर्फ़ अपने व्यवहार के कारणों को समझना चाहता था। मैं ग्रिस का पता देने के बजाय मरना अधिक पसंद कर रहा हूँ। क्यों? रामों ग्रिस के प्रति अब मुझमें ज़रा भी लगाव नहीं था। उससे मेरी दोस्ती भोर से पहले उसी समय मर गई थी, जैसे कोंका के प्रति प्यार और मेरी ख़ुद जीने की इच्छा! बेशक मैं उसका आदर करता था। वह बहुत सख़्त आदमी था। पर उसके बदले मेरे मरने का यह कारण नहीं था। उसका जीवन मेरे जीवन से अधिक मूल्यवान नहीं था। जीवन अमूल्य होता है। उन्हें तो एक आदमी को दीवार के सहारे खड़ा करना है और गोली मारकर उसकी हत्या करनी है। वह आदमी मैं हूँ, ग्रिस है या कोई और, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

मैं जानता था कि स्पेन और अराजकता, कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं है। जब तक मैं हूँ, मुझे अपनी चमड़ी बचानी चाहिए और ग्रिस का पता दे देना चाहिए और मैं इस सबसे इनकार कर रहा हूँ।

मुझे लगा, यह बहुत हास्यास्पद है, दुराग्रह है। मैंने सोचा, 'मैं ज़िद्दी हो गया हूँ!' और एक बड़ी विचित्र-सी प्रसन्नता मेरे शरीर में भर गई।

वे आए और मुझे उन दो ऑफ़िसरों के पास ले गए। एक चूहा मेरे पाँवों के बीच में से दौड़ता हुआ निकल गया। इस पर मुझे हँसी गई। मैंने उनमें से एक रखवाले से पूछा, क्या तुमने चूहे को देखा?

उसने कोई जवाब नहीं दिया, वह काफ़ी सौम्य था और गंभीर बना रहा। मैं हँसना चाहता था, पर मैंने अपने को रोके रखा, क्योंकि अगर मैं हँसने लगा तो फिर रुक नहीं पाऊँगा। उस रखवाले की मूँछें थीं। मैंने उससे फिर पूछा, तुम्हें अपनी मूँछें तराश डालनी चाहिए, बेवक़ूफ़! मुझे यह कल्पना बड़ी हास्यास्पद लगी। उसने बिना कुछ बोले एक ठोकर मुझे जमा दी और मैं चुप हो गया।

“ठीक है, उस मोटे ऑफ़िसर ने कहा, “क्या तुमने इस बारे में सोच लिया है?

मैंने बड़ी उत्सुकता से उनकी ओर देखा, जैसे वे किसी दुर्बल जाति के जीव थे। मैंने उनसे कहा, “मैं जानता हूँ, वह कहाँ है। वह क़ब्रिस्तान में छिपा हुआ है। वह या तो किसी क़ब्र में छिपा बैठा होगा या क़ब्र खोदने वाले की कोठरी में।

फिर तो एक तमाशा खड़ा हो गया। मैं चाहता था कि वे उठ खड़े हों, अपनी पेटियाँ कसें और व्यस्तता से ऑर्डर देने लगें।

वे एकदम उछलकर खड़े हो गए, “चलो भोले, तुम लेफ्टीनेंट लोले से पंद्रह आदमी अपने साथ ले लो। छोटा मोटा आदमी कह रहा था, “तुम अगर सही कह रहे हो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। पर तुम अगर हमें बेवक़ूफ़ बनाने की सोच रहे हो तो उसका ख़ामियाज़ा भी तुम्हें भुगतना पड़ेगा।

खटखटाहट के साथ वे वहाँ से चले गए और मुझे उन रखवालों की चौकसी में छोड़ गए। वहाँ जो तमाशा होगा, उसे सोच-सोचकर मुझे हँसी रही थी। मैं कल्पना करने लगा कि कैसे वे क़ब्र के पत्थरों को उखाड़ेंगे, एक-एक कोठरियों के दरवाज़ों को खोलेंगे। मैं पूरी स्थिति को ऐसे देखने लगा, जैसे मैं कोई और हूँ और यह क़ैदी एक हठी नायक की भूमिका में है। और ये मूँछोंवाले घृणित रखवाले तथा उनके वर्दीधारी लोग क़ब्रों के ऊपर से भाग रहे हैं। कितना मज़ेदार है!

आधे घंटे बाद वह मोटा-नाटा अकेला वापस लौट आया। मेरा ख़्याल था कि वह मुझे गोली मार देने का हुक्म देने के लिए आया था। और लोग अभी क़ब्रिस्तान में ही होंगे।

ऑफ़िसर ने मेरी ओर देखा। वह ज़रा भी स्पेनी नहीं लग रहा था। इस बड़े आँगन में दूसरे लोगों के साथ रहो, उसने कहा, सैनिक अभियानों के बाद नागरिक अदालत ही इसका फ़ैसला करेगी।

जो बात मैं समझा, उसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मैंने पूछा, तो क्या...मुझे गोली नहीं मारी जाएगी?

“अभी तो नहीं। बाद में क्या होता है, इससे मुझे कोई मतलब नहीं है।

मेरी समझ में अब भी कुछ नहीं आया था। मैंने पूछा, पर क्यों...?

उसने बिना कुछ बोले अपने कंधे झटके और सिपाही मुझे अपने साथ ले गए।

शाम को उन्होंने क़रीब दस नए क़ैदियों को आँगन में ठूँस दिया। मैंने गार्सिया नानवार्ड को पहचान लिया। उसने कहा, तुम्हारा भी दुर्भाग्य है! मैं तो सोच रहा था कि तुम अब तक ख़त्म कर दिए गए होगे।

उन्होंने तो मुझे मौत की सज़ा दे दी थी, पर फिर पता नहीं क्यों विचार बदल दिया। मैंने कहा।

उन्होंने मुझे ठीक दो बजे गिरफ़्तार किया। गर्सिया ने बताया।

पता नहीं क्यों, वे उन सभी लोगों को गिरफ़्तार कर रहे हैं जिन्हें अपनी गिरफ़्तारी का कारण भी पता नहीं होता, उसने कहा और फिर आवाज़ हल्की करके कहा, उन्होंने ग्रिस को भी गिरफ़्तार कर लिया है।

मैं काँप गया था, कब?

आज सुबह। इसके लिए वह ख़ुद ही ज़िम्मेदार है। मंगलवार को अपने चचेरे भाई से उसकी कहा-सुनी हो गई तो वह उनके घर से चला आया। कई लोग उसे छिपाने के लिए तैयार थे, पर पता नहीं क्यों, वह किसी का अहसान नहीं लेना चाहता था। उसने कहा, मैं जाकर इब्बीता के घर में छिपूँगा। पर इब्बीता को भी तो उन्होंने गिरफ़्तार कर लिया है, इसलिए मैं क़ब्रिस्तान में जाकर छिपूँगा।

क़ब्रिस्तान में?

हाँ, क्या बेवक़ूफ़ी है! आज सुबह वे वहाँ पहुँच गए, यह तो होना ही था। उन्होंने उसे क़ब्र खोदने वाले की कोठरी में धर लिया। उसने उन पर गोली चलाई और उन्हें उसका पता चल गया।

'क़ब्रिस्तान में!

सब कुछ घूमने लगा था। मैं सीधा ज़मीन पर गिरा। मैं ज़ोर से हँसा, पर मेरे मुँह से चीख़ निकली थी।

स्रोत :
  • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 233-253)
  • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
  • रचनाकार : ज्यां-पाॅल चार्ल्स एमार्ड सार्त्र
  • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
  • संस्करण : 2008

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