नरक ले जाने वाली लिफ़्ट

narak le jaane wali lift

पार फ़ेबियन लागेरक्विस्ट

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    रईस व्यापारी मि० स्मिथ ने होटल की शानदार लिफ़्ट का दरवाज़ा खोला और निहायत प्यारे-भरे अंदाज़ के साथ फर और पाउडर में लिपटी, महकती सुंदरी को एहतियात से भीतर खींच लिया। गुदगुदी और मुलायम सीट पर दोनों आपस में लिपट गए। लिफ़्ट नीचे की ओर चल पड़ी। अपना भाप और शराब से भीगा अधखुला मुँह लड़की ने आगे कर दिया और एक ने दूसरे का चुंबन लिया। खुली छत पर, तारोंभरी छाँह में, अभी-अभी दोनों ने रात का खाना साथ-साथ खाया था और अब मनोविनोद और मनोरंजन करने के लिए बाहर निकल रहे थे।

    “सुनो, ऊपर कैसा अच्छा लगा था! मानो साक्षात् स्वर्ग में बैठे हों!” होंठों-ही-होंठों में फुसफुसाकर स्त्री ने कहा, “तुम्हारे साथ बैठकर आसपास का सब-कुछ ऐसा रोमानी और कवित्वपूर्ण लगता था, मानो हम लोग धरती के जीव नहीं, आसमान के तारे हों!...प्यार किसे कहते हैं, सचमुच इसका अनुभव ऐसे क्षणों में ही तो होता है। तुम मुझे प्यार करते हो…क्यों करते हो न?”

    मि० स्मिथ ने उसकी इस बात का जवाब पहले से भी अधिक प्रगाढ़ और लंबे चुंबन से दिया। लिफ़्ट नीचे रही थी।

    “डार्लिंग, तुम गईं, यह बहुत ही अच्छा किया,” मि० स्मिथ बोले, “वरना तुम जानती हो, मेरा मन कितना ख़राब हो जाता।”

    “सो तो ठीक है। लेकिन ज़रा इस बात की भी तो कल्पना करो कि वह आदमी कितना ढीठ और ज़िद्दी है। आने के लिए मैंने जैसे ही तैयारी शुरू की कि आप पूछते हैं, कहाँ चल दीं। मैने भी कह दिया, जहाँ मन होगा, वहाँ जाऊँगी, किसी की दबैल हूँ क्या? मेरी इस बात पर, जब तक मैं कपड़े बदलती और नया ऊनी शाल पहनती रही, वह बैठा-बैठा ढिठाई से मुझे घूरता ही रहा। अच्छा तो बताओ, यह बिना रंगा-धुला ऊनी शाल मुझ पर कैसा लगता है? तुम्हें कैसे रंग का कपड़ा सबसे ज़्यादा अच्छा लगता है? गुलाबी ही लगता होगा, है न?”

    “तुम्हारे ऊपर तो सब कुछ खिल उठता है, डार्लिंग!” पुरुष ने कहा, “लेकिन आज की रात तो तुम दिल पर बिजलियाँ गिरा रही हो, बिजलियाँ!”

    आत्मतुष्ट मुस्कान के साथ उसने अपना फर वाला कोट खोल डाला। देर तक फिर दोनों एक-दूसरे को चूमते रहे। लिफ़्ट नीचे की ओर चलती रही।

    “फिर जैसे ही मैं निकलने को तैयार हुई कि उसने बिना कुछ बोले-चाले मेरा हाथ पकड़कर ऐसे ज़ोर से ऐंठ दिया कि अभी तक दर्द हो रहा है। तुम सोच नहीं सकते, कैसे उजड्ड और जंगली आदमी से मेरा पाला पड़ा है। मैंने कहा, अच्छा चलती हूँ। लेकिन उस बंदे के मुँह से बोल नहीं फूटा। ऐसा भयानक ज़िद्दी और हठीला आदमी है कि डर लगता है। मुझसे अब नहीं सहा जाता।”

    “उफ़!” हमदर्दी से मि० स्मिथ ने कहा।

    “मानो ज़रा-सा बाहर निकलकर मन बहलाना भी मेरे भाग्य में नहीं है। फिर वह ऐसा घुन्ना और चुप्पा आदमी है कि तुम सोच नहीं सकते। किसी बात को सहज और स्वाभाविक रूप में लेना तो उसने सीखा ही नहीं, मानो हमेशा उसके सामने ज़िंदगी और मौत का सवाल बना रहता हो।”

    “हाय, तुम्हें कितनी मुसीबतें उठानी पड़ी होंगी!”

    “उफ़! मैंने भयंकर तकलीफ़ें सही हैं, भयंकर! जितना मैंने सहा है, क्या किसी ने सहा होगा! प्यार क्या होता है, यह तो तुमसे मुलाक़ात होने से पहले मैं जानती ही नहीं थी।”

    “दिलरुबा!” उसे बाँहों में भरकर मि० स्मिथ बोले। लिफ़्ट नीचे चलती रही।

    “मेरे उस सुख की कल्पना करो,” आलिंगन के बाद जैसे ही साँस आई, वह बोली, “तारों को ताकते हुए यों तुम्हारे साथ ऊपर बैठना और सपनों की दुनिया में खो-खो जाना...हाय! मैं इस क्षण को कभी नहीं भूलूँगी। देखो, बात यह है आर्विड के साथ मेरा निर्वाह अब नामुमकिन है। हमेशा ऐसा मनहूस और बुजुर्ग जैसा बना रहता है कि बस! कविता तो उसे छू नहीं गई है। उसे कविता-वविता से वैसे भी कोई लगाव नहीं है।”

    “इस सबको सह पाना तो सचमुच असंभव है, डार्लिंग!”

    “हाँ, असहनीय है!...लेकिन,” मुस्कराकर अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाकर स्त्री ने अपनी बात कही, “लेकिन यहाँ बैठकर अब उस सब पर माथापच्ची क्यों करें? हम लोग मनोरंजन के लिए निकले हैं। तुम सचमुच मुझे प्यार करते हो न?”

    ‘‘हाँ-हाँ, इसमें भी कोई शक है?” पुरुष बोला और उसे कमर से पकड़कर पीछे झुका दिया। स्त्री का मुँह खुल गया। लिफ़्ट नीचे चलती रही। उसके ऊपर झुककर पुरुष ने उसे प्यार से गुदगुदा दिया। स्त्री लजाकर लाल हो गई।

    “आज की रात, आओ, हम लोग ऐसा प्यार करें, ऐसा प्यार करें कि आज तक कभी किया हो! हुम्!” फुसफुसाकर वह बोला।

    स्त्री ने उसे अपने शरीर से चिपका लिया और आँखें मूँद लीं। लिफ़्ट नीचे चलती रही।

    लिफ़्ट नीचे और नीचे उतरती चली जा रही थी।

    आख़िर मि० स्मिथ उठ खड़े हुए; चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

    “मगर आज इस लिफ़्ट को क्या हो गया है?” घबराकर वह बोले, “यह रुकती क्यों नहीं है? जाने कब से बैठे-बैठे हम लोग इसमें बातें कर रहे हैं! क्यों, है न”

    “हाँ, प्रियतम, मुझे भी लगता है कि हम लोग काफ़ी देर से बैठे हैं। समय भी तो हवा की तरह उड़ता है।”

    “या ख़ुदा! हमें इसमें बैठे युगों हो गए। आख़िर इसका मतलब क्या है?”

    उसने सीखचों के पार देखने की कोशिश की। अँधेरे-घुप के सिवा कुछ नहीं था। और लिफ़्ट थी कि अपनी दृढ़, एकरस गति से गहरी और गहरी उतरती चली जा रही थी।

    “हाय भगवान्! यह क्या हुआ? मानो किसी गड्ढे में उतरते चले जा रहे हों। ख़ुदा जाने कितनी देर से इस तरह उतरते चले जा रहे हैं। अब क्या होगा?”

    उन्होंने नीचे, तले के गड्ढे की ओर झाँकने की भी कोशिश की। वहाँ भी घटाटोप अंधकार था, और वे लोग उसमें डूबते चले जा रहे थे।

    “लगता है, अब तो यह नरक में जाकर ही दम लेगी।” स्मिथ बोले।

    “हाय राम!” उसकी बाँह पकड़कर स्त्री बिसूरने लगी, “मेरे तो हाथ-पाँव फूल गए हैं। रोकने के लिए इमरजेंसी ब्रेक खींचो न!”

    अपने शरीर की सारी ताक़त लगाकार स्मिथ ने ब्रेक खींचा। कोई लाभ नहीं हुआ। लिफ़्ट अनवरत रूप से नीचे उतरती रही।

    “उफ़! यह क्या हुआ?” वह रो पड़ी, “अब हम क्या करें?”

    “हाँ, ऐसे में कोई कमबख़्त करे भी तो क्या?” स्मिथ बोले, “अजीब आफ़त है!”

    लड़की बहुत ही हताश हो उठी और फूट-फूटकर रोने लगी।

    “बस-बस, मेरी जान! अब रोओ मत! हम लोगों को होश से काम लेना चाहिए। इसमें हम लोगों का बस भी आख़िर क्या है! अब बस करो, आओ बैठो। यों! ऐसे! हाँ, अब हम दोनों यहाँ चुपचाप पास-पास बैठकर देखें कि आगे क्या होता है। कभी कभी तो यह रुकेगी ही, और रुके तो जाए भाड़ में!”

    वे लोग बैठकर प्रतीक्षा करने लगे।

    “कभी किसी ने सोचा था कि ऐसा हो जाएगा?” स्त्री बोली, “हम लोग मज़े उड़ाने के लिए निकले थे!”

    “हाँ, उसी कमबख़्ती के मारे तो हम निकले थे!” स्मिथ ने जवाब दिया।

    “तुम मुझे बहुत-बहुत प्यार करते हो, क्यों करते हो न?”

    “डार्लिंग!” स्मिथ ने उसे अपनी बाँहों में कसकर कहा। लिफ़्ट नीचे उतरती रही। आख़िर अचानक झटके से लिफ़्ट रुक गई। चारों तरफ़ ऐसी तेज़ रोशनी थी कि आँखों में चुभती थी। अब वे लोग नरक में गए थे। शैतान ने बाअदब लिफ़्ट का छड़ोंवाला दरवाज़ा एक तरफ़ सरका दिया।

    'नमस्कार!” शैतान ने बहुत ही झुककर साभिवादन कहा। उसने अपनी पूँछ को बड़े फ़ैशनबल तरीक़े से सजा रखा था। एक जंग लगी कील के सहारे पूँछ का बालोंवाला झब्बा रीढ़ के ऊपर गर्दन के पास झूम रहा था।

    मि० स्मिथ और वह स्त्री दोनों लड़खड़ाते-से चौंधे में निकल आए। उन अजीब-अजीब छायाओं से दहलकर उसके मुँह से निकल पड़ा, “या ख़ुदा, यह हम लोग कहाँ गए!”

    परिताप के प्रतिबिंब शैतान ने उन्हें स्थिति समझाई।

    ‘नरक’ शब्द सुनकर जैसा कुछ लगता है, उतना बुरा यह नहीं है,” शैतान बोला। साथ ही कहा, “मुझे उम्मीद है, आपका समय यहाँ आनंद में ही बीतेगा। मेरा ख़्याल है, आप एक रात ही तो रहेंगे यहाँ?”

    “जी हाँ, जी हाँ!” स्मिथ ने आतुरता से हामी भरी, “जी हाँ, सिर्फ़ एक ही रात के लिए चाहिए! इससे ज़्यादा हम लोग यहाँ नहीं रुक सकेंगे। जी, नहीं।”

    थरथर काँपती हुई लड़की ने उसकी बाँह भींच रखी थी। रोशनी कुछ ऐसी रक्त-शोषी और पीली-हरी थी कि पहले तो उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं दिया। उन्हें लगा कि गरम-गरम गंध आसपास भरी है। जब उनकी आँखें इस रोशनी की कुछ और अभ्यस्त हो गईं, तो उन्होंने देखा वे लोग जहाँ खड़े हैं, वह जगह चौकनुमा है। इसके चारों ओर रोशन दरवाज़ों वाले मकान अँधेरे में तने खड़े हैं। दरवाज़ों पर पर्दे पड़े हुए थे, लेकिन उन्होंने दरारों से देखा कि भीतर कुछ लोबान जैसा जल रहा है।

    शैतान ने पूछा, “एक-दूसरे को बहुत प्यार करने वाले आप ही लोग हैं न?”

    अपने मद-भरे नयनों के कटाक्ष के साथ स्त्री ने जवाब दिया, “जी हाँ, हम लोग बुरी तरह एक-दूसरे को प्यार करते हैं।”

    “तो आप इस तरफ़ चलिए,” वह बोला, “मेहरबानी करके मेरे पीछे-पीछे चले आइए।” वे लोग झेंपे-झेंपे से बगल वाली अँधेरी गली से होकर चल दिए। यह गली इस चौक से बाहर जाती थी। एक पुरानी-धुरानी-सी लालटेन गंदे-चीकट दरवाज़े पर लटकी थी।

    “इसी जगह,” शैतान ने दरवाज़ा खोला और बड़े अदब के साथ लौट गया।

    उन्होंने भीतर प्रवेश किया। एक नई, मोटी और ख़ुशामदी क़िस्म की चुड़ैल ने उनका स्वागत किया। उसके स्तन बहुत बड़े-बड़े थे और उसके मुँह के चारों ओर मूँछों पर पाउडर के थक्के जमे हुए थे। वह हीं-हीं करती मुस्कुरा रही थी। उसकी मटर जैसी आँखों में मिलनसारी और परिचय का भाव था। अपने माथे के सींगों के चारों ओर उसने अपनी गुँथी हुई चोटियों की लटें लपेट रखी थीं और उन्हें नीले-नीले रेशमी फ़ीतों से बाँध रखा था।

    “अरे, आप ही मि० स्मिथ और वह लड़की हैं न?” वह बोली, “अब आप आठ नंबर में जाएँ।” उसने उन्हें एक बड़ी-सी चाबी पकड़ा दी।

    वे अँधेरी और चीकट सीढ़ियों से ऊपर जाने लगे। सीढ़ियाँ चिकनाई के कारण फिसलनी हो रही थीं। ऊपर दो रोशनियाँ जल रही थीं। स्मिथ ने नंबर आठ कमरा खोला। भीतर प्रवेश किया। कमरा काफ़ी बड़ा और दुर्गंध से भरा था। बीचोबीच एक गंदे कपड़े वाली मेज़ रखी थी। दीवार के सहारे पलंग पड़ा था। उसकी चादर की सलवटें सावधानी से निकाली गई थीं। उन्हें लगा, यह जगह तो बहुत ही अच्छी है। अपने-अपने कोट उन्होंने उतारे और देर तक आपस में एक-दूसरे को चूमते रहे।

    तभी दूसरे दरवाज़े से एक व्यक्ति ने बड़े विनीत भाव में प्रवेश किया। कपड़े उसने वेटर जैसे पहन रखे थे, लेकिन उसकी डिनर-जाकेट बड़ी ख़ूबसूरत सिली थी। उसकी क़मीज़ का सामने वाला हिस्सा इतना साफ़ था कि उस धुँधलके में प्रेत की तरह चमक रहा था। उसका चलना बहुत निःशब्द और आहिस्ता था, क़दमों से कोई आवाज़ नहीं होती थी और उसकी हर हरकत मशीनी और ऐसी नपी-तुली थी, मानो उसे दीन-दुनिया की कोई ख़बर हो; चेहरे के नक़्श सख़्त थे और आँखें एकटक अविचल भाव से सामने ही देखती थीं। उसके चेहरे पर मौत की सफ़ेदी छाई थी और उसकी एक कनपटी पर गोली का घाव था। उसने कमरे को क़रीने से ठीक किया, शृंगार-मेज़ को पोंछा, फिर कमरा साफ़ करने वाली झाड़ और मूत्रदान लाकर भीतर रख दिए।

    इन लोगों ने उसकी तरफ़ कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया, लेकिन जैसे ही वह जाने लगा, स्मिथ बोले, “मैं समझता हूँ, हम लोगों को कुछ शराब की ज़रूरत पड़ेगी। हमें आधी बोतल मदिरा दे जाना।”

    आदमी शिष्टता से झुका और बाहर ग़ायब हो गया। स्मिथ ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। स्त्री झिझक रही थी।

    “वह वापस आएगा न, अभी।” स्त्री बोली।

    “उँह, ऐसी जगहों में इन बातों का ध्यान नहीं दिया जाता। बस, उतार डालो अपने कपड़े-वपड़े!”

    स्त्री ने अपने कपड़े अलग किए, खींचकर पतलून उतारी और बड़े नख़रे के साथ पुरुष की गोद में बैठी। उसे बड़ा आनंद रहा था।

    पुरुष “ज़रा कल्पना करो,” वह फुसफुसाकर बोली, “केवल हम और तुम, यह एकांत, इस विलक्षण, रूमानी जगह पर हमारा-तुम्हारा यों बैठना...सचमुच, यह सब इतना मादक और कवित्वपूर्ण है कि मैं कभी भी नहीं भूल पाऊँगी।”

    पुरुष बोला, “मेरी जान!”

    और देर तक उनका चुंबन चलता रहा।

    बिना कोई शब्द किए उस व्यक्ति ने फिर प्रवेश किया। बड़े आहिस्ते और मशीनी ढंग से उसने गिलास रखे और उनमें शराब डाल दी। लैंप की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। उसमें ऐसी कोई ख़ास बात नहीं थी हाँ, उसके चेहरे पर मौत की सफ़ेदी थी और एक कनपटी पर गोली का घाव था।

    अचानक एक चीख़ मारकर स्त्री उछल पड़ी।

    “हाय, मेरे राम! आर्विड, तुम हो? यह तुम्हीं हो न? हाय राम रे, यह तो मर गया! इसने अपने को गोली मार ली।”

    वह व्यक्ति सिर्फ़ अपने सामने की ओर ताकता हुआ बिना हिले-डुले खड़ा रहा। उसके चेहरे पर कोई व्यथा और वेदना नहीं दिखाई देती थी, बस वह वैसा ही सख़्त और संजीदा था।

    “लेकिन आर्विड, यह तुमने क्या कर डाला? क्या कर डाला यह तुमने? प्यारे आर्विड! अगर मुझे ज़रा भी इस तरह का शक होता, तो तुम्हें पता है, मैं घर पर ही रह जाती। लेकिन तुम तो मुझे कुछ बताते ही नहीं। तुम इस बारे में भी मुझसे एक शब्द नहीं बोले। जब तुम्हीं ने नहीं बताया तो मैं आख़िर समझती भी कैसे!”

    उसका सारा शरीर थर-थर काँप रहा था। उस व्यक्ति ने स्त्री की तरफ़ इस तरह देखा, जैसे पहचानता ही हो। उसकी निगाहें जड़, सर्द और उदास थीं। लगता था, जैसे हर चीज़ के आरपार सीधी चली जाती हों। उसका हल्दिया चेहरा अँधेरे में भी झलक रहा था। घाव से ख़ून की एक बूँद नहीं निकल रही थी, सिर्फ़ एक छेद-भर था।

    “उफ़, भयानक! भयानक!” वह रोने लगी, “मैं यहाँ नहीं रहूँगी। चलो, हम लोग इसी क्षण चलते हैं। मुझसे नहीं सहा जा रहा।”

    उसने अपना फर का कोट, हैट और कपड़े झटपट हाथों में दबोचे और बाहर लपकी। पीछे-पीछे स्मिथ थे। नीचे वही मूँछों वाली चुड़ैल खड़ी-खड़ी उसी मिलनसारी और परिचय के भाव से मुस्कुराती हुई अपने सींग ऊपर-नीचे हिला रही थी।

    सड़क पर बाहर आकर उन्होंने कुछ चैन की साँस लीं। अब स्त्री ने कपड़े पहने, कमर सीधी की और चेहरा-मोहरा दुरुस्त किया। वे लोग चौक में गए।

    प्रमुख शैतान वहीं टहल रहा था। वे लोग दौड़कर फिर उसके पास पहुँचे।

    “आप लोगों ने बड़ी जल्दबाज़ी की,” वह बोला, “आशा है, सुख से कटी?”

    “उफ़, भयानक जगह थी।” स्त्री ने कहा।

    “नहीं-नहीं, ऐसा मत बोलिए। आप ऐसा नहीं मान सकते। अगर पुराने ज़माने में आप लोग यहाँ आए होते तब तो बात ज़रूर जरा अलग थी। अब तो नरक में शिकायत करने लायक़ कोई बात ही नहीं रह गई है। ज़्यादा क्या कहूँ, लेकिन जो कुछ हमसे बन पड़ता है, इसे आरामदेह और आमोदप्रद बनाने में हम लोग कुछ कसर नहीं उठा रखते। पहले बात एकदम उलटी थी।”

    “जी हाँ,” मि० स्मिथ बोले, “आपकी यह बात तो ठीक है। जैसा भी कुछ है, इस सबमें पहले से ज़्यादा इंसानियत है।”

    “जी हाँ,” शैतान बोला, “हमने तो अब सब चीज़ों को नए सिरे से आधुनिक बना डाला है। जो चीज़ जैसी होनी चाहिए, उसको भरसक ठीक कर दिया है।”

    “बिलकुल सही। आदमी को समय के साथ तो चलना ही पड़ता है।”

    “जी हाँ, आजकल तो जो भी थोड़ी-बहुत यंत्रणा मिलती है वह सिर्फ़ आत्मा को ही मिलती है।”

    “इसे भी भगवान् की कृपा ही समझो।” स्त्री बोली।

    शैतान उन्हें विनीत भाव से लिफ़्ट तक ले आया।

    “नमस्कार!” उसने बहुत नीचे झुककर कहा, “फिर पधारिएगा।” और उनके पीछे-पीछे उसने छड़ोंवाला दरवाज़ा खींच दिया। लिफ़्ट ऊपर चल पड़ी।

    “ख़ुदा का शुक्र! पीछा छूटा उस सबसे।” कहकर लिफ़्ट पर आपस में लिपटकर दोनों ने सुख और संतोष की साँस छोड़ी।

    “अगर तुम होते तो इस जगह से मैं ज़िंदा बचकर नहीं निकल पाती।” स्त्री ने बुदबुदाकर कहा। पुरुष ने उसे खींचकर अपने से सटा लिया। देर तक उनका चुंबन चलता रहा। आलिंगन के बाद जब उसकी साँस वापस आई तो बोली, “ख़याल तो करो, उस कमबख़्त ने यह कर क्या डाला! लेकिन उसके दिमाग़ में हमेशा से ही ऐसी ख़ुराफ़ातें भरी थीं। कभी किसी बात को उसके सही रूप में, सहज और स्वाभाविक ढंग से लेना, उसने सीखा ही नहीं; हर वक़्त जैसे उसके सामने ज़िंदगी और मौत का सवाल बना रहता हो।”

    “सब बकवास है।” स्मिथ बोले।

    “कम से कम वह मुझे तो बता ही देता। तब तो मैं रुक भी जाती। आज के बजाय हम लोग किसी और रात को चले चलते।”

    “हाँ-हाँ, और क्या?” स्मिथ ने कहा, “और क्या, हम लोग कभी और चले चलते।”

    “ख़ैर, छोड़ो भी। अब बैठे-बैठे उस पर सिर भी क्या खपाना?” पुरुष के गले में बाँह डालकर उसने फुसफुसाकर कहा, “अब तो जो होना था, सब हो ही गया।”

    “हाँ डार्लिंग, अब तो सब हो ही चुका।” पुरुष ने उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। लिफ़्ट ऊपर चढ़ती रही।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 170-177)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : पार फ़ेबियन लागेरक्विस्ट
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008

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