डॉक्टर का तलाक़

doctor ka talaaq

सैम्युअल यूसुफ एगनन

सैम्युअल यूसुफ एगनन

डॉक्टर का तलाक़

सैम्युअल यूसुफ एगनन

और अधिकसैम्युअल यूसुफ एगनन

    जब मैंने अस्पताल में प्रवेश किया, मैंने वहाँ एक गोरी और सुनहरे बालों वाली नर्स को देखा, जिसे रोगी और स्टाफ़ सभी प्यार करते थे। जैसे ही मरीज़ उसके पदचाप सुनते, अपने बिछौने से उठ जाते और अपने हाथ उस छोटे बच्चे की तरह फैलाते, जो अपनी माँ की तरफ़ हाथ फैलाता है और कहते, नर्स, नर्स, मेरे पास आओ! यहाँ तक कि सबसे चिड़चिड़े लोग भी, जिन्हें दुनिया की हर चीज़ से नफ़रत होती है, उसके चेहरे की मुस्कान और उसके मृदुल स्वभाव के आगे झुक जाते और वह जो कुछ कहती, करने को तैयार रहते। इस मुस्कान के अतिरिक्त थीं उसकी नीली आँखें। वह जिस किसी की तरफ़ देखती, वह अपने को दुनिया का महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझने लगता। एक बार मैंने अपने आपसे पूछा, उसे यह ताक़त कहाँ से मिली, क्योंकि जिस क्षण उसकी नज़रें मुझ पर ठहरीं, मैं भी दूसरे लोगों की तरह हो गया। निस्संदेह उसके दिल में मेरे लिए कोई ख़ास इरादे थे। मेरे लिए भी नहीं और दूसरों के लिए भी नहीं।

    उसकी साथी नर्सें भी उसे ख़ूब चाहती थीं। उसकी मेट्रन चालीस वर्ष की प्रौढ़ महिला थी, एकदम फीकी और सिरके की तरह तीखी, जिसे काली कॉफ़ी, नमकीन केक और अपने छोटे कुत्ते को छोड़कर डॉक्टर, रोगी, नर्स सबसे चिढ़ थी। वह भी इस नर्स को ख़ूब चाहती थी। कहने की ज़रूरत नहीं कि मेरे साथी डॉक्टर, जो भी इस नर्स के साथ काम करते, अपने भाग्य को सराहते थे। मैं भी इस लड़की में रुचि लेने लगा।

    वह भी मुझमें रुचि लेने लगी। बात इतनी बढ़ी कि मैंने उससे शादी कर ली। और वह इस प्रकार हुआ :

    एक दुपहर को जब मैं डाइनिंग हॉल से बाहर निकला तो सीधे डायना के कमरे की ओर बढ़ गया। और पूछा, नर्स, क्या तुम व्यस्त हो?

    नहीं, मैं फ़ुरसत में हूँ। आज मेरा ऑफ़ है।

    तो आज छुट्टी के दिन तुम क्या करोगी?

    मैंने इस प्रश्न पर विचार नहीं किया है, डॉक्टर।

    क्या मैं तुम्हें कुछ सलाह दूँ?

    हाँ, डॉक्टर, मेहरबानी होगी।

    पर मैं तुम्हें तभी सलाह दूँगा, जब मुझे कुछ मेहनताना मिलेगा। उसने मेरी तरफ़ देखा और हँसने लगी।

    मैंने कहा, चलो, हम लोग ऑपेरा चलें। अगर जल्दी निकलो, तो कॉफ़ी हाउस होते हुए चलें।

    मंज़ूर? उसने हँसते हुए सिर हिला कर सहमति दे दी।

    मैंने कहा, “अच्छा, मैं अपना काम निपटाकर जल्दी ही आऊँगा। फिर वह अपने कमरे में चली गई और मैं अपनी ड्यूटी पर।

    कुछ समय बाद जब मैं उसे लेने पहुँचा, तो उसने कपड़े बदल लिए थे। एकाएक वह मुझे एक नया व्यक्तित्व लगी और इस परिवर्तन के साथ उसका आकर्षण अब दुगना हो गया था। मैं उसके कमरे में गया और मैंने उससे टेबल पर सजे फूलों के नाम पूछे। इस डर से कि कहीं कोई गंभीर हालत का रोगी जाए और मुझे बुलावा जाए, मैं उठा और बोला, “चलो, हम लोग जल्दी चलें।

    हम बस स्टॉप की तरफ़ बढ़े। पहली बस, डायना तो चढ़ गई किंतु मुझे जगह नहीं मिली, तो वह भी नीचे उतर गई और हम दूसरी बस का इंतज़ार करने लगे। तब मैंने अपने आपसे कहा—कुछ लोग कहते हैं, बस की और लड़की की परवाह मत करो, क्योंकि वे बहुत मिलती हैं, पर जो लोग ऐसा सोचते हैं, वे मूर्ख हैं, जहाँ तक लड़की का प्रश्न है, क्या उन्हें डायना के समान लड़की मिल सकती है?

    आख़िर एक बस आई और हमें जगह मिल गई। यह बस एक पार्क के सामने जाकर रुकी। हमने सड़क पार की। एकाएक मैंने अपनी बाँहें फैला दीं और कहा, “चलो, हम अस्पताल की और दुनिया की बातें भूल जाएँ और कुछ मधुर बातें करें। बाग़ में बच्चे खेल रहे थे। हमें देखकर वे आपस में फुसफुस करने लगे। मैंने डायना से पूछा, “जानती हो, ये बच्चे किसके बारे में बातें कर रहे हैं? ये हमारे बारे में बातें कर रहे हैं।

    'शायद। डायना बोली।

    “तुम्हें मालूम है, ये क्या बोल रहे हैं? ये बच्चे बातें कर रहे हैं कि तुम और मैं दूल्हा-दुल्हन हैं।

    उसका चेहरा लाल हो गया। वह बोली, “शायद ये यही बातें कर रहे हैं।

    तो तुम्हारा मतलब है कि तुम्हें इस बात पर आपत्ति नहीं है?

    किस बात पर?

    “यही जो बच्चे बोल रहे हैं?

    मैं क्यों परवाह करूँ?

    मैंने साहस बटोरकर कहा, “अगर बच्चे जो कुछ कह रहे हैं, वह सच हो तो? मेरा मतलब है, अगर हम शादी कर लें तो? वह हँसी और मेरी तरफ़ देखने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, दूसरा हाथ भी दो। मैंने उसके दोनों हाथ चूमे और उसके मुख की ओर देखने लगा। उसका मुख और लाल हो गया। बोला, कहावत है, बच्चे और मूर्ख सच बोलते हैं।

    हमारी सगाई के बाद का समय मेरे लिए सबसे अच्छा था। अब मैं समझने लगा, कवि क्यों प्रेम-काव्य लिखा करते हैं। फिर भी जाने क्यों उसकी आँखों में एक काली छाया थी, जो कभी-कभी उस बादल की तरह गहरी हो जाती, जो फूटना ही चाहता हो। एक बार मैंने उससे इस उदासी का कारण पूछा। उसने बिना उत्तर दिए अपनी आँखें मुझ पर टिका दीं। मैंने फिर से अपना प्रश्न दुहराया। उसने मेरे गले में बाँहें डालते हुए कहा, तुम नहीं जानते, तुम मेरे लिए कितने क़ीमती हो और मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ। और एक मुस्कराहट उसके उदासीन होंठों पर फैल गई।

    मैंने अपने आपसे पूछा—अगर वह मुझसे प्यार करती है, तो उसकी उदासीनता का कारण क्या है? शायद उसका परिवार ग़रीब हो। लेकिन वह तो कहती थी कि वे लोग रईस हैं। शायद उसने किसी और से शादी का वादा किया होगा। पर वह तो कहती थी, ऐसी कोई बात नहीं है। मैंने बार-बार पूछना चाहा, पर वह मुझे और प्यार जताती गई और ख़ामोश रही, लेकिन उसके प्यार में उदासीनता का स्पर्श था, जिसने मेरी ख़ुशी में विष की एक बूँद घोल दी थी। मैं बार-बार सवाल पूछकर उसे तंग करता रहा, उसने भी उत्तर देने का वचन दिया, पर हर बार बहाने बनाने में दृढ़ रही। फिर एक बार उसने मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, डार्लिंग, हम लोग ख़ुश रहें और ऐसा कुछ करें, जिससे हमारी ख़ुशियाँ ख़त्म हो जाएँ। और उसने ऐसी आह भरी, जिसे सुनकर मेरा दिल टूट गया। मैंने इस आह का राज़ पूछा, तो वह बोली, “डार्लिंग, मेहरबानी करके और कुछ पूछो। मेरा दिमाग़ ठिकाने नहीं था। मैं अब भी उस मौक़े की राह देख रहा था, जब वह मुझे अपने दिल की बात कहती।

    एक दुपहर को मैं उसके कमरे में गया। उस समय वह फ़ुरसत में थी और अपने कमरे में बैठी, नई ड्रेस सी रही थी। मैंने कपड़े के किनारे को पकड़ा और अपनी आँखें उसकी ओर उठाईं। उसने सीधा मेरी आँखों की तरफ़ देखा और कहा, तुम्हें मालूम है, मेरी दोस्ती किसी और के साथ थी। एक तरह की ठंडक मेरे शरीर में दौड़ गई और मैं अंदर से कमज़ोर हो गया। मैं चुपचाप बैठ गया। फिर भी मैं उसके साथ पहले जैसा ही व्यवहार करता रहा। सच पूछो तो उस क्षण भी वह मेरी नज़रों से गिरी नहीं और सदा की तरह मुझे प्रिय लगी। जब वह भी यह बात समझ गई, तो फिर एक मुस्कान उसके होंठों पर आई। पर आँखों में अब भी एक तरह का परदा था और वह उस इनसान की तरह थी, जो एक अँधेरे से निकलकर दूसरे अँधेरे में जा रहा हो।

    मैंने उससे पूछा, वह कौन था, जो बिना शादी किए तुम्हें छोड़कर चला गया? डायना, तुम्हारे प्रति मेरे दिल में कोई बुरा ख़याल नहीं है, सिर्फ़ कुतूहल ही मुझे पूछने पर विवश कर रहा है। ज़ोर देने पर उसने मुझे उसका नाम बताया। मैंने कहा, डायना, मुझे आश्चर्य होता है कि दफ़्तर के एक मामूली क्लर्क ने तुम्हारे पाँव इस तरह डगमगा दिए और फिर तुम्हें छोड़कर चला गया। इससे पता चलता है कि वह अच्छा आदमी नहीं था। उसने अपनी आँखें नीचे कर लीं और ख़ामोश हो गई। उस दिन के बाद से मैंने उसे कभी अतीत की याद नहीं दिलाई। मैंने भी उस बात को दिमाग़ से निकाल देने की कोशिश की और इस प्रकार हमारी शादी हो गई।

    शादी के बाद हम लोग अपने 'हनीमून' के लिए एक गाँव में गए। निस्संदेह रास्ते में झरने थे, पहाड़ थे, घाटियाँ थीं। उन्हें तो मैं भूल गया, लेकिन एक बात याद रही, जो हमारी पहली रात को हुई। जिस होटल में हम लोगों ने रिज़र्वेशन किया था, वह बग़ीचे के मध्य में था और उसके आजू-बाजू पहाड़ और झरने थे। जब हम अपने कमरे में पहुँचे, तो मेरी पत्नी की नज़रें गुलाब के उन लाल फूलों पर टिक गईं, जो वहाँ सजाए गए थे। मैंने हँसते हुए कहा, कौन है वह भलामानस, जिसने हमें इतने सुंदर फूल भेजे हैं?

    कौन है वह?” मेरी पत्नी ने बड़े आश्चर्य से कहा।

    मैंने कहा, ‘‘फिर भी मैं इन फूलों को बाजू में रख देता हूँ, क्योंकि इनकी ख़ुशबू हमें सोने देगी।

    मैंने उसके गालों को चूमते हुए कहा, डायना, अब हम लोग अकेले हैं। वह खड़ी हुई और बड़ी सावधानी के साथ अपने कपड़े उतारे और अपने बालों को सँवारते-सँवारते वह बैठ गई और अपने सिर को टेबल पर झुका लिया। मैंने देखा कि वह एक पैंफ्लेट पढ़ रही थी, जिस पर लिखा था, 'हर घड़ी अपने स्वामी का इंतज़ार करो कि वह आए।' मैंने उसकी ठोड़ी अपने हाथ में लेकर कहा, तुम्हें इंतज़ार नहीं करना है, तुम्हारा स्वामी पहले ही चुका है। और मैंने उसका चुंबन लिया। उसने बड़ी उदासी से अपनी पलकें उठाईं और पैंफ्लेट बाजू में रख दिया। मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और लैंप की बत्ती धीमी कर दी। उस क्षण फूलों ने अपनी सारी सुगंध दे दी और एक तरह की मधुर स्थिरता ने मुझे चारों ओर से घेर लिया।

    एकाएक मुझे अपने बाजू वाले कमरे से पदचाप सुनाई दी। मैंने उस आवाज़ को अपने दिमाग़ से निकाल देने की कोशिश की। मैंने अपनी पत्नी को अपनी ओर खींचा और अत्यंत प्रेम के साथ उसका आलिंगन किया, क्योंकि मैं जानता था कि वह संपूर्ण मेरी थी। अब वे पदचाप समान गति से आगे-पीछे चल रही थी। उन पैरों की आवाज़ ने मुझे भ्रम में डाल दिया। अब एक अजीब-सा ख़याल मेरे दिमाग़ में आया कि यह वही क्लर्क है, जिसे मेरी पत्नी शादी के पहले जानती थी। इस ख़याल से मेरा दिमाग़ घृणा से भर गया। इस भय से कि कहीं मैं गाली दे दूँ, मैंने अपने होंठ चबा लिए।

    मेरी पत्नी ने यह देख लिया। बोली, डार्लिंग, क्या हुआ? मुझे लगता है तुम किसी बात से विचलित हो गए हो।

    बार-बार पूछने पर मैंने उसे अपने मन की बात बता दी। वह सिसकने लगी।

    मैंने पूछा, “तुम क्यों रो रही हो?

    उसने अपने आँसू पीते हुए जवाब दिया, सारे दरवाज़े और खिड़कियाँ खोल दो और दुनिया से कह दो कि मैं कितनी बुरी हूँ! मैं उसे शांत करने की कोशिश करने लगा।

    उस दिन के बाद से वह व्यक्ति मेरे दिमाग़ से कभी निकला। मैं उससे बात करता तो उसका नाम ज़रूर लेता। उन लाल गुलाब के फूलों की याद आती। अब मैं समझ गया था कि मेरी पत्नी ने उस दिन उन फूलों को क्यों नहीं सूँघा था। जब मैं अपनी पत्नी के साथ ख़ुश होने की कोशिश करता, मुझे उसी व्यक्ति की याद आती, जिसने मेरी ख़ुशियाँ छीन ली थीं और मैं निराश हो जाता। मैं जानना चाहता था कि वह किस प्रकार का व्यक्ति था, जिसने एक अच्छे घर की लड़की को आकर्षित किया था। मैं उसकी किताबों में ढूँढ़ने लगा, कहीं उसका कोई पत्र मिल जाए, किंतु मिला। तब मैंने प्रेम-कहानियों को पढ़ना शुरू कर दिया, जिसमें कि मैं नारी और उसके प्रेमियों के स्वभाव को समझ सकूँ, पर उन प्रेम-उपन्यासों ने मुझे थका दिया।

    विवाह के दूसरे वर्ष भी कोई शांति मिली। मन:स्ताप से वह बीमार पड़ गई। मैंने उसे दवाओं से ठीक किया। मैं उससे कहा करता, इन सब बीमारियों की जड़ वही आदमी है, जिसने तुम्हारी ज़िंदगी को बरबाद किया है। इस वक़्त वह दूसरी औरतों के साथ खेल रहा होगा, पर मेरे नसीब में एक बीमार औरत छोड़ दी है। अब उसने व्यवहार का नया ढंग अपनाया। अगर मैं उस व्यक्ति का नाम लेता, तो वह ध्यान ही देती और चुप रहती। एक दिन जब शाम को हम चाय पीने बैठे, तो मैं एकाएक बोल उठा, ‘‘कुछ ऐसी बात है, जिसके बारे में मैं सोच रहा हूँ।

    उसने अपना सिर हिलाया और बोली, हाँ, मैं भी कुछ सोच रही हूँ।

    तो बताओ मेरे दिल में क्या छुपा है?

    वह धीरे से बोली, तलाक़ और उसने उदास निगाहों से मेरी ओर देखा।

    मैंने कहा, क्या तुम सहमत हो?

    वह बोली, “मैं चाहूँ या चाहूँ, मैं वह सब कुछ करने को तैयार हूँ, जिससे तुम्हें शांति मिले। भले ही वह तलाक़ क्यों हो।

    मैंने कसकर अपने दोनों हाथों को पकड़ा और ग़ुस्से में कहा, “चलो, फिर ठीक है!” संशय के कीड़े ने शादी की पहली ही रात हमारे प्यार के फूल को कुतरना शुरू कर दिया था, इसलिए अब हमारे पास तलाक़ के सिवाय कोई रास्ता था।

    डायना सच ही कहती थी कि नसीब में जो लिखा हो, वही होता है। इस प्रकार हम बाहरी रूप में तो एक-दूसरे से अलग हो गए, परंतु उसके होंठों की हँसी अब तक मेरे हृदय में क़ैद है। उसकी नीली आँखें अब तक मुझे दिखाई देती हैं। कभी-कभी मैं रात को उन रोगियों की तरह उठकर बैठ जाता हूँ और अपने दोनों हाथ फैलाकर कहता हूँ, नर्स, नर्स, मेरे पास आओ!

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 263-269)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : सैम्युअल यूसुफ एगनन
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008

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