भगोड़े

bhagode

सेल्मा लेगरलोफ

और अधिकसेल्मा लेगरलोफ

    एक किसान ने एक साधु की हत्या कर दी और जंगलों में भाग गया। वह भगोड़ा हो गया और उस पर इनाम घोषित कर दिया गया। जंगल में उसकी भेंट एक और भगोड़े से हुई जिस पर मछलियों का जाल चुराने का आरोप था। वह एक बाहरी टापू में रहने वाला मछुआरा था। वे दोनों साथी बन गए और उन्होंने एक गुफा काटकर उसमें अपना घर बना लिया। वे साथ-साथ जाल बिछाते, खाना पकाते, तीर बनाते और एक-दूसरे की पहरेदारी करते। किसान तो कभी जंगल से बाहर जा नहीं पाता था। लेकिन मछुआरे का अपराध कम गंभीर था, तो वह जब-तब अपने मारे हुए शिकार को अपनी पीठ पर लादकर गाँव के बाह्याँचल में बसे अपेक्षाकृत अकेले मकानों में रेंग जाता। वह अपनी मारी हुई चमकीले पंखों वाली जंगली मुर्गी, काले पहाड़ी मुर्गे, स्वादिष्ट हिरनी और लंबे कानों वाले ख़रगोश ले जाता और उनके बदले में दूध, मक्खन, बाण का अगला नुकीला हिस्सा और कपड़े ले आता।

    उन्होंने जिस गुफा को अपना घर बनाया, वह पहाड़ में गहराई से काटकर बनाई गई थी। उसके मुँह पर चौड़े-चौड़े पत्थर और कँटीली झाड़ियाँ सुरक्षा के लिए लगाई गई थीं। पहाड़ के ऊपर चीड़ का एक विशाल वृक्ष था और उनकी भट्ठी की चिमनी इसकी कुंडलीदार जड़ों में छिपी हुई थी। इस तरह भट्ठी से उठने वाला धुआँ चीड़ की भारी लटकती शाखाओं में चला जाता था और सबकी नज़रों से ओझल हवा में घुल-मिल जाता था। अपनी गुफा तक पहुँचने के लिए उन दोनों को पहाड़ी की ढलान से निकलने वाली जलधारा से होकर जाना पड़ता था। उनका पीछा करने वालों में से कोई भी सुखद नदिया में उनका सुराग़ ढूँढ़ने की नहीं सोचता था। पहले तो उनकी इस तरह से खोज की गई, जैसे जंगली जानवरों की होती है। जनपद के किसान उनकी तलाश करने के लिए इस तरह इकट्ठे होते, जैसे किसी भेड़िए या भालू के लिए होते हैं। तीर-कमान लिए ग्रामवासी जंगल को घेर लेते और भाले लिए हुए लोग एक-एक झाड़ी और दर्रे को छान मारते। दोनों भगोड़े अपनी अंधेरी गुफा दुबक जाते और भय में हाँफते रहते और जब तलाश करने वाले लोग पहाड़ के ऊपर गुफा से शोर मचाते निकलते तो वे साँस रोककर सुनते रहते।

    एक लंबे दिन तक युवा मछुआरा तो अचल लेटा रहा, लेकिन हत्यारे से और सहन नहीं हुआ और वह खुले में निकल गया, जहाँ से उसके दुश्मन दिखाई दे सकते थे। उन्होंने उसे देख लिया और उसके पीछे लग गए। लेकिन नपुंसक भय में चुपचाप पड़े रहने की अपेक्षा यह स्थिति उसे कहीं अधिक पसंद थी। वह अपना पीछा करने वालों के आगे से जलधाराओं को फलाँगता हुआ, चट्टानों से सरकता हुआ और चट्टान की सीधी खड़ी दीवार पर चढ़ता हुआ भागता रहा। ख़तरे ने तमाम उसकी अद्भुत शक्ति और कौशल को एड़ लगाकर उसमें ऊर्जा जगा दी। उसका शरीर इस्पात की कमानी-सा लचीला हो गया, उसके पाँव दृढ़ता से जमने लगे, उसके हाथों की पकड़ अचूक हो गई और उसकी आँख और कान दुगुने तेज़ हो गए। वह पेड़-पत्तों में होने वाली हरेक सरसराहट को जान जाता था; वह किसी उलटे हुए पत्थर में छिपी चेतावनी को समझ जाता था।

    जब वह किसी चट्टान के ऊपर चढ़ जाता तो रुककर नीचे अपना पीछा करने वालों को देखता और ज़ोर-ज़ोर से नफ़रत के गाने गाकर उनका स्वागत करता। जब उनके भाले उसके सिर के ऊपर हवा में गाना गाते तो वह उन्हें पकड़कर वापस फेंक देता। जब वह उलझी हुई झाड़ियों से होकर अपना रास्ता बनाता तो लगता जैसे उसके अंदर कोई आनंद का जंगली गीत गा रहा है। एक भयंकर नंगा पर्वत शिखर जंगल के पूरे विस्तार में फैला हुआ था और इसकी चोटी पर एक लंबा चीड़ का वृक्ष एक़दम अकेला खड़ा था। उसका लाल कत्थई तना नंगा था और सबसे ऊपर घनी शाखाओं पर एक बाज का घोंसला मंथर हवा में झूलता था।

    भगोड़ा इतना निडर हो गया था कि एक अन्य दिन जब उसका पीछा करने वाले नीचे जंगल की ढलानों में उसकी तलाश कर रहे थे तो वह घोंसले तक जा पहुँचा। वह वहाँ बैठ गया और बाज के बच्चों की गर्दन मरोड़ने लगा। जबकि उसे ढूँढ़ने वाले उससे बहुत नीचे हो-हल्ला करते रहे। बड़े बाज ग़ुस्से में चीख़ते हुए उसके आस-पास मँडराते रहे। वे उसके चेहरे के पास से झपटते हुए निकलते, अपनी चोंच से उसकी आँखों पर प्रहार करते; अपने दमदार पंखों को उसके ऊपर फड़फड़ाते और उन्होंने मौसम के थपेड़े खाकर कठोर हो गई उसकी चमड़ी पर पंजे मार-मारकर बड़ी-बड़ी खरोंचें भी बना दीं। वह हँस-हँसकर उनसे जूझता रहा। वह झूलते हुए घोंसले में खड़ा होकर उन परिंदों पर छुरे से वार करता रहा और लड़ाई के आनंद में वह ख़तरे और अपना पीछा किए जाने की सोच को बिलकुल ही भूल गया। जब उसे फिर इसकी याद आई और वह अपने दुश्मनों को देखने के लिए मुड़ा तो उसे खोजने वाली टोली दूसरी दिशा में जा चुकी थी। पीछा करने वालों में से एक के भी दिमाग़ में यह बात नहीं आई थी कि अपनी आँखें उठाकर बादलों की तरफ़ देख ले, जहाँ उनका शिकार लटका हुआ स्कूली बच्चों जैसी लापरवाही की हरकतें कर रहा था, जबकि उसकी अपनी ज़िंदगी अधर में लटकी थी। लेकिन जब उसने यह देखा कि वह सुरक्षित था तो वह सिर से पाँव तक काँप गया। उसने काँपते हाथों से कोई सहारा पकड़ा। वह जिस ऊँचाई तक चढ़ आया था, वहाँ से उसने चकराकर नीचे देखा। गिरने के भय से कराहते हुए, परिंदों से भयभीत, देखे जाने की संभावना से भयभीत; हरेक चीज़ और किसी भी चीज़ के आतंक से कमज़ोर वह पेड़ के तने से वापस सरककर नीचे गया। ज़मीन पर आकर वह चित पड़ गया और छुट्टा पत्थरों पर रेंगता हुआ झाड़ी तक पहुँचा। वहाँ वह छोटे चीड़ के वृक्षों की उलझी शाखाओं के बीच छिप गया और कमज़ोर और असहाय होकर मुलायम काई में गिर गया। उस समय एक अकेला आदमी भी उसे पकड़ सकता था।

    तोर्ड नाम था उस मछुआरे का। वह केवल सोलह साल का था, लेकिन मज़बूत और बहादुर था। जंगलों में रहते हुए अब पूरा एक साल हो चुका था उस मछुआरे तोर्ड को।

    किसान का नाम बेर्ग था और लोग उसे 'दैत्य' कहा करते थे। वह सुंदर और सुडौल था और समूचे प्रदेश में उससे लंबा और मज़बूत आदमी कोई और नहीं था। उसके कंधे चौड़े थे, लेकिन वह छरहरा ही था। उसके हाथ कोमल थे, मानो उसने कभी कोई मेहनत का काम ही नहीं किया हो। उसके बाल भूरे थे और चेहरे की रंगत हलकी थी। जब वह जंगल में कुछ समय तक रह लिया तो उसकी आकृति में मज़बूती के चिन्ह ऐसे बन गए कि लोग रौब खा जाएँ। उसके माथे की बड़ी-बड़ी मांसपेशियों की शिकनों में भरी घनी भौंहों के नीचे उसकी आँखें पैनी हो गईं। उसके होंठ पहले से कहीं अधिक दृढ़ हो गए, चेहरा भी म्लान हो गया; कनपटी के गड्ढे गहरे हो गए और उसके गालों की मज़बूती से उभरी हड्डियाँ सामान्य हो गईं। उसके शरीर के तमाम कोमल उभार ग़ायब हो गए, लेकिन मांसपेशियाँ इस्पात-सी मज़बूत हो गईं। उसके बाल तेज़ी से सफ़ेद होते गए।

    तोर्ड ने इतने शानदार और इतने ताक़तवार आदमी को पहले कभी नहीं देखा था। उसकी कल्पना में उसका यह साथी जंगल-सा मज़बूत और हरहराती समुद्री लहरों-सा मज़बूत था। वह विनीत होकर उसकी सेवा करता था, जैसे वह किसी मालिक की करता। वह उसे किसी देवता की तरह श्रद्धा देता। यह अत्यंत स्वाभाविक ही लगता था कि तोर्ड शिकारी भाला लेकर चले, शिकार को घर खींचकर लाए; पानी भरे और आग जलाए। दैत्य बेर्ग इन सभी सेवाओं को स्वीकार करता था, लेकिन उसने लड़के से कभी दोस्ती के दो शब्द नहीं बोले थे। वह उसे तिरस्कार से देखता और उसे एक मामूली चोर मानता था।

    ये भगोड़े अपराधी लूटपाट नहीं करते थे, बल्कि अपना पेट पालने के लिए जानवरों और मछली के शिकार पर निर्भर रहते थे। अगर बेर्ग ने एक धार्मिक व्यक्ति को नहीं मारा होता तो किसान लोग जल्दी ही उनकी तलाश करने से थक जाते और उन्हें पहाड़ों में उनके हाल पर ही छोड़ देते। लेकिन अब उन्हें डर था कि अगर ईश्वर के दास को घात करने वाले व्यक्ति को उन्होंने बिना दंड दिए छोड़ दिया तो उनके गाँव पर भारी विपत्ति आएगी। जब तोर्ड शिकार मारकर उसे नीचे घाटी में ले जाता तो वे प्रस्ताव रखते कि अगर वह उन्हें दैत्य की गुफा तक ले जाए, ताकि वे उसे सोते में पकड़ सकें तो वे उसे पैसा भी देंगे और उसके अपने अपराध को क्षमा भी कर देंगे। लेकिन वह लड़का इसके लिए मना कर देता और अगर वे उसके पीछे-पीछे हो भी लेते तो वह उन्हें तब तक भटकाता रहता, जब तक वे उसका पीछा नहीं छोड़ देते थे।

    एक बार बेर्ग ने उससे पूछा कि क्या कभी किसानों ने उसे इस बात के लिए उकसाया था कि वह उसे उनके हाथों में सौंप दे। जब तोर्ड ने उसे बताया कि किसानों ने उसे इस काम के लिए कितना इनाम देने का वायदा किया था तो उसने उसका उपहास उड़ाते हुए कहा था कि उसने ऐसे प्रस्ताव ठुकराकर मूर्खता की थी। तोर्ड ने उसकी ओर आँखों में ऐसा भाव लाकर देखा, जिसे दैत्य बेर्ग ने पहले कभी नहीं देखा था। उसने अपनी जवानी के दिनों में जिन ख़ूबसूरत औरतों से प्यार किया था उनमें से किसी ने भी उसकी ओर ऐसे नहीं देखा था; ना तो अपने बच्चों की और ना ही अपनी बीवी की आँखों में उसने इतना स्नेह देखा था। “तुम मेरे परमेश्वर हो, वह शासक हो, जिसे मैंने अपनी इच्छा से चुना है,” उसकी आँखें यही कहती थीं, “तुम मेरा तिरस्कार कर सकते हो या चाहो तो मुझे पीट सकते हो, लेकिन मैं फिर भी तुम्हारा वफ़ादार रहूँगा।”

    इसके बाद बेर्ग लड़के पर और ध्यान देने लगा और उसने देखा कि उसके कारनामों में तो बहादुरी थी लेकिन बोलने में संकोच था। मौत का उसे कोई भय नहीं दिखता था। वह जानबूझकर अपने लिए ऐसा रास्ता चुनता था जहाँ पहाड़ों के गड्ढों में ताज़ा बर्फ़ जमी होती थी या वसंत में दलदल की छलपूर्ण सतह होती थी। उसे ख़तरे में आनंद मिलता था। अब क्योंकि वह भयंकर समुद्री तूफ़ानों में नहीं जा पाता था, इसलिए उसे इन्हीं में उसकी भरपाई मिलती थी। लेकिन जंगल के रात्रिकालीन अँधेरे में वह काँप जाता था और दिन में भी किसी झाड़ी की झाईं या कोई गहरी परछाईं उसे डराने के लिए काफ़ी होती थी। जब बेर्ग उससे इस बारे में पूछता तो वह शरमाकर चुप रह जाता था।

    तोर्ड गुफा के पिछले हिस्से में बने चूल्हे के पास लगे बिस्तर पर नहीं सोता था, बल्कि हर रात जब बेर्ग सो जाता था तो वह रेंगकर गुफा के मुँह पर जाता था और वहाँ एक चौड़े पत्थर पर लेट जाता था। बेर्ग को यह पता चल गया और उसने जानते हुए भी लड़के से इसका कारण पूछा? तोर्ड ने कोई जवाब नहीं दिया। अगले सवालों से बचने के लिए वह दो रात बिस्तर पर ही सोया और फिर दरवाज़े पर अपनी नियत जगह पर गया।

    एक रात जब पेड़ की फुनगियों पर बर्फ़ीले तूफ़ान ने उत्पात मचाया हुआ था और झाड़ियों के बीच में भी हलचल मची थी, बर्फ़ के गोले उड़-उड़कर उन भगोड़ों की गुफा के अंदर भर गए। जब दरवाज़े पर लेटा तोर्ड सुबह जागा तो उसने देखा कि वह पिघलती बर्फ़ की चादर में लिपटा है। एक-दो दिन बाद वह बीमार पड़ गया। वह साँस लेने की कोशिश करता तो उसके फेफड़ों में बेध देने वाला दर्द उठता। जब तक उसमें शक्ति रही, उसने इस दर्द को सहन किया, लेकिन एक शाम जब वह आग फूँकने के लिए झुका तो गिर पड़ा और फिर उठ नहीं पाया। बेर्ग उसकी बगल में आया और उससे गर्म बिस्तर पर लेटने को कहा। तोर्ड दर्द के मारे कराहता रहा लेकिन हिल नहीं पाया। बेर्ग उसे अपनी बाँहों में उठाकर बिस्तर पर लाया। ऐसा करते समय उसे ऐसा लग रहा था, मानो वह किसी लिजलिजे साँप को छू रहा हो; उसके मुँह का स्वाद ऐसा हो रहा था, मानो उसने अशुद्ध मांस खा लिया हो। इतना अरुचिकर था उसके लिए इस साधारण चोर के शरीर को छूना! बेर्ग ने बीमार लड़के पर भालू की खाल का बना अपना कंबल; डाल दिया और उसे पानी पिलाया। वह बस इतना ही कर सका, लेकिन बीमारी ख़तरनाक नहीं थी और तोर्ड जल्दी ठीक हो गया। लेकिन अब क्योंकि बेर्ग को कुछ दिनों तक अपने साथी का काम करना पड़ा था और उसकी देखभाल करनी पड़ी थी तो वे एक-दूसरे के और क़रीब गए लगते थे। जब वे दोनों आग के पास साथ-साथ बैठे अपने तीर बनाते होते तो तोर्ड कभी-कभी उससे बोलने का साहस कर लेता था।

    “तुम अच्छे लोगों के परिवार से हो” तोर्ड ने एक शाम बेर्ग से कहा, “तुम्हारे रिश्तेदार घाटी के सबसे अमीर किसान हैं। तुम्हारे नाम के आदमी राजाओं की सेवा में रहे हैं और उनके महलों में लड़े हैं।”

    “अधिकतर तो वे बागियों के साथ लड़े हैं और उन्होंने राजा की संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया है।” बेर्ग ने जवाब दिया।

    “तुम्हारे पुरखे क्रिसमस के समय बड़ी-बड़ी दावतें देते थे और तुम जब अपने मकान में आराम से थे तो तुम भी दावतें देते थे। सैकड़ों आदमी-औरतें तुम्हारे बड़े हॉल में बेंचों पर बैठते थे; उस हॉल में जो उन दिनों में बनाया गया था, जब संत ऊलाव नामकरण संस्कार के लिए यहाँ वीकेन में आया भी नहीं था। वहाँ बड़े-बड़े चाँदी के कलश थे और सींग के बने बड़े-बड़े पात्रों में तुम्हारी मेज़ पर शहद की मदिरा परोसी जाती थी।”

    बेर्ग ने एक बार फिर लड़के की ओर देखा। वह पलंग के किनारे बैठा था, उसका सिर उसके हाथ में था और वह अपनी आँखों पर गिर आए भारी उलझे बालों को पीछे कर रहा था। बीमारी में उसका चेहरा पीला और निखर गया था। उसकी आँखें अभी भी बुख़ार में चमक रही थीं। वह अपनी कल्पना से उभरी तस्वीरों पर मन ही मन मुस्करा रहा था। ये तस्वीरें थीं बड़े हॉल और चाँदी के कलशों की, महँगे वस्त्र पहने मेहमानों की और सम्मानजनक स्थान पर बैठ हुक्म चलाते दैत्य बेर्ग की। किसान बेर्ग जानता था कि उसके महिमामय दिनों में भी किसी ने उसकी ओर प्रशंसा से, इस तरह चमकती और श्रद्धा से, इस तरह दमकती आँखों से कभी नहीं देखा था, जैसे कि इस समय आग के पास फटी-पुरानी जैकेट पहने यह लड़का देख रहा था। वह द्रवित हो उठा, लेकिन उसकी अप्रसन्नता बनी रही। इस साधारण चोर को कोई अधिकार नहीं था कि उसे सराहे।

    “क्या तुम्हारे घर में दावतें नहीं होती थीं?” उसने पूछा।

    तोर्ड हँसा, “वहाँ उन चट्टानों पर जहाँ पिता और माँ रहती हैं? पिता तो दुर्घटना में टूटे जहाज़ों को लूटता है और माँ डायन है। जब मौसम तूफ़ानी होता है तो वह सील मछली की पीठ पर सवार होकर जहाज़ों से मिलने चल देती है और दुर्घटना में जो लोग जहाज़ से बाहर गिरते हैं, वे उसके हो जाते हैं।”

    “वह उनका क्या करती है?” बेर्ग ने पूछा।

    “ओह! डायनों को तो हमेशा ही लाशों की ज़रूरत होती है। वह उनसे मरहम बनाती है या शायद उन्हें खा जाती है। चाँदनी रातों को वह भीषण रूप से हरहराती लहरों में जा बैठती है और डूबे हुए बच्चों की आँखों और उँगलियों की तलाश में रहती है।”

    “यह तो भयंकर है!” बेर्ग ने कहा।

    लड़के ने शांत आत्मविश्वास के साथ कहा, “दूसरों के लिए होगा, लेकिन किसी डायन के लिए नहीं। वह इसके बिना रह ही नहीं सकती।”

    बेर्ग के लिए यह ज़िंदगी को देखने का एक बिलकुल अलग ढंग था।

    “तब तो चोरों को चोरी करनी होती होगी, जैसे डायनों को जादू करना होता है?” उसने तीखा सवाल किया।

    “हाँ, क्यों नहीं,” लड़के ने जवाब दिया, “हरेक व्यक्ति को वह करना होता है जिसके लिए उसका जन्म होता है।” लेकिन संकोचपूर्ण चालाकी के साथ मुस्कराते उसने आगे कहा, “ऐसे चोर भी होते हैं जिन्होंने कभी चोरी नहीं की होती।”

    “क्या मतलब?” बेर्ग बोला।

    लड़के के होंठों पर अब भी वह रहस्यमय मुस्कान थी और वह इस बात से ख़ुश दिखता था कि उसने अपने साथी को एक पहेली में उलझा दिया था। ‘‘ऐसी चिड़ियाँ होती हैं जो उड़ती नहीं हैं; और ऐसे चोर होते हैं जिन्होंने कभी चोरी नहीं की है।” उसने कहा।

    बेर्ग ने मूर्ख बनने का बहाना किया ताकि लड़के के मतलब को निकलवा सके। “जिसने कभी चोरी नहीं की, उसे चोर कैसे कहा जा सकता है?” उसने कहा।”

    लड़के के होंठ कसकर बंद हो गए, मानो वह शब्दों को रोक रहा हो। “लेकिन अगर किसी का बाप चोरी करता हो...” उसने थोड़ी देर की चुप्पी के बाद कह डाला।

    “आदमी को पैसा और मकान तो विरासत में मिल सकता है, लेकिन चोर का नाम केवल उसे दिया जाता है जिसने वैसा काम किया होता है।”

    तोर्ड प्यार से हँस दिया। “लेकिन जब किसी की माँ हो—और वह माँ आए और रोए तथा उससे याचना करे कि वह अपने पिता का ज़ुर्म अपने ऊपर ले ले—और तब वह व्यक्ति जल्लाद पर हँस सकता है और जंगल में भाग सकता है। कोई व्यक्ति उस मछली के जाल के लिए भगोड़ा अपराधी घोषित किया जा सकता है जिसे उसने कभी देखा ही नहीं।”

    बेर्ग ने बहुत ग़ुस्से में पत्थर की मेज़ पर घूँसा मारा। यहाँ इस मज़बूत, सुंदर लड़के ने अपनी पूरी ज़िंदगी किसी और के लिए दे दी थी। प्यार, पैसा या अपने साथियों का आदर अब उसे फिर कभी नहीं मिल पाएगा। अब उसकी ज़िंदगी में खाने और कपड़े की घटिया चिंता के अलावा और कुछ नहीं रह गया था। और इस मूर्ख ने उसे, बेर्ग को, एक मासूम व्यक्ति का तिरस्कार करने दिया। उसने उसे कड़ी फटकार लगाई, लेकिन तोर्ड डरा तो बस उतना ही जितना कि कोई बीमार बच्चा अपनी चिंतित माँ की फटकार खाने से डरता है।

    बहुत ऊँचाई पर स्थित एक वृक्षाच्छादित पहाड़ी पर एक दलदली झील थी। यह झील वर्गाकार थी और इसके किनारे इतने सीधे और उसके कोने इतने तीखे थे कि लगता था जैसे उन्हें मनुष्य के हाथों ने बनाया हो। तीन ओर चट्टान की खड़ी दीवारें थीं और कठोर, पहाड़ी चीड़ वृक्ष पत्थरों से चिपटे हुए थे और उनकी जड़ें आदमियों की भुजाओं जितनी मोटी थीं। झील की सतह पर जहाँ घास की कुछ पट्टियाँ बहकर हट चुकी थीं, वहाँ ये नंगी जड़ें मुड़ी हुई और कुंडली मारे थीं और पानी में ऐसे असंख्य साँपों की तरह उठ रही थीं, जिन्होंने लहरों से बचने की कोशिश की थी लेकिन अपनी इस जी-तोड़ कोशिश में पत्थर बन गई थीं। या ये बहुत पहले डूब गए दैत्यों के काले पड़ चुके कंकालों के ढेर की तरह लग रही थीं, जिन्हें झील बाहर फेंकने की कोशिश कर रही थी। उनकी भुजाएँ और टाँगें बुरी तरह से ऐंठ गई थीं, लंबी उँगलियाँ चट्टानों में गहरे पैठ गई थीं, और मज़बूत पसलियाँ ऐसी महराबें बन गई थीं जिन पर प्राचीन वृक्ष सधे हुए थे। लेकिन ये लोहे-सी कठोर भुजाएँ, ये इस्पाती उँगलियाँ, जिनसे ऊपर चढ़ते हुए चीड़ वृक्षों ने अपने आपको सहारा दे रखा था, जब-तब ये अपनी पकड़ ढीली कर देती थीं और तब ज़बरदस्त उत्तरी हवा पेड़ को पहाड़ी चट्टान से उठाकर दूर दलदल में फेंक देती थी। वहाँ यह पेड़ इस प्रकार पड़ा रहता था कि इसकी चोटी कीचड़दार पानी में गहरे डूब जाती थी। मछलियों को इसकी टहनियों के बीच छिपने की अच्छी जगह मिल जाती थी। जबकि उसकी जड़ें पानी में इस तरह ऊपर निकली रहती थीं, जैसे किसी भयंकर राक्षस की भुजाएँ हों और इससे वह छोटी-सी झील डरावनी दिखाई देने लगती थी।

    पहाड़ उस छोटी झील की चौथी ओर ढलान बनाए थे। यहाँ एक छोटी-सी नदी उफ़न रही थी। लेकिन अपना रास्ता बनाने से पहले यह जलधारा चट्टानों और टीलों के बीच मुड़ती और बल खाती थी, जिससे ढेर सारे टापू बन गए थे। इनमें से कुछ तो पाँव धरने की जगह बिलकुल नहीं बन पाए थे जबकि दूसरे टापुओं की पीठ पर बीस-बीस पेड़ तक लदे हुए थे। यहाँ, जहाँ पर चट्टानें इतनी ऊँची नहीं थीं कि धूप को आने से रोक सकें, हलके क़िस्म के हरे पेड़ उग सकते थे। यहाँ कोमल धूसररहित आल्डरवृक्ष थे और थे चिकनी पत्तियों वाले सरपत। यहाँ भूर्ज थे, जैसे कि वे हर उस जगह पर होते हैं जहाँ पर सदाबहार को रोकने का अवसर होता है और वहाँ पर पहाड़ी देवदारु और एलडर की झाड़ियाँ थीं और ये उस जगह को सौंदर्य और सुवास सौंपते थे। झील के प्रवेश बिंदु पर आदमी के सिर बराबर ऊँचे नरकटों का एक जंगल था, जिससे होकर धूप पानी पर उतनी ही हरी पड़ती थी जितनी कि यह असली जंगल में काई पर पड़ती है। सरकंडों के बीच छोटी-छोटी साफ़ जगहें थीं, ये छोटे-छोटे गोल पोखर थे, जहाँ कमल सोए रहते थे। लंबे-लंबे नरकट इन संवेदनशील सुंदर पुष्पों को प्यार-भरी गंभीरता के साथ देखते रहते थे और जैसे ही सूरज अपनी किरणों को समेटता था, कमल के ये पुष्प अपनी सफ़ेद पत्तियों और अपने पीले अंतःस्थल को अत्यंत तीव्रता से अपने बाहरी कड़े खोल में बंद कर लेते थे।

    एक धूप वाले दिन वे दोनों भगोड़े इन छोटे पोखरों में से एक पर मछली मारने आए। वे सरकंडों से रास्ता बनाते हुए दो बड़े पत्थरों पर आए और वहाँ बैठकर उन्होंने उन बड़ी, हरी, चमकदार पाइक मछलियों को पकड़ने के लिए चारा डाल दिया जो पानी की सतह के ठीक नीचे सोती थीं। इन आदमियों की ज़िंदगी अब पूरी तरह से पहाड़ों और जंगलों के बीच बीत रही थी और वे पौधों या पशुओं की तरह ही प्रकृति की शक्तियों के नियंत्रण में बंध गए थे। जब सूरज चमकता होता तो वे मुक्त-हृदय और प्रसन्न रहते थे, लेकिन शाम को वे ख़ामोश हो जाते थे और सर्वशक्तिशाली लगने वाली रात उनकी सारी शक्ति छीन लेती थी। इस समय सरकंडों से होकर आने वाले और पानी पर सुनहरे, भूरे और काले हरे रंग की पट्टियाँ बनाने वाले हरे प्रकाश ने उन्हें एक तरह के जादुई मूड में ला दिया था। वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे हुए थे। सरकंडे मंथर हवा में धीरे-धीरे लहरा रहे थे, नरकटे सरसरा रहे थे और लंबी फ़ीते जैसी पत्तियाँ उनके चेहरे को थपथपा रही थीं। वे चमड़े की अपनी भूरी जाकिट पहने भूरे पत्थरों पर बैठे थे और चमड़े के धूप-छाईं रंग पत्थर के रंग में घुल रहे थे। दोनों अपने साथी को आमने-सामने बैठे किसी पत्थर के बुत की तरह चुपचाप देख रहे थे। और सरकंडों के बीच वे बड़ी-बड़ी मछलियों को तैरती और इंद्रधनुष के तमाम रंगों में चमकती- दमकती देख रहे थे। जब उन्होंने अपनी डोरें फेंकीं और पानी में बनती भँवर को सरकंडों के बीच बड़ा होता देखा तो उन्हें लगा कि यह गति बढ़ती ही चली जा रही है और अंत में उन्होंने देखा कि इसे पैदा करने वाले वे अकेले व्यक्ति नहीं थे। एक जलपरी, आधी मानव, आधी मछली, पानी में नीचे गहराई में सोई हुई थी। वह पीठ के बल लेटी थी और लहरें उसके शरीर से इतनी निकटता से चिपकी हुई थीं कि इन आदमियों ने उसे पहले नहीं देखा था। उसकी साँस ही पानी की सतह में हिलोरें बना रही थी। लेकिन उन देखने वालों को यह नहीं लगा कि उसके वहाँ लेटे होने में कोई अजीब बात थी। और जब अगले क्षण वह ग़ायब हो गई तो वे यह नहीं जान पाए कि उसका दिखना भ्रम था या नहीं।

    हरा प्रकाश उनकी आँखों को बेधता हुआ किसी नशे की तरह उनके मस्तिष्क में उतर गया था। वे सरकंडों के बीच काल्पनिक चीज़ें देख रहे थे। ऐसी काल्पनिक चीज़ें, जिनके बारे में वे एक-दूसरे को भी नहीं बताने वाले थे। उन्होंने मछली का अधिक शिकार नहीं किया। सारा दिन सपनों और काल्पनिक चीज़ें देखने की भेंट हो गया।

    सरकंडों के बीच से पतवारों की आवाज़ आई और वे अपने सपनों से चौंककर जाग गए। कुछ ही क्षणों में पेड़ के तने से बनाई गई एक भारी नाव दिखाई दी, जिसे चलाने वाली पतवारें टहलने वाली छड़ी से अधिक चौड़ी नहीं थीं। पतवारें एक युवती के हाथ में थीं, जो कमल इकट्ठे कर रही थी। उसने लंबे और गहरे बालों की चोटियाँ गूँथ रखी थीं, उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और काली-काली थीं, लेकिन वह विचित्र रूप से पीली थी। यह ऐसी पीलाहट थी जो धूसर होकर हलकी गुलाबी रंगत लिए थी। उसके गालों का रंग उसके शेष चेहरे के रंग से कोई गाढ़ा नहीं था; उसके होंठ भी इतने लाल नहीं थे। वह सफ़ेद सूती कपड़े की चोली और सुनहरे बकसुए वाली बेल्ट पहने थी। उसका घाघरा नीले रंग का था और उस पर लाल रंग की चौड़े किनारे वाली झालर थी। वह इन भगोड़ों के पास से नाव खेती हुई निकल गई, लेकिन उसने उन्हें देखा नहीं। वे बिलकुल शांत बैठे रहे और इसके पीछे उनका डर इतना नहीं था, जितनी कि यह इच्छा थी कि वे उसे बिना किसी विघ्न के देख सकें। जब वह चली गई तो पत्थर के वे बुत फिर से इंसान बन गए और मुस्कराने लगे।

    “वह कमल के फूलों की तरह सफ़ेद थी,” एक ने कहा, “और उसकी आँखें वैसी ही काली थीं, जैसे वहाँ चीड़ की जड़ों के नीचे का पानी।”

    वे दोनों इतने प्रसन्न थे कि उन्हें हँसने का मन हुआ। सचमुच हँसने का मन हुआ जैसे कि वे इस दलदल में पहले कभी नहीं हँसे थे, ऐसी हँसी जो चट्टान की दीवार से टकराकर गूँजती हुई वापस आएगी और चीड़ की जड़ों को ढीला कर देगी।

    “क्या तुम्हारे विचार में वह सुंदर थी” दैत्य ने पूछा?

    “मुझे नहीं पता, वह इतनी जल्दी से निकल गई। शायद वह सुंदर थी।”

    “शायद तुम उसे देखने का साहस नहीं कर पाए। क्या तुम सोचते हो कि वह जलपरी थी?”

    और एक बार फिर उन्हें हँसने की विचित्र इच्छा हुई।

    बचपन में तोर्ड ने एक बार एक डूबे हुए आदमी को देखा था। उसे यह लाश दिनदहाड़े समुद्र तट पर मिली थी और उसे डर नहीं लगा था। लेकिन रात में उसे भयंकर सपने आए थे। वह एक समुद्र के ऊपर देखता लगता था, जिसकी हर लहर उसके पाँवों पर एक लाश फेंकती थी। उसे सारी चट्टानें और टापू डूबे हुए व्यक्तियों की लाशों से ढके दिखाई देते थे, उन डूबे हुए व्यक्तियों से जो मर चुके थे और सागर के हो चुके थे लेकिन जो चल-फिर सकते थे और बोल सकते थे और अपनी सफ़ेद अकड़ी उँगलियों से उसे डरा सकते थे।

    और वही इस बार फिर हुआ। जिस लड़की को उसने सरकंडों में देखा था वह उसे सपनों में दिखाई दी। उसकी भेंट लड़की से एक बार फिर दलदली झील की तलहटी में हुई, जहाँ प्रकाश सरकंडों की तुलना में और भी हरा था और वहाँ उसके पास यह देखने का काफ़ी समय था कि वह ख़ूबसूरत थी। उसने सपने में देखा कि वह झील के बीच में चीड़ की बड़ी-बड़ी जड़ों में से एक पर बैठा था और चीड़ वृक्ष कभी पानी की सतह के नीचे, कभी ऊपर, नीचे-ऊपर झूल रहा था। फिर उसने लड़की को एक सबसे छोटे टापू पर देखा। वह लाल पर्वतीय देवदारु के नीचे खड़ी थी और उस पर हँस रही थी। उसके अंतिम सपने में यह इतना आगे बढ़ गया कि लड़की ने उसे चूम लिया। लेकिन फिर सुबह हो गई और उसने बेर्ग के उठने की आवाज़ सुनी। लेकिन उसने अपनी आँखें हठपूर्वक बंद रखीं, ताकि वह सपने को आगे देख सके। जब वह जागा तो रात को देखे सपने से उसका सिर चकरा रहा था और वह भौचक था। पिछले दिन की अपेक्षा अब उसने लड़की के बारे में अधिक सोचा। शाम को जाकर उसके दिमाग़ में आया कि क्यों बेर्ग से पूछ लिया जाए कि क्या उसे लड़की का नाम पता है?

    बेर्ग ने उसे तीखी नज़रों से देखा। “तुम्हारे लिए यही अच्छा है कि तुम इसे तुरंत जान लो,”

    उसने कहा, “वह ऊन थी। हमारी आपस में रिश्तेदारी है।”

    और तब तोर्ड को पता चला कि यह पीली कन्या ही थी जिसके कारण जंगल और पहाड़ में छिपते हुए बेर्ग को वहशी ज़िंदगी बितानी पड़ रही थी और लोग उसकी तलाश में थे। उसने अपनी याददाश्त को टटोलने की कोशिश की कि उसने उस लड़की के बारे में क्या सुना था।

    ऊन एक स्वतंत्र किसान की बेटी थी। उसकी माँ मर चुकी थी। और अब अपने पिता के घर में उसका राज था। यह उसकी रुचि के अनुकूल था, क्योंकि वह स्वभाव से स्वाधीन थी और उसका अपने आपको किसी पति के हवाले करने का कोई इरादा नहीं था। ऊन और बेर्ग रिश्ते में बहन-भाई थे और यह अफ़वाह लंबे समय से थी कि बेर्ग को अपने घर में काम करने की अपेक्षा ऊन और उसकी दासियों के साथ बैठना अधिक अच्छा लगता था। एक क्रिसमस के मौक़े पर जब बेर्ग के हॉल में बड़ी दावत दी जानी थी तो उसकी पत्नी ने द्राक्समार्क से एक साधु को इस आशा से बुलवाया हुआ था कि वह बेर्ग को यह जताएगा कि किसी और लड़की के फेर में उसका अपनी पत्नी की उपेक्षा करना कितना ग़लत था। बेर्ग और उसके अलावा अन्य लोग इस साधु की शक्ल-सूरत के कारण उससे चिढ़ते थे। वह बहुत भारी-भरकम और एक़दम सफ़ेद था। उसके गंजे सिर पर बालों का घेरा, उसकी नम आँखों के ऊपर भौंहें, उसकी चमड़ी, उसके हाथों और उसके कपड़ों सभी का रंग सफ़ेद था। कइयों को उसकी सूरत देखने में ही अरुचि होती थी।

    लेकिन साधु को डर नहीं था और उसे यह विश्वास तो था ही कि अगर उसकी बात को अनेक लोग सुनें तो उसका अधिक प्रभाव पड़ेगा, सो वह तमाम मेहमानों के सामने मेज़ पर खड़ा हो गया और बोला, “लोग कोयल को इसलिए सबसे ख़राब चिड़िया बताते हैं कि वह अपने बच्चों की परवरिश दूसरों के घोंसले में करती है। लेकिन यहाँ एक ऐसा आदमी बैठा हुआ है जो अपने घर और अपने बच्चों की कोई देखभाल नहीं करता और एक पराई औरत के साथ मज़े करना चाहता है। उसे मैं सबसे ख़राब आदमी कहूँगा।” ऊन अपनी जगह पर उठ खड़ी हुई। “बेर्ग, यह तुमसे और मुझसे कहा गया है, “वह रोकर कहने लगी, “मुझे कभी इतना शर्मिंदा नहीं होना पड़ा, लेकिन यहाँ मेरा बचाव करने के लिए मेरे पिता भी नहीं हैं।” वह जाने के लिए मुड़ी, लेकिन बेर्ग झपटकर उसके पास पहुँचा। “जहाँ खड़े हो वहीं खड़े रहो,” वह बोली, “मैं तुम्हें दुबारा नहीं देखना चाहती।” बेर्ग ने उसे गलियारे में रोका और पूछा कि वह ऐसा क्या कर सकता है कि वह उसके साथ रहे। उसकी आँखों में चमक थी, जब उसने जवाब दिया कि उसे ख़ुद समझना चाहिए कि उसे क्या करना होगा। तब बेर्ग दुबारा हॉल में गया और उसने साधु को मार डाला।

    बेर्ग और तोर्ड दोनों थोडी देर के लिए एक से विचारों में सोचते रहे। फिर बेर्ग ने कहा, “जब वह सफ़ेद साधु गिरा था तो तुम्हें ऊन को देखना चाहिए था। मेरी पत्नी ने बच्चों को अपने पास समेट लिया और ऊन को बुरा-भला कहने लगी। उसने बच्चों के मुँह ऊन की ओर कर दिए कि वे हमेशा उस औरत को याद रखें जिसकी ख़ातिर उनका बाप हत्यारा बन गया था। लेकिन ऊन वहाँ इतनी शांत और इतनी ख़ूबसूरत बनी खड़ी रही कि उसे देखने वाले काँप गए। उसने इस काम के लिए मुझे धन्यवाद कहा और प्रार्थना की कि मैं एक़दम जंगलों में भाग जाऊँ। उसने मुझसे कहा कि मैं कभी डाकू बनूँ और अपने छुरे का इस्तेमाल ऐसे ही किसी न्यायपूर्ण काम के लिए करूँ।”

    “तुम्हारे काम ने उसे नेक बना दिया था।” तोर्ड ने कहा।

    और एक बार फिर बेर्ग ने अपने को उसी बात पर चकित पाया, जिसने अब से पहले उसे तोर्ड के अंदर होने पर चकित किया था। तोर्ड काफ़िर था, बल्कि काफ़िर से भी बुरा था। वह ग़लत बात की कभी निंदा नहीं करता था। लगता था कि उसमें ज़िम्मेदारी का कोई भाव था ही नहीं। जो आना था, आया। वह परमेश्वर के बारे में, क्राइस्ट के बारे में और संतों के बारे में जानता तो था, लेकिन वह उन्हें बस नाम से जानता था, जैसे कोई अन्य राष्ट्रों के देवताओं के नाम जानता है। शेरेन टापू के प्रेत उसके देवता थे। जादू सीखी उसकी माँ ने उसे मुर्दों की आत्माओं में विश्वास करना सिखाया था। और तभी बेर्ग ने एक ऐसा काम अपने ऊपर ले लिया, जो वैसा ही मूर्खतापूर्ण था, जैसे किसी का अपनी ही गर्दन के फंदे के लिए रस्सी बुनना। उसने इस अज्ञानी लड़के की आँखें परमात्मा की शक्ति के प्रति खोल दीं। उस परमात्मा के प्रति जो समस्त न्याय का स्वामी था। ग़लती का बदला लेने वाला ऐसा परमेश्वर था, जो पापियों को नरक की अनंत पीड़ा के हवाले कर देता है। और उसने लड़के को यह सिखाया कि वह क्राइस्ट और उनकी माँ को प्रेम करे और उन तमाम संत स्त्री-पुरुषों से प्रेम करे, जो परमेश्वर के सिंहासन के आगे बैठ प्रार्थना करते रहते हैं कि उसका क्रोध पापियों पर पड़े। उसने लड़के को वह सब करना सिखाया जो मानव जाति ने परमेश्वर के क्रोध को कम करने के लिए सीखा है। उसने लड़के को पवित्र स्थानों को जाने वाले तीर्थयात्रियों के लंबे क़ाफ़िलों के बारे में बताया। उसने उसे उन लोगों के बारे में बताया जो पश्चात्ताप में अपने आपको कोड़े मारते हैं और उसने उसे उन पवित्र साधुओं के बारे में बताया जो इस संसार के सुखों को त्यागकर चले जाते हैं।

    जितना अधिक वह बोलता गया, उतना ही लड़के का रंग पीला पड़ता गया और उतना ही उसका ध्यान और बढ़ता गया और उसकी आँखें उन दृश्यों की कल्पना करके चौड़ी हो गईं। बेर्ग ने अपनी बात समाप्त कर दी होती, लेकिन उसके अपने विचारों की बाढ़ उसे बहा ले गई। रात उन पर उतर आई। यह वही काली जंगली रात थी, जहाँ उल्लू की चीख़ सन्नाटे में प्रेत-सी पतली और महीन गूँजती है। परमेश्वर उनके इतने निकट गया कि उसके सिंहासन की चमक ने सितारों को फीका कर दिया और प्रतिशोध के फ़रिश्ते पहाड़ की ऊँचाइयों पर उतर आए। और उनके नीचे रसातल की लौ फड़फड़ाकर पृथ्वी के बाहरी वक्र पर गई और उन्होंने पूरी ललक से पाप और दुःख के नीचे दबी-पिसी एक नस्ल के इस अंतिम शरणस्थल को अपनी चपेट में ले लिया।

    पतझड़ आया और उसके साथ ही आया तूफ़ान। तोर्ड अकेला फंदों और जालों को देखने के लिए बाहर जंगल में निकला और बेर्ग उसके कपड़ों को दुरुस्त करने के लिए घर में ही बना रहा। लड़का जिस रास्ते पर चला, वह उसे जंगल की एक ऐसी ऊँचाई पर ले गया, जिसके सहारे-सहारे गिरती हुई पत्तियाँ हवा के झोंकों में घेरा बनाकर नाचती थीं। बार-बार उसे ऐसा लगा कि कोई उसके पीछे रहा है। वह कई बार मुड़ा और यह देखकर फिर आगे बढ़ लिया कि ये तो केवल हवा और पत्तियाँ थीं। उसने सरसराहट पैदा करते घेरों को अपना घूँसा दिखाकर धमकाया और आगे बढ़ता रहा। लेकिन उसने अपनी कल्पनाओं की आवाज़ों को ख़ामोश नहीं किया था। पहले तो उसे परी-शिशुओं के नाचते हुए नन्हें पाँवों की आवाज़ सुनाई दी; फिर उसे अपने पीछे आते एक बड़े से साँप की फुफकार सुनाई देने लगी। साँप की बगल में एक लंबा, भूरा जीव, भेड़िया आया, जो उस क्षण के इंतज़ार में था कि साँप उसके पाँवों में डंक मारे और वह उछलकर उसकी पीठ पर जा चढ़े। तोर्ड ने अपनी चाल बढ़ा दी, लेकिन काल्पनिक चीज़ें भी उसी गति से साथ हो लीं। जब उसे लगा कि वे उससे केवल दो क़दम पीछे और छलाँग लगाने को तैयार हैं तो वह घूम गया। लेकिन जैसा कि उसे इस पूरे समय में पता था, वहाँ कुछ भी नहीं था। वह एक पत्थर पर बैठकर सुस्ताने लगा। सूखी पत्तियाँ उसके पैरों पर क्रीड़ा कर रही थीं। जंगल के तमाम पेड़ों की पत्तियाँ वहाँ थीं। भूर्ज की पीली पत्तियाँ, पर्वतीय देवदारु की लाल आभायुक्त पत्तियाँ, एल्म की सूखी काली-भूरी पत्तियाँ, आस्पेन की चमकीली लाल पत्तियाँ और सरपत की पीली-हरी पत्तियाँ। मुरझाई और तुड़ी-मुड़ी टूटी और दागदार ये पत्तियाँ उन मुलायम, नरम हरे तने की तरह तो कम ही दिखती थीं जो कुछ ही महीने पहले कलियों से फूटकर बाहर आए थे।

    “तुम पापी हो,” लड़के ने कहा, “हम सभी पापी हैं। परमेश्वर की दृष्टि में कुछ भी पवित्र नहीं है। तुम उसके क्रोध की लौ में पहले ही झुलस चुके हो।”

    तब वह फिर आगे बढ़ा, जबकि जंगल उसके नीचे तूफ़ान में किसी समुद्र की तरह लहरा रहा था। हालाँकि उसके रास्ते के आस-पास शांति और नीरवता थी। लेकिन उसे ऐसा कुछ सुनाई नहीं दिया जिसे उसने पहले कभी नहीं सुना था। जंगल आवाज़ों से भरा था। कभी उसे फुसफुसाने जैसी आवाज़ सुनाई देती, कभी हलका विलाप सुनाई देता, कभी ज़ोरदार धमकी तो कभी श्राप के गरजते स्वर सुनाई देते। कभी हँसी का स्वर उभरता तो कभी कराहने का। यह सैकड़ों समवेत स्वर जैसा था किसी ऐसी अज्ञात चीज़ का स्वर, जो धमकाती और उत्तेजित करती थी, जो सीटी बजाती और फुफकारती थी, ऐसी कोई चीज़ जिसके होने का आभास तो होता था लेकिन जो थी नहीं; इस चीज़ ने उसे पागल-सा कर दिया। वह मृत्युवत् भय से काँप गया, जैसे कि वह पहले भी उस दिन काँपा था, जब वह अपनी गुफा के फ़र्श पर लेटा था और उसने अपना पीछा करने वालों को अपने ऊपर जंगल में बमकते हुए भागने की आवाज़ सुनी थी। उसे फिर से जैसे डालियों के चरमराने, आदमियों के भारी क़दमों, उनके हथियारों की टंकार और उनकी वहशी, रक्तपिपासु चीख़ों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

    उसके आस-पास अकेला तूफ़ान ही नहीं गरज रहा था। इसमें कुछ और भी था। ऐसा कुछ जो और भी भयंकर था। ऐसी आवाज़ें थीं जिन्हें समझने में वह असमर्थ था, मानो ये किसी अपरिचित संवाद के स्वर थे। उसने इससे भी ज़बरदस्त और अनेक तूफ़ानों को जहाज़ के साज-सामान पर गरजते सुना था। लेकिन उसने इतने सारे तारों की वीणा पर हवा के बजने की झंकार कभी नहीं सुनी थी। लग रहा था कि हर पेड़ का अपना स्वर था, हर दर्रे का दूसरा ही गीत था, चट्टानी दीवार से टकराकर आने वाली ज़ोरदार गूँज अपनी ही आवाज़ में चीख़कर जवाब दे रही थी। वह इन सभी तानों को समझता था, लेकिन उसके साथ अन्य अपरिचित ध्वनियाँ थीं और ये ही विचित्र ध्वनियाँ उसके अपने मस्तिष्क के अंदर स्वरों का तूफ़ान उठा रही थीं।

    जंगल के अंधकार में वह जब भी अकेला हुआ, उसे डर लगा है। उसे खुला सागर और नंगी चट्टानें बहुत अच्छी लगती थीं। यहाँ पेड़ों की छायाओं में तो प्रेत और आत्माएँ मँडराती थीं।

    तब अचानक उसे समझ गया कि तूफ़ान में कौन उससे बातें कर रहा था। यह परमेश्वर था, महान् प्रतिशोधी, समस्त न्याय का स्वामी। परमेश्वर उसके साथी के कारण उसका पीछा कर रहा था। परमेश्वर की माँग थी कि उसे साधु के हत्यारे को प्रतिशोध के लिए सौंप देना चाहिए।

    तोर्ड तूफ़ान के बीच ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगा। उसने परमेश्वर को बताया कि वह क्या करना चाहता था, लेकिन कर नहीं पा रहा था। उसने दैत्य से बात करनी चाही थी और उससे यह प्रार्थना करनी चाही थी कि वह परमेश्वर के साथ शांति कर ले। लेकिन उसे शब्द नहीं मिल पाए थे; शर्म के मारे उसकी ज़बान बंद थी। “जब मुझे यह पता चला कि दुनिया पर एक न्यासी परमेश्वर राज़ करता है,” वह चिल्लाकर बोला, “तो मुझे समझ में गया है कि वह भटका हुआ है। मैं रात-भर अपने मित्र के लिए रोया हूँ। मैं जानता हूँ कि वह चाहे जहाँ भी छिप जाए, परमेश्वर उसे अवश्य ढूँढ़ लेगा। लेकिन मैं उससे बात नहीं कर पाया, उसके प्रति अपने प्रेम के कारण मुझे शब्द नहीं मिल सके। मुझसे यह मत कहना कि मैं उससे बात करूँगा। यह मत कहना कि सागर पर्वतों की ऊँचाई तक उठेगा।”

    वह फिर ख़ामोश हो गया और तूफ़ान का गहन स्वर, जिसे वह परमेश्वर का स्वर समझता था, वह स्वर भी शांत हो गया। हवा में अचानक एक ठहराव गया, धूप खिल उठी, पतवारों की-सी आवाज़ आई और कड़े सरकंडों की हलकी सरसराहट सुनाई दी। इस कोमल तानों ने ऊन की याद दिला दी।

    तब तूफ़ान फिर शुरू हो गया और उसे अपने पीछे क़दमों की आहट और जल्दी-जल्दी हाँफने की आवाज़ सुनाई दी। इस बार वह घूमने का साहस नहीं कर पाया, क्योंकि उसे पता था कि यह सफ़ेद साधु ही था। वह ख़ून में सना, बेर्ग के बड़े हॉल में होने वाली दावत से आया था और उसके माथे पर कुल्हाड़ी से कटने का खुला घाव था और वह फुसफुसाकर बोला, 'उससे विश्वासघात करो। उसे शत्रु के हवाले कर दो, ताकि तुम उसकी आत्मा को बचा सको।'

    तोर्ड भागने लगा। यह सारा भय उसके अंदर बढ़ता ही गया, बढ़ता ही गया और उसने इससे दूर भागने की कोशिश की। लेकिन दौड़ते हुए भी उसे अपने पीछे वही गहन, ज़बरदस्त स्वर सुनाई दिया जो उसके अनुसार परमेश्वर का स्वर था। परमेश्वर स्वयं उसका पीछा कर रहा था, उससे माँग कर रहा था कि वह हत्यारे को सौंप दे। बेर्ग का अपराध उसे इस समय जितना भयंकर दिखाई दिया, उतना पहले कभी दिखाई नहीं दिया। एक निहत्थे आदमी की हत्या हुई थी। परमेश्वर के एक सेवक को कुल्हाड़ी से काट डाला गया था और हत्यारा अभी भी जीने का साहस किए जा रहा था। वह सूरज की रोशनी और पृथ्वी के फलों का आनंद लेने का साहस कर रहा था। तोर्ड रुका, उसने अपनी मुट्ठियाँ भींचीं और धमकी-भरी चीख़ मारी। फिर एक पागल आदमी के सामने वह जंगल से, आतंक के उस राज्य से भागकर नीचे घाटी में चला गया।

    जब तोर्ड ने गुफा में प्रवेश किया तो भगोड़ा पत्थर की बेंच पर बैठा सिलाई कर रहा था। आग से केवल पीली-पीली रोशनी हो रही थी और उसका काम संतोषजनक ढंग से होता नहीं दिख रहा था। लड़के का दिल दया से भर गया। यह अति श्रेष्ठ दैत्य एकदम से इतना दीन और इतना दुखी दिखाई देने लगा था।

    “क्या बात है?” बेर्ग ने पूछा, “क्या तुम बीमार हो? क्या तुम डर गए हो?”

    तब पहली बार तोर्ड ने अपने भय के बारे में बताया, “जंगल में इतना अजीब लगा। मुझे आत्माओं की आवाज़ें सुनाई दीं और मुझे प्रेत दिखाई दिए। मैंने सफ़ेद साधु देखे।”

    “लड़के!”

    “वे पहाड़ की चोटी तक सारे रास्ते मुझे गीत सुनाते रहे। मैं उनसे दूर भागा, लेकिन वे गाते हुए मेरे पीछे भागे। क्या मैं आत्माओं का शमन नहीं कर सकता? मुझे उनके साथ क्या करना चाहिए? दूसरे लोगों को उनका दिखाई देना अधिक ज़रूरी है।”

    'आज रात तुम पागल तो नहीं हो गए हो तोर्ड?”

    तोर्ड बोलने लगा तो उसे पता नहीं था कि वह क्या शब्द इस्तेमाल कर रहा है। उसका संकोच अचानक उससे अलग हो गया था और उसके होंठों से संवाद जैसे झर रहा था। “वे सफ़ेद साधु हैं, मुरदों की तरह पीले और उनके वस्त्रों पर ख़ून के धब्बे हैं। वे अपनी टोपियों को माथे पर खींचे रहते हैं लेकिन मुझे वहाँ पर घाव चमकते दिखाई दे जाते हैं। ये कुल्हाड़ी के घाव होते हैं—बड़े, खुले और लाल।”

    “तोर्ड,” दैत्य ने कहा। वह पीला और गंभीर हो गया था, “यह तो संत ही जानते हैं कि तुम्हें कुल्हाड़ी के घाव क्यों दिखाई देते हैं। मैंने तो साधु को छुरे से मारा था।

    “तोर्ड काँपता और अपने हाथों को मलता हुआ बेर्ग के सामने खड़ा था। “उन्होंने मुझसे तुम्हारी माँग की है, वे मुझे बाध्य करते हैं कि मैं तुम्हें पकड़वा दूँ।”

    “कौन? साधु लोग?”

    “हाँ-हाँ, साधु लोग। वे मुझे सपने में दिखाई देते हैं। वे मुझे ऊन को दिखाते हैं। वे मुझे खुला, धूपदार सागर दिखाते हैं। वे मुझे मछुआरों के शिविर दिखाते हैं जहाँ नाच-गाना होता है। मैं अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ फिर भी मुझे यह सब दिखाई देता है। 'मुझे छोड़ दो,' मैं उनसे कहता हूँ, “मेरे दोस्त ने हत्या ज़रूर की है पर वह बुरा नहीं है, मुझे अकेला छोड़ दो और मैं उससे बात करूँगा कि वह पश्चात्ताप करे, अपने आपको सुधारे। उसने जो ग़लती की है, वह उसे समझेगा और पवित्र समाधि की तीर्थयात्रा करेगा।”

    “और साधु लोग क्या जवाब देते हैं?” बेर्ग ने पूछा, “वे मुझे क्षमा नहीं करना चाहते। वे मुझे प्रताड़ित करके दंडस्वरूप आग में जला देना चाहते हैं।”

    “क्या मैं अपने सबसे अच्छे मित्र को पकड़वा दूँ?” मैं उनसे पूछता हूँ,

    “दुनिया में उसके अलावा मेरा कोई नहीं है। उसने मुझे भालू से उस समय बचाया था, जब भालू के पंजें मेरे गले तक पहुँच चुके थे। हमने साथ-साथ भूख और ठंड को सहा है। जब मैं बीमार था तो उसने मुझे अपने ही कपड़ों में लपेटा था। मैंने उसे लकड़ियाँ और पानी लाकर दिया है, मैंने उसके सो जाने पर पहरा दिया है और उसके दुश्मनों को ग़लत रास्ते पर भटकाया है। वे मुझे ऐसा आदमी क्यों समझते हैं जो अपने मित्र के साथ विश्वासघात करेगा? मेरा मित्र स्वयं पुरोहित के पास जाएगा और उसके आगे पाप स्वीकार करेगा और फिर हम दोनों साथ-साथ पाप-क्षमा के लिए याचना करेंगे।”

    बेर्ग गंभीर होकर सुनता रहा, उसकी उत्सुक आँखें तोर्ड के चेहरे को टटोल रही थीं, “तुम ही पुरोहित के पास जाओ और उसे सच-सच बता दो। तुम्हें फिर से मनुष्यों के समाज में लौट जाना चाहिए।”

    “मेरे अकेले के जाने से क्या होगा? मरे हुए लोगों की आत्माएँ तुम्हारे पाप के कारण मेरा पीछा करती हैं। क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता कि मैं तुम्हारे आगे कैसे काँपता हूँ? तुमने स्वयं परमेश्वर के ख़िलाफ़ हाथ उठाया है। तुम्हारे अपराध जैसा और क्या अपराध होगा? तुमने मुझे न्यायी परमेश्वर के बारे में क्यों बताया? तुम ख़ुद ही तो मुझे बाध्य करते हो कि मैं तुम्हारे साथ विश्वासघात करूँ। मुझसे यह पाप मत करवाओ। पुरोहित के पास तुम स्वयं जाओ।” वह बेर्ग के सामने घुटनों के बल बैठ गया।

    हत्यारे ने उसके सिर पर हाथ रखा और उसकी ओर देखा, उसने अपने पाप का आकलन अपने साथी के भय से किया और बढ़ता-बढ़ता बहुत बड़ा हो गया। उसने अपने आपको उस परम इच्छा के साथ टकराव की स्थिति में देखा, जो दुनिया पर राज़ करती है। पश्चात्ताप उसके दिल में घर कर गया।

    “लानत है मुझ पर कि मैंने वह सब किया,” वह बोला, “और क्या यह दयनीय जीवन, यह जो आतंक और अभाव का जीवन हम यहाँ जी रहे हैं, क्या यह अपने आप में पर्याप्त पश्चात्ताप नहीं है? क्या मेरा घर-बार और संपत्ति मुझसे नहीं छिन गई? क्या मेरे दोस्त और वे सारी ख़ुशियाँ मुझसे नहीं छिन गईं, जो आदमी के जीवन का अंग होती हैं? इससे अधिक और क्या हो सकता है?”

    तोर्ड ने उसे इस तरह बोलते सुना तो वह भयवश उछलकर खड़ा हो गया। “तुम पश्चात्ताप कर सकते हो!” वह चिल्लाया, “मेरे शब्द तुम्हें द्रवित कर सकते हैं? ओह, मेरे साथ आओ, इसी समय जाओ। आओ, समय रहते ही हम चलें।”

    दैत्य बेर्ग भी उछलकर खड़ा हो गया, “तुमने...यह किया...?”

    “हाँ, हाँ, हाँ, हाँ। मैंने तुम्हारे साथ विश्वासघात कर दिया है। लेकिन जल्दी से आओ। अब आओ भी, क्योंकि अब तुम पश्चात्ताप कर सकते हो। हमें बच निकलना चाहिए। हम बच निकलेंगे।”

    हत्यारा फ़र्श पर झुका, जहाँ उसके पाँवों पर उसके पुरखों का फ़रसा पड़ा था। “चोर की औलाद,” उसने फुफकारते हुए कहा, “मैंने तुम पर भरोसा किया...मैंने तुम्हें प्यार किया।”

    लेकिन जब तोर्ड ने उसे फ़रसा उठाने के लिए नीचे झुकते देखा तो वह समझ गया कि अब उसकी ख़ुद की ज़िंदगी ख़तरे में है। उसने अपने कमरबंद से अपनी कुल्हाड़ी निकाल ली और इससे पहले कि बेर्ग उठ पाता, उसने उसके सिर पर वार कर दिया। दैत्य सिर के बल फ़र्श पर गिर पड़ा, और ख़ून निकलकर गुफा में फैल गया। उसकी उलझी जटाओं के बीच तोर्ड को कुल्हाड़ी का बड़ा, खुला और लाल घाव दिखाई दिया।

    तभी किसान गुफा में घुस पड़े। उन्होंने उसके इस काम की प्रशंसा की और उससे कहा कि उसे पूरी क्षमा मिलेगी।

    तोर्ड ने अपने हाथों को देखा, मानो उसे वहाँ वे बेड़ियाँ दिखाई दे रही थीं जिन्होंने उसे उस आदमी को मारने के लिए उकसाया था, जिसे वह प्यार करता था। पौराणिक फेनरिस भेड़िए की ज़ंजीरों की तरह वे भी रिक्त हवा से बुनी हुई थीं। वे सरकंडों के बीच के हरे प्रकाश से बुनी गई थीं, जंगलों में छायाओं की आँखमिचौनी से बुनी गई थीं, तूफ़ान के गीत से बुनी हुई थीं, पत्तियों की सरसराहट से बुनी गई थीं और बुनी थीं सपनों के जादुई दर्शन से। और उसने ज़ोर से कहा, “परमेश्वर महान् है।”

    वह मुर्दा शरीर के पास दीनतापूर्वक झुककर बैठ गया और रो-रोकर मृतक से याचना करने लगा कि वह जाग जाए। गाँव वालों ने स्वतंत्र किसान की लाश को उसके घर पहुँचाने के लिए अपने भालों से पालकी तैयार की। मृत व्यक्ति उनके मनों में श्रद्धाभाव जगा रहा था और उन्होंने उसकी उपस्थिति में अपने स्वरों को कोमल कर लिया था।

    जब उन्होंने मृतक को उठाकर अरथी पर रखा तो तोर्ड उठकर खड़ा हो गया। उसने बालों को झटककर आँखों से हटाया और काँपती आवाज़ में कहा, “जिस ऊन के लिए दैत्य बेर्ग हत्यारा बना था, उससे कहना कि मछुआरे तोर्ड ने, जिसका बाप टूटे जहाज़ों को लूटता है और जिसकी माँ डायन है—उससे कहना कि तोर्ड ने बेर्ग को इसलिए मार डाला, क्योंकि बेर्ग ने ही उसे यह शिक्षा दी थी कि न्याय दुनिया का आधारतत्त्व है।”

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 41-59)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : सेल्मा लागरलोफ
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008

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