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तिन पर पानिप भरे जरे
तहँ इक परम प्रकाश रत्नमय बरं सिंहासन।तहँ सहस्र दल कमल कोटि तम तोम बिनासन॥
बाल अली
सुत मैं सुनित लोक में बात
तम पे गुरु दच्छना माँगी, आँन दीयौ बिख्यात।खट सुत कंसे बचे हैं मेरे, जेष्ठ तिहारे भ्रात॥
भालण
बलि जैहों श्री रसिकाचारज
भगवत रसिक
उपदेश
बदना जनि करौ, ह्वै है कछु न वा तम माहिं।शून्य सों कछु याचना जनि करौ, सुनिहै नाहिं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
गोरस बेचत आपु बिकानी
चतुर्भुजदास
चंदा जनि उग आजुक राति
अथरा राहु बुझाएब हँसी। पिबि जनि उगिलह सीतल ससी॥कोटि रतन जलधर तोहें लेह। आजुक रयनि घन तम कए देह॥
विद्यापति
शरद वर्णन (रामचंद्रिका)
श्रीनारद की दर सै मति सी। लोपै तम ताप अकीरति सी॥मानौ पति देवन की रत्ति सी। सन्मारग की समझौ गति सी॥
केशवदास
जय गंगे जय तारनितरनि
पुलिन प्रतीत मंद मारुत बह निर्मल धार धवल छवि धरनि।जेते जंतु जीव जल थल नभ सब की तीन ताप तम हरनि॥
जुगलप्रिया
तपश्चर्य्या
वा शून्य को सब भेद जहँ सों कढत सब दरसात हैं।पुनि भेद वा तम को जहाँ सब अंत में चलि जात हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
पाँड़े बूझि पियहु तुम पानी
पाँड़े बूझि पियहु तुम पानी।जिहि मिटिया के घरमहै बैठे, तामहँ सिस्ट समानी।
कबीर
तुम सों क्यों कहौं ब्रजनाथ
तुम सों क्यों कहौं ब्रजनाथ।मोहू को अति गिरा गद्गद देखि विरह अनाथ॥
चतुर्भुजदास
अब तुम हमारी ओर निहारो
अब तुम हमारी ओर निहारो।हमारे अवगुण पै मति जावो तुमहीं अपनो विरुद सम्हारो॥
सहजोबाई
अहो हरि हम हारीं तुम जीते
अहो हरि हम हारीं तुम जीते।नागर नट पट देहु हमारे कांपत हैं तन सीते॥
परमानंद दास
तुम सम कौन गरीब-नेवाज
तुम सम कौन गरीब-नेवाज।तुम सांचे साहेब करुनानिधि पूरन जन-मन-काज॥