आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "tam"
Doha के संबंधित परिणाम "tam"
सीत हरत, तम हरत नित
सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहिं चूक।रहिमन तेहि रबि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥
रहीम
अलप अरुन छवि अलप तम
अलप अरुन छवि अलप तम, अलप नखत दुति जाल।लियो विविध रंग नभ बसन, जनु प्राची बर बाल॥
भूपति
हृदय-सून तें असत-तम
हृदय-सून तें असत-तम, हरौ करौ जो सून।सून-भरन के हित झपटि, झट आवेगौ सून॥
दुलारेलाल भार्गव
जानकीवल्लभ नाम अति
जानकीवल्लभ नाम अति, मधुर रसिक उर ऐन।बसे हमेशे तोम तम, शमन करन चित्त चैन॥
युगलान्यशरण
नंद-नंद सुख-कंद कौ
नंद-नंद सुख-कंद कौ, मंद हँसत सुख-चंद।नसत दंद-छलछंद-तम, जगत-जगत आनंद॥
दुलारेलाल भार्गव
सुंदर गुरु दीपक किये
सुंदर गुरु दीपक किये, घर मैं को तम जाइ।सद्गुरु सूर प्रकास तें, सबै अंधेरे बिलाइ॥
सुंदरदास
लखि जग-पंथी अति थकित
लखि जग-पंथी अति थकित, संझा-बाँह पसारि।तम-सरायें में दै रही, छाँहँ छपा-भटियारि॥
दुलारेलाल भार्गव
कुलहि प्रकासै एक सुत
कुलहि प्रकासै एक सुत, नहिं अनेक सुत निन्द।चन्द एक सब तम हरै, नहिं उड़गन के वृन्द॥
दीनदयाल गिरि
मलन काज मैं खलन की
मलन काज मैं खलन की, मति अति होति अनूप।ज्यों उलूक तम मैं लखै, प्रगट चराचर रूप॥
दीनदयाल गिरि
लह्यों प्रेम जब जानिये
लह्यों प्रेम जब जानिये, विरह विकल तम दीन।कुछ न कहूँ सुहाय छिनु, दुति पे होई अधीन॥
दयाराम
प्रकृति अरु सब तत्त्व तें
प्रकृति अरु सब तत्त्व तें, भिन्न जीव निज रूप।सो प्रभु सों नातो बिसरी, पर्यो मोह तम कूप॥
रसिक अली
दुरै माँग ते भाल लौं
दुरै माँग ते भाल लौं, लर के मुकुत निहारि।सुधा बुंद मनु बाल, ससि पूरत तम हिय फारि॥
रसलीन
मोहि मोह तुम मोह को
मोहि मोह तुम मोह को, मोह न मो कहुं धारि।मोहन मोह न वारियें, मोहनि मोह निवारि॥
दयाराम
मोहि मोह तुम मोहको
मोहि मोह तुम मोह को, मोह न मो कहुँ धारि।मोहन मोह न वारियें, मोहनि मोह निवारि॥
दयाराम
अब तुम प्रगटहु रामजी
अब तुम प्रगटहु रामजी, हृदै हमारै आइ।सुन्दर सुख सन्तोष ह्वै, आनँद अंग न माइ॥
सुंदरदास
निज बल कौं परिमान तुम
निज बल कौं परिमान तुम, तारै पतित बिसाल।कहा भयौ जु न हौं तरतु, तुम खिस्याहु गोपाल॥
मतिराम
तुम ताके मन तासु मन
तुम ताके मन तासु मन, बसत विरह की ज्वाल।तुम्हें न बाधत नेक हू, बड़े सयाने लाल॥
बैरीसाल
रति आरति जानत न तुम
रति आरति जानत न तुम, मेरी हे प्रिय प्रान।जस मो तुम,तसि को तुमे, लगिहे हुइ तब ग्यान॥