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हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ।साराँ देखे लाज मराँ छाँ आवाँ किण जतनाँ॥
रसिकबिहारी
यों कछु कीन्हों अचानक चोट जु
सुखदेव मिश्र
कलेऊ कीजै नंद-कुमार
कलेऊ कीजै नंद-कुमार।भई बड़ि बार जाहु जमुना-तट ठाढ़े सखा सब द्वार॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
सीतानाथ विनय चित धारौ
अनगिनत तीय आपु उद्धारी, किमि मो सुरति बिसारी।हों तव चरन दास की दासी, रत्न लहों दुःख भारी॥
रत्नावली
चित को चोर अब जो पाउं
जैसे निसंक धसत मंदिर में तिहि ओसर जो अचानक पाउं।गहि अपने कर सुद्दढ मनोहर बहोत दिनन की रुचि उपजाउं।
परमानंद दास
खेवटीयारे वीर अब मोहे
खेवटीयारे वीर अब मोहे क्यों न उतारे पार।मेरे संग की सबही उतरके भेटी नंद कुमार॥
परमानंद दास
इंद्र हू की असवारी
बादरन की फ़ौजें छाईं बूँदन की तीरा कारी॥दामिनी की रंजक, तामैं ओले-गोले तोप छुटत,
बैजू
मुरकि-मुरकि चितवनि चित चोरै
मुरकि-मुरकि चितवनि चित चोरै।ठुमकि चलनि, हेरा दै बोलनि, पुलकनि नंदकिसोरै॥
ललितकिशोरी
झूलै कुँवरि गोपराइन की
झूलै कुँवरि गोपराइन की। मधि राधा सुंदरि-सुकुमारि॥प्रथमहि रितु पावस आरम्भ। श्रीवृषभानु मँगाये खंभ॥
गदाधर भट्ट
मंगल आरति प्रिया प्रीतम की
जुगलप्रिया
ब्रज की नारी डोल झुलावैं
ब्रज की नारी डोल झुलावैं।सुख निरखत मन मैं सचु पावें मधुर-मधुर कल गावैं॥