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क्या तुम देखते हो बाज़ीगिरी का तमाशा
क्या तुम देखते हो बाज़ीगिरी का तमाशा।हाथी घोड़े माल कबीला, कोई न किसका साथी।
मध्व मुनीश्वर
ना वह रीझै जप तप कीन्हें
ना वह रीझै जप तप कीन्हें, ना आतम को जारे।ना वह रीझे धोती टांगे, ना काया के पखारे॥
मलूकदास
तू तो प्रीति की रीति न जानै एरी गँवार
तू तो प्रीति की रीति न जानै एरी गँवार।जाकौ मन मिलाइ चित लीजे जासों और बहीये नार॥
गोविंद स्वामी
शहंशाह बने हो तो आह सुनो दिनन की
शहंशाह बने हो तो आह सुनो दिनन की,बानी मरदानी बचन जावे खाली है।
निपट निरंजन
इन में क्या लीजै क्या दीजै
इन में क्या लीजै क्या दीजै, जनम अमोलिक छीजै॥सोवत सुपना होई, जागे थैं नहिं कोई।
दादू दयाल
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय
जसोदा, तेरे भाग्य की कही न जाय।जो मूरति ब्रह्मादिक दुर्लभ सो प्रगटे हैं आय॥
परमानंद दास
ठगोरी मेलि गए सैन की
अगबक रहि कछु कहत न आयौ मो सुधि भूलि बैन की।‘दास चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर मूरति कोटिक मैन की॥
चतुर्भुजदास
क्या करना है संतति-संपति
क्या करना है संतति-संपति, मिथ्या सब जग-माया है।शाल-दुशाले, हीरा-मोती में मन क्यों भरमाया है॥
ललितकिशोरी
प्रीति न काहु कि कानि बिचारै
प्रीति न काहु कि कानि बिचारै॥मारग अपमारग विथकित मन, को अनुसरत निबारै॥
हितहरिवंश
नीकी खेली गोपाल की गैया
नीकी खेली गोपाल की गैया।कूकें देत ग्वाल सब ठाड़े यह जु दिवारी नीकी गैया॥
परमानंद दास
भजन भावना होय न परसी
भजन भावना होय न परसी, प्रेम नहीं उर कपटी।कुआँ पर्यौ आकाश उड़त खग, ताकों करत जु झपटी॥
चाचा हितवृंदावनदास
बहुत बेर के भूखे हो लाल
बहुत बेर के भूखे हो लाल जेबों कछुइक लेहो बलैया।जो तू कह्यो न माने हों अपनेहलधर जू की मैया॥
परमानंद दास
स्यामाजू के सरन जे सुख न सिराने
सींचत अंड आम की आसा फूल फलै न पिछाने।दरसत परसत खात न जानत आँखि अछत अँधराने॥
बिहारिनिदेव
इंद्र हू की असवारी
बादरन की फ़ौजें छाईं बूँदन की तीरा कारी॥दामिनी की रंजक, तामैं ओले-गोले तोप छुटत,