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अकथ श्रमजीवन : न प्रवास, न पलायन
न प्रवास न पलायन बस विस्थापन-दर-विस्थापन,न प्रवासी न भगोड़े सिर्फ़ मिहनतकश अगुआ जन।
प्रकाश चंद्रायन
न कोई उम्मीद, न कोई...
कि फूल तो दूर, काँटे भी न चुभाता कोई...न ही यह चाहता हूँ कि कोई पाँच रुपए की एक क़लम
प्रांजल धर
न हो सिद्धि, साधन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो हैबुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है
मैथिलीशरण गुप्त
न बन सका
मिले न उससे किसी रोज़ तो
मिलें न उससे किसी रोज़ तो ये लगता है,कि चार दिन की, ज़िंदगी का क्या किया जाए।
दिनेश कुशवाह
न मैं चुप हूँ, न गाता हूँ
हिमानी झील के तट पर अकेला गुनगुनाता हूँन मैं चुप हूँ न गाता हूँ