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दिल्ली
यह कैसी चाँदनी अमा के मलिन तमिस्र गगन में!कूक रही क्यों नियति व्यंग्य से इस गोधूलि-लगन में?
रामधारी सिंह दिनकर
अरुणोदय
(15 अगस्त, सन् 1947 को स्वतंत्रता के स्वागत में रचित)नई ज्योति से भीग रहा उदयाचल का आकाश,
रामधारी सिंह दिनकर
पढ़क्कू की सूझ
एक पढ़क्कू बड़े तेज़ थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे,जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नई बात गढ़ते थे।