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मैं चलता मेरे साथ नया सावन चलता है
मैं चलता रवि-शशि चलते किरणों के पंख सजाकर,भू चलती सतत प्रगति-पथ नदियों के हार बनाकर,
उदयशंकर भट्ट
ढाबा : आठ कविताएँ
कलाई पर जिसके बँधतीं पूरी आठ राखियाँआठों के आठ डोरे झुलसे हर बार भट्ठी में।