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अरुणोदय
इन ताराओं के पार, इंद्र के गढ़ पर ध्वजा उड़ाने को।सम्मुख असंख्य बाधाएँ हैं, गरदन मरोड़ते बढ़े चलो,
रामधारी सिंह दिनकर
आग की भीख
प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ।चढ़ती जवानियों का शृंगार माँगता हूँ।
रामधारी सिंह दिनकर
पढ़क्कू की सूझ
कहा पढ़क्कू ने सुनकर, “तुम रहे सदा के कोरे!बेवक़ूफ़! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़े!