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पैसे के बारे में एक महत्वाकांक्षी कविता के लिए नोट्स
आर. चेतनक्रांति
मृत्यु के बाद और भी सुंदर हो गए हो तुम
मृत्यु के बाद और भी सुंदर हो गए हो तुमभोर की निराशा से परे
ज्याेति शोभा
देर से आई हुई बरसात
और न बतलाएँ उसे अपनी शिकायतें :जैसे राह देखना, अधीर हो जाना, मन में भाँति-भाँति
आ. रा. देशपांडे अनिल
कुछ कहना है मुझे भी
किसी को इतना भी मत रुलानाकि पत्थर हो चुकी आँखें भूल जाएँ रोने का सलीक़ा
आसित आदित्य
परग परग पर ठाढ़ लुटरे पंचौ जागा हो
चढ़-चढ़ौवा साँझ सबेरे पंचौ जागा हो।परग-परग पर ठाढ़ लुटेरे पंचौ जागा हो।
आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
तुम कदाचित् न भी जानो
तुम कदाचित् न भी जानो—यह विदा है।ओस-मधुकण : वस्त्र सारे सीझ कर शलथ हो गए हैं।
अज्ञेय
इच्छा किंचित् भी न रही अब...
इच्छा किंचित् भी न रही अब पूजन, जप, तप, अर्चन की।नहीं कामना मेरे मन में प्रभो! तुम्हारे दर्शन की॥
ज्ञानराज माणिकप्रभु
भय-प्रवाह
जो सोचते हैं हर गली पहुँचे धरा के छोर तक, वे भी?जिनके लिए भाई-बहन हैं शेर-बिल्ली-मोर तक, वे भी?
आर. चेतनक्रांति
कुछ भी न था उसका अपना
निर्जन रास्ते के पदचिह्न भी न थे उसके...जिस प्यास के लिए वह पानी पीती,