Font by Mehr Nastaliq Web

तटस्थ

tatasth

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

अँधियारी रात

सागर तट, निर्जन

एकाकी मैं

पवन, निस्तब्ध, शांत।

जग की आँखों से, अनदेखे ऊगा-सा

अनदेखे डूबा-सा

तारा।

अँधियारी रात, समुद्री किनारा।

जल में छिटपुट कुछ बुलबुले

उठे मिटे

नीले द्रव्य में कुछ घुलता-सा

लहरें मुँह में समुद्री झाग लिए

रेत के कणों से कहतीं अपनी व्यथा

भटकन की आदि कथा।

कोई किसी को जानता नहीं

देखता है, पहचानता नहीं,

सुनता है, समझता नहीं

जीता है किंतु संवेदन-क्षमता नहीं।.

अस्तित्वों के बीच अपरिचय की खाइयाँ

ओफ़ कैसी तनहाइयाँ!

निर्वेद का यह रीता क्षण

ज्यों स्वतः की शून्यता को आँक रहा

शायद सब-कुछ तटस्थ है

मैं भी, परिवेश भी,

अँधेरी रात और सागर तट भी।

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 6)
  • रचनाकार : आ. रा. देशपांडे अनिल
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
  • संस्करण : 1965

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY