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अंश
और शर्म से अपनी मुट्ठियाँ चबानी पड़ती थींमुल्क पागल हो गया था—ख़ून और गलाज़त में धुत
मिक्लोश राद्नोती
बिहारी
बाइस बिस्से का चक है गाँव में सड़क किनारे हीदुख को झूठे सुख की परछाई से कितना भी ढकें
अखिलेश श्रीवास्तव
चूक जाने पर-9
मैंने हर चीज़ को उठाकर उससे दबे-छुपे उस जितने अर्थ को देखाऔर पाया कि पाया कुछ नहीं जा सकता,
सोमेश शुक्ल
चूक जाने पर-2
किसी चीज़ को ख़त्म कर देने के बाद का संसार हो।समय में न रहे। अनुभाव न रहे समय का।
सोमेश शुक्ल
चूक जाने पर-6
जो कुछ समझा—समझे हुए को समझाया भीकिंतु, बहुत कुछ ऐसा था जो कभी किसी की समझ नहीं आया।