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काँटेदार झाड़ी पर बर्फ़
जिगर में ऐंठन, रोम-रोम बौखलाया हुआ।खिड़की से दुनिया को एक नज़र देखा,
रहमान राही
यह वह बनारस नहीं गिंसबर्ग
देख रही बिकती बोटियाँ जिगर कींछह दो सात पाँच बोली न्यूयॉर्क-टोक्यो की
लाल्टू
माँ का अछोर आँचल
आँखें बिछी रहती हैं उसकी लगातारअपने जिगर के टुकड़े द्वारा तय की राहों में
मुसाफ़िर बैठा
मानव चेहरों के सौंदर्य पर
कुछ चेहरे लगते हैं मरियल झोंपड़ियों-से,पकता हो जिगर जहाँ सीलता हो औ' कवाब।
निकोलाय ज़बोलोत्स्की
आज़ाद हिंद फ़ौज का कड़खा
उठता जिगर से फ़िलअए-दिल्ली के है धुवाँ,क़ुरबान तुम पै हिंद के लाखों हैं नौजवाँ;
गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
पैसे के बारे में एक महत्वाकांक्षी कविता के लिए नोट्स
तब तो जिगर को मुट्ठी में कसकर सोचा,कि शुरू से ही पैसा कमाने में लग जाते
आर. चेतनक्रांति
सावधान
तुम्हारे बख़्शे सत्य से औंधा गए हैं उनके उजाले।सावधान हे मेरे जिगर! सदियों से कंगाल हो
नारायण सुर्वे
स्तोभक्रिया माने बोलना अर्थहीन शब्दों के बोल
तुम्हारी हँसी एक फिक्क-सी अनगढ़मेरी नसों की ज़रूरत में बह रही है जिगर की जानिब