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नहिं विषाद की बात जो
नहिं विषाद की बात जो, नलिनी भई उदास।कुमुदिनि-पति! तुहिं लखि जबै, कुमुदिनि हिये हुलास॥
मोहन
घर दीन्हे घर जात है
घर दीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाय।‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥
तुलसीदास
साधु गये पर घर दिये
साधु गये पर घर विषे, गुनवर ऊपर कानि।अमृतपूर समि सूर के, मंडल में अति हानि॥
दीनदयाल गिरि
सुन्दर उलटी बात है
सुन्दर उलटी बात है, समुझै चतुर सुजान।सूवै काढे पकरि कै, या मिनिकी के प्रान॥
सुंदरदास
ई मन चंचल ई मन चोर
ई मन चंचल ई मन चोर, ई मन शुद्ध ठगहार।मन-मन करते सुर-नर मुनि जहँड़े, मन के लक्ष दुवार॥
कबीर
दीन बंधु कर घर पली
दीन बंधु कर घर पली, दीनबंधु कर छांह।तौउ भई हों दीन अति, पति त्यागी मो बाहं॥
रत्नावली
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि, जहँ तरु तरुहि रहाहि।धन्य मलयगिरि जहँ सकल, तरु चंदन हुई जाहि॥
विनायकराव
साँची सी यह बात है
साँची सी यह बात है, सुनियौ सज्जन संत।स्वाँगी तौ वह एक है, वाहि के स्वाँग अनंत॥
रसनिधि
राग द्वेष उपजै नहीं
राग द्वेष उपजै नहीं, द्वैत भाव को त्याग।मनसा बाचा कर्मना, सुन्दर यहु बैराग॥
सुंदरदास
घर-घर मंगल होत है
घर-घर मंगल होत है, बाजहिं ताल मृदंग।सुनि-सुनि बिरहनि पर जरै, सुन्दर नख सिख अंग॥
सुंदरदास
सुन्दर बिरहनी मरि रही
सुन्दर बिरहनी मरि रही, कहूँ न पइये जीव।अमृत पान कराइ कै, फेरि जिवावै पीव॥