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वह रस तो अति अमल है
वह रस तो अति अमल है, रहै बिचारत नित्त।कहत-सुनत 'ध्रुव' ‘भजन-सत, दृढ़ता ह्वैहैं चित्त॥
ध्रुवदास
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि, जहँ तरु तरुहि रहाहि।धन्य मलयगिरि जहँ सकल, तरु चंदन हुई जाहि॥
विनायकराव
गवरी चित्त तो है भला
गवरी चित्त तो है भला, जो चेते चित मांय।मनसा, वाचा, कर्मणा, गोविंद का गुन गाय॥
गवरी बाई
नहिं विषाद की बात जो
नहिं विषाद की बात जो, नलिनी भई उदास।कुमुदिनि-पति! तुहिं लखि जबै, कुमुदिनि हिये हुलास॥
मोहन
राग द्वेष उपजै नहीं
राग द्वेष उपजै नहीं, द्वैत भाव को त्याग।मनसा बाचा कर्मना, सुन्दर यहु बैराग॥
सुंदरदास
भै बिचि सभु आकारु है
भै बिचि सभु आकारु है, निरभउ हरिजीउ सोइ।सतिगुरि सेविऐ हरि मनि बसै, तिथै भउ कदे न होइ॥
गुरु अमरदास
ऐसो मीठो नहिं पियुस
ऐसो मीठो नहिं पियुस, नहिं मिसरी नहिं दाख।तनक प्रेम माधुर्य पें, नोंछावर अस लाख॥
दयाराम
गुंजा री तू धन्य है
गुंजा री तू धन्य है, बसत तेरे मुख स्याम।यातें उर लाये रहत, हरि तोको बस जाम॥
अंबिकादत्त व्यास
सुन्दर सद्गुरु प्रगट है
सुन्दर सद्गुरु प्रगट है, बोलै अंमृत बैन।सूरज कौं देखै नही, मूंदि रहै जो नैन॥
सुंदरदास
तुका इच्छा मीट नहिं तो
तुका इच्छा मिटी नहिं तो, काहा करे जटा ख़ाक।मथीया गोलाडार दिया तो, नहिं मिले फेर न ताक॥
संत तुकाराम
तुका मिलना तो भला
तुका मिलना तो भला, मन सूं मन मिल जाय।ऊपर-ऊपर माटी घासनी, उनको को न बराय॥
संत तुकाराम
सुन्दर शिष जिज्ञास है
सुन्दर शिष जिज्ञास है, परि जो बुद्धि न होइ।तौ सद्गुरु क्यौं पचिमरौ, शब्द ग्रहै नहिं कोइ॥
सुंदरदास
पीपा दास कहाबो कठिन है
पीपा दास कहाबो कठिन है, मन नहिं छांड़े मानि।सतगुरू सूँ परचौ नही, कलियुग लागौ कानि॥