आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ravikant sanmarg darshak granth bhag 1 ebooks"
Doha के संबंधित परिणाम "ravikant sanmarg darshak granth bhag 1 ebooks"
साखी सबद ग्रन्थ पढ़ि
साखी सबद ग्रंथ पढ़ि, सीख करिहैं नर नारि।आपन मन बोधा नाहिं, दर्व हरन के झारि॥
दरिया (बिहार वाले)
उदय भाग रवि मित कहु
उदय भाग रवि मीत कहु, छाया बड़ी लखाति।अस्त भए निज मीत कहँ, तनु छाया तजि जाति॥
रत्नावली
कबहूँ कि ऊगे भाग रवि
कबहहूँ कि ऊगे भाग रवि, कबहूँ कि होय विहान।कबहूँ कि विकसै उर कमल, रत्नावलि सकुचान॥
रत्नावली
सुन्दर जागे भाग सिर
सुन्दर जागे भाग सिर, सद्गुरु भये दयाल।दूरि किया बिष मंत्र सौं, थकत भया मन ब्याल॥
सुंदरदास
सहजहि जौ सिखयो चहहु
सहजहि जौ सिखयो चहहु, भाइहि बहु गुन भाय।तौ निज भाषा मैं लिखहु, सकल ग्रंथ हरखाय॥
सुधाकर द्विवेदी
विषै भोग की आस में
विषै भोग की आस में, सब दिन दियो बिताय।रे मन, करिहै काह अब, पीरी पहुँची आय॥
शिव सम्पति
कबीर की साखियाँ (एन.सी. ई.आर.टी)
जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान।मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।1।
कबीर
छपि-छपि कर परकास में
छपि-छपि कर परकास में, लुप्त रहे जे ग्रंथ।पढि-पढ़ि के पंडित भए, बने नये बहु पंथ॥
सुधाकर द्विवेदी
साहिब सीतानाथ सों
साहिब सीतानाथ सों, जब घटि है अनुराग।तुलसी तबहीं भाल तें, भभरि भागि हैं भाग॥
तुलसीदास
तुलसी प्रीति प्रतीति सों
तुलसी प्रीति प्रतीति सों, राम नाम जप जाग।किएँ होइ बिधि दाहिनो, देइ अभागेहि भाग॥
तुलसीदास
जिहि विषिया सगरी तजी
जिहि विषिया सगरी तजी, लिओ भेख बैराग।कह नानक सुन रे मना! तिह नर माथै भाग॥
गुरु तेग़ बहादुर
बिनु सतसंग न हरिकथा
बिनु सतसंग न हरिकथा, तेहि बिनु मोह न भाग।मोह गएँ बिनु रामपद, होइ न दृढ़ अनुराग॥