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मनुख जनम ले क्या किया
मनुख जनम ले क्या किया, धर्म न अर्थ न काम।सो कुच अज के कंठ मैं, उपजे गए निकाम॥
बुधजन
क्या घर का क्या वाहला
क्या घर का क्या वाहला, डोरी लागी राम।आपनी आपनी जौम मै, बुडी जाय जीहान॥
संत लालदास
सिद्ध भये तो क्या भया
सिद्ध भये तो क्या भया, किये न जग उपकार।जड़ कपास उनसे भला, परदा राखनहार॥
सुधाकर द्विवेदी
कहूँ किया नहिं इस्क का
कहूँ किया नहिं इस्क का, इस्तैमाल सँवार।सो साहिब सों इस्क वह, करि क्या सकै गँवार॥
नागरीदास
क्या गंगा क्या गोमती
क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥
फूलीबाई
वह रस तो अति अमल है
वह रस तो अति अमल है, रहै बिचारत नित्त।कहत-सुनत 'ध्रुव' ‘भजन-सत, दृढ़ता ह्वैहैं चित्त॥
ध्रुवदास
संतनि की सेवा किये
संतनि की सेवा किये, श्रीपति होहि प्रसन्न।सुन्दर भिन्न न जानिये, हरि अरु हरि के जन्न॥
सुंदरदास
इस जीने का गर्व क्या
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।बात कहते ढह जात है, बारू की सी भीत॥
मलूकदास
क्या इंद्र क्या राजवी
क्या इंद्र क्या राजवी, क्या सूकर क्या स्वांन।फूली तीनु लोक में, कामी एक समान॥
फूलीबाई
राम भजन का सोच क्या
राम भजन का सोच क्या, करताँ होइ सो होइ।दादू राम सँभालिये, फिरि बूझिये न कोइ॥
दादू दयाल
इश्क उसी की झलक है
इश्क उसी की झलक है, ज्यौं सूरज की धूप।जहाँ इस्क तहँ आप हैं, क़ादिर नादिर रूप॥
नागरीदास
छुटी न सिसुता की झलक
छुटी न सिसुता की झलक, झलक्यौ जोबनु अंग।दीपति देह दुहून मिलि दिपति ताफता-रंग॥