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घरू-घरू डोलत दीन ह्वै
घरू-घरू डोलत दीन ह्वै, जनु-जनु जाचतु जाइ।दियै लोभ-चसमा चखनु, लघु पुनि बड़ौ लखाई॥
बिहारी
कै तोहि लागहिं राम प्रिय
कै तोहि लागहिं राम प्रिय, कै तू प्रभु प्रिय होहि।दुइ में रुचै जो सुगम, सो कोने तुलसी तोहि॥
तुलसीदास
बोलत डोलत हँसि खेलत
बोलत डोलत हँसि खेलत, आपुहिं करत कलोल।अरज करों बिन दामहीं, बुल्लहिं लीजै मोल॥
बुल्ला साहब
इक बाहर इक भीतर
इक बाहर इक भीतर, इक मृद दुहु दिसि पूर।सोहत नर जग त्रिविधि ज्यों, बेर बदाम अँगूर॥
दीनदयाल गिरि
रचत रहैं भूषन बसन
रचत रहैं भूषन बसन, मो मुख लखै सुहाय।ज्यौं-ज्यौं सब कै बस भये, त्यौं-त्यौं रहौं लजाय॥
दौलत कवि
क्यौं नहिं आयौ, बारबधु
क्यौं नहिं आयौ, बारबधु, कहि अंगरात जँभात।राग अलापैं धन मिलै, नैन पुलैं पछितात॥
दौलत कवि
बैठी सेज सिंगार सजि
बैठी सेज सिंगार सजि, हरष जगत तन जोत।सखी दिवस हेमंत कौ, ग्रीषम सम क्यौं होत॥
दौलत कवि
सोवत प्रीतम सुपन सुख
सोवत प्रीतम सुपन सुख, दरसन स्वप्न कहाय।पिय मिलाप सुख अमित सखि, नींदहि दियौ मिलाय॥
दौलत कवि
करि राखे भूषन बसन
करि राखे भूषन बसन, साँझहिं तैं सु तैयारि।मंदिर के पट खोलि कैं, पौढ़ि रही सुकुमारि॥
दौलत कवि
अंग मोतिन के आभरन
अंग मोतिन के आभरन, सारी पहिरैं स्वेत।चली चाँदनी रैन में, प्रिया प्रानपति हेत॥
दौलत कवि
केलि भवन नंदलाल नहिं
केलि भवन नंदलाल नहिं, देख्यौ कछु न सुहाय।रही सु बाल सखीनि त्यौं, भौंह चढ़ाय रुषाय॥
दौलत कवि
आयौ पीहर तैं सुन्यौ
आयौ पीहर तैं सुन्यौ, ही हुलसी अति बाम।बोलि लियौ एकांत तिय, किये काम के काम॥
दौलत कवि
जमुना तीर, समीर तहँ
जमुना तीर, समीर तहँ, बहै त्रिबिधि सुख होय।अजौं न आयौ क्यौं न पिय, करैं दोर द्रग दोय॥