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आप न बैठा गोपि ह्वै
आप न बैठा गोपि ह्वै, सुन्दर सब घट माँहि।करता हरता भोगता, लिखै छिपै कछु नाँहि॥
सुंदरदास
हाकी बाकी रहि गई
हाकी बाकी रहि गई, नां कछु पिवै न खाइ।सुन्दर बिरहनि वह सही, चित्र लिखी रहि जाइ॥
सुंदरदास
हा हा! अब रहि मौन गहि
हा हा! अब रहि मौन गहि, मुरली करति अधीर।मोसी ह्वै जो तू सुनै, तब कछु पावै पीर॥
नागरीदास
वारि पितु आधीन रहि
वारि पितु आधीन रहि, जौवन पति आधिन।बिनु पति सुत आधिन रहि, पतित होति स्वाधीन॥
रत्नावली
संगति दोष न होति क्यौं
संगति दोष न होति क्यौं, रहि प्रेतन के पास।शिव! शिव! शिव हूको भयो, चिता भूमि में बास॥
भूपति
सुन्दर देह परी रही
सुन्दर देह परी रही, निकसि गयौ जब प्रान।सब कोऊ यौं कहत हैं, अब लै जाहु मसान॥
सुंदरदास
भुक्ति मुक्ति की कामना
भुक्ति मुक्ति की कामना, रही न रंचक हीय।जूठन खाय अघाय नित, नाम रटों सिय पीय॥
युगलान्यशरण
घी को घट है कामिनी
घी को घट है कामिनी, पुरुष तपत अंगार।रतनावलि घी अगिनि को, उचित न सँग विचार॥
रत्नावली
बैठि रही अति सघन बन
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।देखि दुपहरी जेठ की, छाँहौं चाहति छाँह ॥
बिहारी
नीति अनीति न देखिये
नीति अनीति न देखिये, अति गति मन कै बंक।सुन्दर गुरु की साधु की, नैंकु न मानै संक॥
सुंदरदास
सुन्दर बिरहनी मरि रही
सुन्दर बिरहनी मरि रही, कहूँ न पइये जीव।अमृत पान कराइ कै, फेरि जिवावै पीव॥
सुंदरदास
सुखरासी सुधि ना रही
सुखरासी सुधि ना रही, लखि के मुख सुख रासि।रस लेते रस बीखयों, पनघट भइ उपहासि॥
दयाराम
मिलि चंदन-बेंदी रही
मिलि चंदन-बेंदी रही, गौरैं मुँह न लखाइ।ज्यौं-ज्यौं मद-लाली चढ़ै, त्यौं-त्यौं उघरति जाइ॥
बिहारी
रही अछूतोद्धार-नद
रही अछूतोद्धार-नद, छुआछूत-तिय डूबि।सास्त्रन कौ तिनकौ गहति, क्रांति-भँवर सों ऊबि॥
दुलारेलाल भार्गव
सर्गुण निर्गुण है रहे
सर्गुण निर्गुण है रहे, जैसा तैसा लीन।हरि सुमिरण ल्यौ लाइये, का जाणों का कीन्ह॥