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सुख दुख छाया धूप है
सुख दुख छाया धूप है, सुन्दर कर्म सुझाव।सिन द्वै शीतल देखिये, बहुरि तप्त में पांव॥
सुंदरदास
धूप छाँह ज्यों फिरत है
धूप छाँह ज्यों फिरत है, संपति बिपति सदीव।हरष शोक करि क्यों फँसत, मूढ़ अयानी जीव॥
बुधजन
सब मज़हब सब इल्म अरु
सब मज़हब सब इल्म अरु, सबै ऐस के स्वाद।अरे, इस्क के असर बिन, ये सब ही बरबाद॥
नागरीदास
सुबह साँझ के फेर में
सुबह साँझ के फेर में, गुजरी उमर तमाम।द्विविधिा मँह खोये दोऊ, माया मिली न राम॥
शिव सम्पति
बाललाल के भाल में
बाललाल के भाल में, सुखमा बसी बिशाल।सुछवि भाल शशि अरघ ह्वै, निरखत होत बिहाल॥
रघुराजसिंह
विस्वासी के ठगन में
विस्वासी के ठगन में, नहीं निपुनता होय।कहा सूरता तासु हनि, रह्यो गोद जो सोय॥
दीनदयाल गिरि
पंच तत्व की देह में
पंच तत्व की देह में, त्यौं सुर व्यापक होइ।विस्वरूप में ब्रह्म ज्यौं, व्यापक जानौ सोइ॥
रसनिधि
कब गहवर की गलिन में
कब गहवर की गलिन में, फिरिहौं होइ चकोर।जुगुलचंद-मुख निरखिहौं, नागरि-नवलकिसोर॥
ललितकिशोरी
रस ही में औ रसिक में
रस ही में औ रसिक में, आपुहि कियौ उदोत।स्वाति-बूँद में आपु ही, आपुहि चात्रिक होत॥
रसनिधि
रतिरुझ में सुख समुझ मन
रतिरुझ में सुख समुझ मन, पें कहि सके न बाक।कटुताई में मिष्टता, जैसि करेला साक॥
दयाराम
विषै भोग की आस में
विषै भोग की आस में, सब दिन दियो बिताय।रे मन, करिहै काह अब, पीरी पहुँची आय॥
शिव सम्पति
भँवर बिलंबे बाग में
भँवर बिलंबे बाग में, बहु फूलन की बास।ऐसे जीव बिलंबे विषय में, अन्तहु चले निरास॥
कबीर
कब बृंदावन-घरनि में
कब बृंदावन-घरनि में, चरन परैंगे जाय।लोटि धूरि धरि सीस पर, कछु मुखहूँ में पाय॥