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सुन्दर यह मन भूत है
सुन्दर यह मन भूत है, निस दिन बकतें जाइ।चिन्ह करै रोवै हंसै, खातें नहीं अघाइ॥
सुंदरदास
असुर भूत अरू प्रेत पुनि
असुर भूत अरू प्रेत पुनि, राक्षस जिनि कौ नांव।त्यौं सुन्दर प्रभु पेट यह, करै खांव ही खांव॥
सुंदरदास
सकुन-गान स्रुति सूल सों
सकुन-गान स्रुति सूल सों, लगति सूल से फूल।मिंत बिना सुख-मूल सब, भये आज प्रतिकूल॥
मोहन
सघन कुंज, घन घन–तिमिरु
सघन कुंज, घन घन–तिमिरु, अधिक अँधेरी राति।तऊ न दुरिहै, स्याम वह, दीपसिखा सी जाति॥
बिहारी
भूत दैंत जौरा भैरूं
भूत दैंत जौरा भैरूं, देवी तुम्हहि बतावै।पीपा मेरे रिधी है, हरि बिन सिधी न पावै॥
संत पीपा
सुन्दर आज्ञा मैं रहे
सुन्दर आज्ञा मैं रहे, काल कर्म जमदूत।गण गंधर्व निशाचरा, और जहाँ लगि भूत॥
सुंदरदास
अहो स्याम घन! पातकी
अहो स्याम घन! पातकी, भयो घात की रास।बरसत बूँद न स्वाति की, दूरि न चातकी-प्यास॥
मोहन
सुन्दर तूं चेतन्य घन
सुन्दर तूं चेतन्य घन, चिदानंद निज सार।देह मलीन असुच्चि जड, बिनसत लगै न बार॥
सुंदरदास
उमड़ रहे घन सघन अति
उमड़ रहे घन सघन अति, रही रैन अँधियार।स्याम रंग सारी दुरी, चली पीउ पैं नार॥
दौलत कवि
मस्जिद सों कुछ घिन नहीं
मस्जिद सों कुछ घिन नहीं, मंदिर सों नहीं पिआर।दोए मंह अल्लाह राम नहीं, कहै रैदास चमार॥
रैदास
जिह्वा गुन गोविंद भजहु
जिह्वा गुन गोविंद भजहु, करन सुनहु हरि नाम।कहु नानक सुन रे मना, परहि न जम के धाम॥
गुरु तेग़ बहादुर
प्रभु गुन गन भूषन बसन
प्रभु गुन गन भूषन बसन, बिसद विसेष सुबेस।राम सुकीरति कामिनी, तुलसी करतब केस॥
तुलसीदास
दोष हैं गुन नहिं गहैं
दोष हैं गुन नहिं गहैं, खल जन रहैं अधीर।लगी पयोधरि रुधिर को, पियै जोंक नहिं छीर॥॥