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कोपें सोच न पोच कर
कोपें सोच न पोच कर, करिम निहोर न काज।तुलसी परमिति प्रीति की, रीति राम के राज॥
तुलसीदास
माला जपो न कर जपो
माला जपों न कर जपों, जिभ्या कहूँ न राम।सुमिरन मेरा हरि करे, मैं पाया बिसराम॥
मलूकदास
कर-लाघव विधि नै लह्यो
कर-लाघव विधि नै लह्यो, रचि कै प्रथम निसेस।यातैं यह तव बिधु-बदन, बिधु तैं बन्यो बिसेस॥
मोहन
अपनी राह न छाँड़िये
अपनी राह न छाँड़िये, जौ चाहहु कुसलात।बड़ी प्रबल रेलहु गिरत, और राह में जात॥
सुधाकर द्विवेदी
जाके कर में कर दयो
जाके कर में कर दयो, माता पिता व भ्रात।रतनावलि सह वेद विधि, सोइ कहयो पति जात॥
रत्नावली
छुटी न सिसुता की झलक
छुटी न सिसुता की झलक, झलक्यौ जोबनु अंग।दीपति देह दुहून मिलि दिपति ताफता-रंग॥
बिहारी
हित कर अपनो जानि बुध
हित कर अपनो जानि बुध, वचन ताड़ना देत।जैसे माली सुमन को, बेधत गुन के हेत॥
दीनदयाल गिरि
कहति न देवर की कुबत
कहति न देवर की कुबत, कुल-तिय कलह डराति।पंजर-गत मंजार-ढिग, सुक ज्यौं सूकति जाति॥
बिहारी
अपने अपने कंत सौं
अपने अपने कंत सौं, सब मिलि खेलहिं फाग।सुन्दर बिरहनि देखि करि, उसी बिरह कै नाग॥
सुंदरदास
जमला जा सूँ प्रीत कर
जमला जा सूँ प्रीत कर, प्रीत सहित रह पास।ना वह मिलै न बीछड़ै, ना तो होय निरास॥
जमाल
राधास्वामी गाय कर
राधास्वामी गाय कर, जनम सुफल कर ले।यही नाम निज नाम है, मन अपने घर ले॥
संत शिवदयाल सिंह
जौ न जुगति पिय मिलन की
जौ न जुगति पिय मिलन की, धूरि मुकति-मुँह दीन।जौ लहियै सँग सजन तौ, धरक नरक हूँ की न॥
बिहारी
बानिक नटवरलाल कि न
बानिक नटवरलाल कि न, लिखत तोष दिन रैन।पान करें प्यासे मरें, बनचर त्यों मम नैंन॥