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कमल चढ़ावत काम है
कमल चढ़ावत काम है, हर ऊपर यहि चोप।है प्रसन्न देहैं सुवरु, रति संजोग तजि कोप॥
बैरीसाल
नहिं विषाद की बात जो
नहिं विषाद की बात जो, नलिनी भई उदास।कुमुदिनि-पति! तुहिं लखि जबै, कुमुदिनि हिये हुलास॥
मोहन
हा हा! अब रहि मौन गहि
हा हा! अब रहि मौन गहि, मुरली करति अधीर।मोसी ह्वै जो तू सुनै, तब कछु पावै पीर॥
नागरीदास
सुन्दर या नर देह अब
सुन्दर या नर देह अब, खुल्यौ मुक्ति कौ द्वार।यौं ही बृथा न खोइये, तोहि कह्यौ कै बार॥
सुंदरदास
साँची सी यह बात है
साँची सी यह बात है, सुनियौ सज्जन संत।स्वाँगी तौ वह एक है, वाहि के स्वाँग अनंत॥
रसनिधि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि, जहँ तरु तरुहि रहाहि।धन्य मलयगिरि जहँ सकल, तरु चंदन हुई जाहि॥
विनायकराव
पर कौ काम बिगारि दे
पर कौ काम बिगारि दे, अपनौ होउ न होह।यह सुझाव है दुष्ट कौ, सुन्दर तजिये वोह॥
सुंदरदास
‘व्यास’ न कथनी काम की
‘व्यास’ न कथनी काम की, करनी है इकसार।भक्ति बिना पंडित वृथा, ज्यों खर चंदन भार॥
हरीराम व्यास
राग द्वेष उपजै नहीं
राग द्वेष उपजै नहीं, द्वैत भाव को त्याग।मनसा बाचा कर्मना, सुन्दर यहु बैराग॥
सुंदरदास
मन ही यह बिस्तरि रह्यौ
मन ही यह बिस्तरि रह्यौ, मन ही रूप कुरूप।सुन्दर यह मन जीव है, मन ही ब्रह्म स्वरूप॥
सुंदरदास
सुख बीते दुख होत है
सुख बीते दुख होत है दुख बीते सुख होत।दिवस गए ज्यौं निसि उदित निसगत दिवस उदोत॥
वृंद
काम क्रोध जिनि कै नहीं
काम क्रोध जिनि कै नहीं, लोभ मोह पुनि नांहिं।सुन्दर ऐसै संतजन, दुर्लभ या जगु मांहिं॥
सुंदरदास
यह करनी का भेद है
यह करनी का भेद है, नाहीं बुद्धि विचार।बुद्धि छोड़ करनी करो, तो पाओ कुछ सार॥
संत शिवदयाल सिंह
झषै कहा अब ह्वै
झषै कहा अब ह्वै सखे, भयो सिथिल या देह।कूप खोदिबो है वृथा, लग्यो जरन जब गेह॥
दीनदयाल गिरि
सुन्दर यह नहिं यह नहीं
सुन्दर यह नहिं यह नहीं, यह तौ है भ्रम कूप।नाहिं नाहिं करते रहैं, सो है तेरौ रूप॥