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क्रिया कमै बहु बिधि कहे
क्रिया कमै बहु बिधि कहे, बेद वचन विस्तार।सुन्दर समुझै कौंन बिधि, उरझि रह्यौ संसार॥
सुंदरदास
सुन्दर मन कामी कुटिल
सुन्दर मन कामी कुटिल, क्रोधी अधिक अपार।लोभी तृप्त न होत है, मोह लग्यौ सैवार॥
सुंदरदास
कमल-बदनि! किमि चलि अभय
कमल-बदनि! किमि चलि अभय, निरखत बाग बहार।मधुकर तव मुख झूमि है, पंकज-भ्रम चित धार॥
मोहन
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
है सिय बर तब इश्क में
है सिय बर तब इश्क में, मुझे तकार पकार।गहे रहत त्यागत नहीं, बिह्वल करौं पुकार॥
युगलान्यशरण
ना देवल में देव है
ना देवल में देव है, ना मसज़िद खुदाय।बांग देत सुनता नहीं, ना घंटी के बजाय॥
निपट निरंजन
दिन में सुभग सरोज है
दिन में सुभग सरोज है, निसि में सुंदर इंदु।द्यौस राति हूँ चारु अति, तेरो बदन गोबिंदु॥
मतिराम
बातन में सब सिद्धि है
बातन में सब सिद्धि है, बातन में सब योग।ये मतवाले होय गए, मतवाले सब लोग॥
सुधाकर द्विवेदी
नैनन में बिस बहुत है
नैनन में बिस बहुत है, ना मारौ दिलजान।गुरन-गुरन बिंध जायगौ, कैसें निकरैं प्रान॥
दुरगा
जलहूँ में पुनि आपु ही
जलहूँ में पुनि आपु ही, थलहूँ में पुनि आपु।सब जीवन में आपु है, लसत निरालौ आपु॥
रसनिधि
या जग में कोउ है नहीं
या जग में कोउ है नहीं, गुरु सम दीन दयाल।मरना गत कू जानि कै, भले करै प्रति पाल॥
दयाबाई
गरजन में पुनि आपु ही
गरजन में पुनि आपु ही, बरसन में पुनि आपु।सुरझन में पुनि आपु त्यौं, उरझन में पुनि आपु॥
रसनिधि
किमि कोमल अँग ओढ़ि हैं
किमि कोमल अँग ओढ़ि हैं, असहनीय असि-घाय।जिन पै गहब गुलाब की, गड़ि खरोट परि जाय॥