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जो कुछ जैहै हाथ तें
जो कुछ जैहै हाथ तें, काहू न ताकौ सोग।रोग अंग कौ बहुत हैं, चिंता चित कौ रोग॥
जान कवि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि
नहि सरहिये स्वर्ण गिरि, जहँ तरु तरुहि रहाहि।धन्य मलयगिरि जहँ सकल, तरु चंदन हुई जाहि॥
विनायकराव
नहिं विषाद की बात जो
नहिं विषाद की बात जो, नलिनी भई उदास।कुमुदिनि-पति! तुहिं लखि जबै, कुमुदिनि हिये हुलास॥
मोहन
राग द्वेष उपजै नहीं
राग द्वेष उपजै नहीं, द्वैत भाव को त्याग।मनसा बाचा कर्मना, सुन्दर यहु बैराग॥
सुंदरदास
बिन गुन जड़ कुछ देत हैं
बिन गुन जड़ कुछ देत हैं, जैसे ताल तलाब।भूप कूप की एक गति, बिनु गुन बूँद न पाव॥
सुधाकर द्विवेदी
साँच मंत्र तो राम भज
साँच मंत्र तो राम भज, और सभी कुछ कूड़।पीपा वेद पुराण पढूं, क्यों बन्यो रहे मूढ॥
संत पीपा
ऐसो मीठो नहिं पियुस
ऐसो मीठो नहिं पियुस, नहिं मिसरी नहिं दाख।तनक प्रेम माधुर्य पें, नोंछावर अस लाख॥
दयाराम
हम जांणयां था आप थे
हम जांणयां था आप थे, दूरि परै है कोइ।सुन्दर जब सद्गुरु मिल्या, सोहं-सोहं होइ॥
सुंदरदास
वह रस तो अति अमल है
वह रस तो अति अमल है, रहै बिचारत नित्त।कहत-सुनत 'ध्रुव' ‘भजन-सत, दृढ़ता ह्वैहैं चित्त॥
ध्रुवदास
गवरी चित्त तो है भला
गवरी चित्त तो है भला, जो चेते चित मांय।मनसा, वाचा, कर्मणा, गोविंद का गुन गाय॥
गवरी बाई
दरी में तो बहू दिन बसे
दरी में तो बहू दिन बसे, अहि उंदर परमान।दरी समारे न मिले, सुनियो संत सुजान॥