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जाके कर में कर दयो
जाके कर में कर दयो, माता पिता व भ्रात।रतनावलि सह वेद विधि, सोइ कहयो पति जात॥
रत्नावली
मुख ब्राह्मण कर क्षत्रिय
मुख ब्राह्मण कर क्षत्रिय, पेट वैश्य पग शुद्र।इ अंग सबही जनन में, को ब्राह्मण को शुद्र॥
मीतादास
कर-लाघव विधि नै लह्यो
कर-लाघव विधि नै लह्यो, रचि कै प्रथम निसेस।यातैं यह तव बिधु-बदन, बिधु तैं बन्यो बिसेस॥
मोहन
दीन बंधु कर घर पली
दीन बंधु कर घर पली, दीनबंधु कर छांह।तौउ भई हों दीन अति, पति त्यागी मो बाहं॥
रत्नावली
दंड जतिन्ह कर भेद जहँ
दंड जतिन्ह कर भेद जहँ, नर्तक नृत्य समाज।जीतहु मनहि सुनिअ अस, रामचंद्र के राज॥
तुलसीदास
चम्बक सत्ता कर जथा
चम्बक सत्ता कर जथा, लोहा नृत्य कराइ।सुन्दर चम्बक दूरि ह्वै, चंचलता मिटि जाइ॥
सुंदरदास
त्रिबली, नाभि दिखाइ कर
त्रिबली, नाभि दिखाइ कर, सिर ढकि, सकुचि समाहि।गली, अली की ओट कै, चली भली बिधि चाहि॥
बिहारी
राम चरित राकेस कर
राम चरित राकेस कर, सरिस सुखद सब काहु।सज्जन कुमुद चकोर चित, हित विसेखि बड़ लाहु॥
तुलसीदास
अरी, छिमा कर मुरलिया
अरी, छिमा कर मुरलिया, परत तिहारे पाय।और सुखी सुनि होत सब, महादुखी हम हाय॥