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जाको प्रभुता से बड़ो
जाको प्रभुता से बड़ो, नहिं वर कुल अवतार।कुंभ कूप कों नहिं पियो, कुंभज सिंधु अपार॥
दीनदयाल गिरि
जाहि पराक्रम से बड़ो
जाहि पराक्रम से बड़ो, लघु दीरघ न निहार।अंकुस दीपक कुलिस कित, कित गज तिमिर पहार॥
दीनदयाल गिरि
संत मता सब से बड़ा
संत मता सब से बड़ा, यह निश्चय कर जान।सूफ़ी और वेदांती, दोनों नीचे मान॥
संत शिवदयाल सिंह
गुनी रसाल रसाल से
गुनी रसाल रसाल से, नमै सुमन फल पाय।नीरस तरु से नीच नर, नवैं न कोटि उपाय॥
दीनदयाल गिरि
तुका संगत तिन से कहिए
तुका संगत तिन से कहिए, जिन से सुख दुनाए।दुर्जन तेरा मूं काला, थीतो प्रेम घटाए॥
संत तुकाराम
प्रीतम कठिन कृपान से
प्रीतम कठिन कृपान से, मति अंतर उरभार।सुमन माँझ सुरति सजन, जिन्ह लागै तित धार॥
युगलान्यशरण
साधु न दूषित खलन से
साधु न दूषित खलन से, होहिं सुपद आसीन।गंग पाक अति काक तें, परसित होय न हीन॥
दीनदयाल गिरि
राम कृपा से होत सुख
राम कृपा से होत सुख, उत्तम होत कुशात।पीपा परिहर जगत को, भजतो क्यों बिलखात॥
संत पीपा
संग दोष से संत जन
संग दोष से संत जन, अंत न होहिं मलान।जैसे जल मल संग तजि, निरमल होत निदान॥
दीनदयाल गिरि
अति से सूधे मृदु बने
अति से सूधे मृदु बने, नहीं कुशल जग माहिं।काटत सरल सुतरुन कों, त्यों बन कुटिलहि नाहिं॥