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हिंदी में एकांकी का स्वरूप
आगे चलकर इस स्वरूप के कई पक्ष हिंदी एकांकी-साहित्य में विकसित होते है। समस्त पक्षों को
लक्ष्मी नारायण लाल
मैं चलता मेरे साथ नया सावन चलता है
मैं चलता रवि-शशि चलते किरणों के पंख सजाकर,भू चलती सतत प्रगति-पथ नदियों के हार बनाकर,
उदयशंकर भट्ट
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काव्य की आठ माताएँ
कन्हैयालाल सहल
ढाबा : आठ कविताएँ
कलाई पर जिसके बँधतीं पूरी आठ राखियाँआठों के आठ डोरे झुलसे हर बार भट्ठी में।
नीलेश रघुवंशी
'ब्राह्मण' पत्र की पाठकों से अपील (दो)
आठ मास बीते जजमान, अब तो करो दच्छिना दान।आजु काल्हि जौ रुपया देव, मानी कोटि यज्ञ करि लेव॥