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कीचड़ के रास्ते न जा मामा
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ररा ममा को ध्यान धरि
ररा ममा को ध्यान धरि, यही उचारै ग्यान।दुविध्या तिमिर सहजैं मिटै, उदय भक्ति को भान॥
देवादास
ठाकुर का कुआँ
प्रेमचंद
किण विध ठाकुर के ढिग जाऊँ
किण विध ठाकुर के ढिग जाऊँ।गेल नी जाणूं, गमत नी जाणूँ, जाणू नहीं उपाऊं।
सैन भगत
ओ म्हारा मनड़े रा ठाकुर
ओ म्हारा मनड़े रा ठाकुर, गोपीनाथ दयाल।ओ म्हारा कुंजबिहारी, मो संग मुरधर चाल॥
रानाबाई
अब हम चली ठाकुर पहि हारि
अब हम चली ठाकुर पहि हारि।जब हम सरणि प्रभु की आई राखु प्रभु भावै मारि॥
गुरु रामदास
हमारे समकालीन सीरीज़ में कल्लू मामा
मामा कहने से यह नहीं समझना चाहिए कि उनकी उम्र पचीस-छब्बीस से ज़्यादा होगी। उन्होंने हाल
देवी प्रसाद मिश्र
सेवक सिपाही हम उन रजपूतन के
‘ठाकुर' कहत हम बैरी बेवकूफन के,जालिम दमाद हैं अदानियाँ ससुर के।
ठाकुर बुंदेलखंडी
जानी जात रावरे संजोगनि के साँवरे जू
‘ठाकुर' कहत जागै जोगी लौं समाधि साधे,संग की अजानै जानै सोइबो करति है।
ठाकुर
कारे लाल पीरे धौरे धावत धुँवाँ के रंग
‘ठाकुर' कहत कबि बरनि बरनि थाके,बरने न जात यौं बहसि बर बाढ़े हैं।