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सिरमा ठाकुर का कोप

sirma thakur ka kop

सिरमा ठाकुर (परमात्मा) ने मनुष्यों को इसलिए बनाया था कि वे पृथ्वी पर रहकर अच्छे-अच्छे काम करें किंतु मनुष्यों ने सिरमा ठाकुर को निराश किया। मनुष्यों ने अपनी आबादी स्वयं बढ़ा ली और वे व्यभिचारी हो गए। वे एक-दूसरे की हत्याएँ करते, मार-पीट करते और एक पल भी शांति से नहीं बैठते। उनमें ईर्ष्या-द्वेष की भावना दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। वे इतने घमंड में डूबते जा रहे थे कि उन्हें सिरमा ठाकुर का सम्मान करने की भी सुध नहीं रही।

मनुष्य के ऐसे अनैतिक आचरणं से त्रस्त होकर सिरमा ठाकुर ने पृथ्वी पर पहले भूचाल ला दिया और आग की वर्षा कर दी। भूचाल और आग की वर्षा से अधिकांश मनुष्य मर गए। जो मनुष्य बच गए उन्होंने इसे मरने वालों के कुकर्मों का फल माना तथा स्वयं को अजेय एवं अमर मानते हुए कुकर्म करते रहे।

सिरमा ठाकुर समझ गए कि शेष मनुष्यों को भी मारना पड़ेगा। इस बार उन्होंने पृथ्वी पर जल-प्रकोप उत्पन्न किया। पृथ्वी का अधिकांश भाग जलमग्न हो गया जिसमें शेष मनुष्य भी मारे गए सिवा उन सोलह स्त्री-पुरुषों को छोड़कर जिन्हें स्वयं सिरमा ठाकुर ने शरण देकर बचा लिया था।

प्रलय के बाद सिरमा ठाकुर ने सोलहों स्त्री-पुरुषों को आदेश दिया कि वे परस्पर संबंध स्थापित करके नए संसार की रचना करें और नियम-उपनियम बनाकर उसका पालन करते हुए रहें। सोलहों स्त्री-पुरुषों ने सिरमा ठाकुर के कहे अनुसार किया और इस प्रकार वर्तमान संसार का निर्माण हुआ।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 322)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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