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काइँ बहुत्तइँ जंपिअइँ
काइँ बहुत्तइँ जंपिअइँ, जं अप्पणु पडिकूलु।काइँ मि परहु ण तं करहि, एहु जु धम्मह मूलु॥
देवसेन
झझकत हिये गुलाब कै
झझकत हिये गुलाब कै, झँवा झंवैयत पाइ।या बिधि इत सुकुमारता अब न, दई सरसाइ॥
वियोगी हरि
जौबन बतला कैं काँ जातीं
जौबन बतला कैं काँ जातीं, हँस-हँस बातें कातीं।कातीं कछू-कछू तुम करतीं, इक घर में ना रातीं।
किशोर (बुंदेलखंडी)
बप्पीहा कइँ बोल्लिएण
बप्पीहा कइँ बोल्लिएण निरिघण वार इ बार।सायरि भरिअइ विमल-जलि लहहि न एक्कइ धार॥११६॥
हेमचंद्र
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पगीं प्रेम नंदलाल कैं
पगीं प्रेम नंदलाल कैं, हमैं न भावत जोग।मधुप राजपद पाइकै, भीख न माँगत लोग॥
मतिराम
लखि, लोने लोइननु कैं
लखि, लोने लोइननु कैं, कौइनु, होइ न आजु।कौनु गरीबु निवाजिबौ, तूठ्यौं रतिराजु॥
बिहारी
सुन्दर तृष्णा पकरि कैं
सुन्दर तृष्णा पकरि कैं, करम करावै कोरि।पूरी होइ न पापिनी, भटकावै चहुं वोरि॥
सुंदरदास
पीतपटी लपटाय कैं
पीतपटी लपटाय कैं, लैं लकुटी अभिराम।बसहु मंद मुसिक्याय उर, सगुन-रूप घनस्याम॥
सत्यनारायण कविरत्न
मकराकृति गोपाल कैं
मकराकृति गोपाल कैं, सोहत कुंडल कान।धर्यौ मनौ हिय-धर समरु, ड्यौढ़ी लसत निसान॥
बिहारी
बालमु बारैं सौति कैं
बालमु बारैं सौति कैं, सुनि परनारि-बिहार।भो रसु अनरसु, रिस रली, रीझ-खीझ इक बार॥
बिहारी
जेती संपति कृपन कैं
जेती संपति कृपन कैं, तेती सूमति जोर।बढ़त जात ज्यौं-ज्यौं उरज, त्यौं-त्यौं होत कठोर॥
बिहारी
सुन्दर सुरति समेटि कैं
सुन्दर सुरति समेटि कैं, सुमिरन सौं लै लीन।मन बच क्रम करि होत है, हरि ताकै आधीन॥
सुंदरदास
मुक्तमाल हिय स्याम कैं
मुक्तमाल हिय स्याम कैं, देखी भावत नेन।छबि ऐसी लागत मनौ, कालिंदी में फेन॥
जसवंत सिंह
काँधैं कमरी गौ अलाप कैं नाचै
काँधैं कमरी गौ अलाप कैं नाचै जमुना तीर,नाचे पिछले पाँवर रे, गति लै-लै नाचे आँगनवा।