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तुम्हें क्या पता, भूख कैसी होती है
मैक्सिम गोर्की
वीआहु होआ मेरे बाबुला
वीआहु होआ मेरे बाबुला गुरमुखे हरि पाइआ।अगिआनु अंधरा कट्टिआ गुर गिआनु प्रचंडु बताइआ॥
गुरु रामदास
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कुपित मनुष्य यह नहीं समझ पाता
वाल्मीकि
अच्छा क्या है
जयशंकर प्रसाद
अज सिव सिद्ध सुरेस मुख
अज सिव सिद्ध सुरेस मुख, जपत रहत निसिजाम।बाधा जन की हरत है, राधा राधा नाम॥
श्री हठी
क्या इंद्र क्या राजवी
क्या इंद्र क्या राजवी, क्या सूकर क्या स्वांन।फूली तीनु लोक में, कामी एक समान॥
फूलीबाई
आज वही सारहीन है
किशनचंद 'बेवस'
क्या घर का क्या वाहला
क्या घर का क्या वाहला, डोरी लागी राम।आपनी आपनी जौम मै, बुडी जाय जीहान॥
संत लालदास
मनुख जनम ले क्या किया
मनुख जनम ले क्या किया, धर्म न अर्थ न काम।सो कुच अज के कंठ मैं, उपजे गए निकाम॥